धार्मिक विवाद: कीचड़ में पड़ा कोई शख्स सामने वाले को भी अपनी ही तरह कीचड़ में देखना चाहता है!

धर्मिक विवाद असल में क्या हैं? ऐसा मान लीजिए कि एक आदमी कीचड़ में है इसलिए वह सामने वाले को भी अपने जैसा देखना चाहता है। जिन समाजों में सभ्यता का स्तर ऊपर चला गया है उन्होंने तय कर लिया है कि अपनी-अपनी ग़लत-सही सभी मानो और दूसरे की ग़लत बातों पर आंखें बंद करके, ज़बान सिल लो। जहां इस नियम का पालन हो रहा है वहां दंगे नहीं है।

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लोग कह रहे हैं नूपुर ने ग़लत क्या कहा है? वह तो ख़ुद मुसलमानों की किताबों में है। बात सही है, यह बातें कुछ कियाबों में हैं। अगर उन किताबों को सही भी मान लें तब भी कहने का तरीक़ा ग़लत है। जो नैतिकता का प्रतिमान नूपुर जैसे लोग थोप रहे हैं वो काल खंड के हिसाब से आज अनैतिक भी हो सकता है, और नैतिक भी। मान लीजिए 6 वर्ष की लड़की जो फैसला लेने की स्थिति में नहीं थी, वह अपने बाप की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए उस काल के सबसे मज़बूत आदमी को ब्याह कर सौंप भी दी गई लेकिन बाल विवाह अनैतिक कबसे हो गया? व्याभिचार का आरोप आज के क़ानून में है, लेकिन उसको आधार बना कर अगर आप अपमानजनक भाषा में बोलेंगे तो बुरा लगना लाज़िम है। अगर इस तरह की बातों पर सार्वजनिक विमर्श में गाली गालौच हो तो दंगे होंगे ही।

शादी के समय सीता माता की बाल उम्र, कुंती के पांच पुत्रों की अपने पिता से न जन्मे होने की कथा, गांधारी का अपहरण, चंद्रमा का बृहस्पति की पत्नी से व्याभिचार, इंद्र का अहिल्या का शील भंग, दक्ष और दक्षी की अपने पिता का वंश बढ़ाने के लिए संतानोत्पत्ति, धम्म ॠषि का हिरणी से संभोग, बॄह्मा का अपनी सगी बेटी पर विचलन और सिर गंवाना, एक बाप से जन्मे स्वंयभु मनु और शतरूपा का विवाह, या मनु का प्रसूति से विवाह, उर्वशी, मेनका के क़िस्से, जैसे सैकड़ों ज्ञान भी आम जनमानस के बीच हैं जिन्हें मुसलमान भी जानते हैं। लेकिन एक अघोषित नियम है कि इस तरह के मुद्दों पर न बहस करनी है और न किसी को ज़लील करना है।

टीवी वाले पेड मौलवी का हरामीपन तक इधर वालों को बर्दाश्त नहीं है उल्टा समझाया जाता है कि दूसरे की आस्था का मज़ाक़ मत बनाओ। यतींद्र सरस्वती नूपूर शर्मा और नवीन जिंदल जैसे लोगों ने यह अघोषित नियम भी तोड़ा है और उस दीवार को गिराया है जो दो धर्म के लोगों को एक दूसरे के धार्मिक आस्था से जुड़े मसलों पर कीचड़ उछालने से रोकती है। यह समय इस तरह के लोगों को बचाने का नहीं है, बल्कि हिंदू धर्म के ज़िम्मेदार और सभ्य लोगों की ज़िम्मेदारी है कि इस तरह के लोगों पर लग़ाम लगाएं वरना यह तूतू मैंमैं समाज में बड़े विघटन पैदा करेगी।