तीस्ता सीतलावाड़ और संजीव भट्ट पर तो काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है लेकिन आरबी श्रीकुमार के बारे में कोई खास जानकारी सोशल मीडिया पर मौजूद नहीं है। कल क्राइम ब्रांच ने गुजरात दंगों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद गुजरात पुलिस के 75 वर्षीय पूर्व महानिदेशक (DGP) आरबी श्रीकुमार को जालसाजी और आपराधिक साजिश रचने के आरोप में गांधीनगर में स्थित उनके घर से गिरफ्तार कर लिया।
आर.बी. श्रीकुमार के दादा प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रवादी, पत्रकार और लेखक बलरामपुरम जी रमन पिल्लई थे, जो आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़े और जिन्होंने नवशक्ति नामक एक अखबार शुरू किया था। श्रीकुमार इतिहास, गांधीवादी दर्शन, कानून, और साहित्य में स्नातकोत्तर डिग्री रखते हैं। 1971 बैच के आईपीएस अधिकारी, श्रीकुमार 1972 में गुजरात पुलिस बलों में शामिल हुए और 2007 में सेवानिवृत्ति तक निरंतर। उसी के साथ काम लिए। श्रीकुमार को भारत सरकार द्वारा 1990 में सराहनीय सेवा पदक और 1998 में विशिष्ट सेवा पदक के साथ सम्मानित किया गया।
ऐसे व्यक्ति को जालसाजी और साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया जाए यह बात अपने आप में आश्चर्यजनक है आखिर ऐसा क्यों किया गया! दरअसल श्रीकुमार पहले बड़े पुलिस अधिकारी थे, जिन्होंने नानावटी-शाह आयोग के सामने मोदी के खिलाफ गवाही दी। वे गोधरा कांड के दौरान गुजरात में सशस्त्र इकाई के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक थे और 2002 के गुजरात दंगों के तुरंत बाद इंटेलिजेंस डीजीपी बनाए गए।
बतौर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (इंटेलीजेंस) उन्होंने रपट दी थी कि दंगों के बाद मोदी के बयान पहले से ही तनावपूर्ण सांप्रदायिक माहौल में आग लगाने का काम करेंगे आरबी श्रीकुमार ने जस्टिस (रिटायर्ड) जीटी नानावती और जस्टिस (रिटायर्ड) अक्षय मेहता कमीशन में चार एफिडेविट फाइल किए थे। इनमें उन्होंने सरकारी एजेंसी और दंगाइयों के बीच मिलीभगत का आरोप लगाया था।
आरबी श्रीकुमार ने सांप्रदायिक दंगों की जाँच कर रहे आयोग को बताया कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने पुलिस को हिंसा पर क़ाबू पाने के लिए ड्यूटी निभाने से रोका था.
दंगे भड़कने के दो महीने बाद आरबी श्रीकुमार ने राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (गुप्तचर) का कार्यभार संभाला था. श्रीकुमार ने जांच आयोग को बताया कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने उनके विभाग को यह बताया था कि दंगों के दौरान वह निस्सहाय और अक्षम महसूस कर रहे थे क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के ही निर्देश माने जा रहे थे.पुलिस अपनी कार्रवाई मई में ही शुरू कर सकी जबकि दंगे फ़रवरी में भड़के थे. ऐसी गवाही देने के कारण उन्हें गुजरात सरकार द्वारा पुलिस महानिदेशक के पद पर पदोन्नति से वंचित कर दिया गया।
RB श्री कुमार के बारे में कहा जाता है कि उन्होने गुजरात पुलिस की दंगो में भूमिका सवाल उठाए थे लेकिन यह आधा सच है श्रीकुमार ने जांच आयोग के सामने कहा कि 1984 में सिख विरोधी दंगा पूरी दिल्ली में फैला था लेकिन गुजरात में वीभत्स हत्याकांड राज्य के 11 जिलों में ही हुए थे जबकि गुजरात में दंगों के दौरान 30 पुलिस प्रशासनिक जिले थे, केवल 11 जिलों में गंभीर हिंसा की घटनाएं हुईं, अन्य 11 जिलों में कोई भी बड़ी घटना नहीं हुई और न ही कोई हत्या हुई.
Gujarat: Behind the Curtain यह RB श्री कुमार की किताब का नाम है जिसमें उन्होंने गुजरात में 2002 में हुई हिंसा से जुड़ी कई बातो का, गुजरात के हालात का और हिंसा के बाद की तमाम परिस्थितियों और अनकही बातों का जिक्र किया है।
इस किताब की भूमिका जो इंटरनेट पर उपलब्ध है उसमें लिखा गया है कि ‘गोधरा रेलवे स्टेशन की दुर्घटना के बाद गुजरात के अनेक इलाक़ों में भड़कने वाले भीषण दंगे गुजरात तथा भारत के चेहरे पर कलंक हैं । इन भीषण दंगों का कारण पुलिस द्वारा क़ानून-व्यवस्था का पालन न करना था। इस पुस्तक में लेखक ने घटनास्थल पर उपस्थित एक उच्च पुलिस अधिकारी की हैसियत से दंगों और बाद में उन्हें छिपाने तथा अपराधियों को बचाने की सुसंगठित सरकारी कोशिशों का पर्दाफ़ाश किया है। दंगों के दौरान उनकी रिपोर्टें और बाद में दंगों की जाँच करने वाले जाँच आयोग के सामने उनके बयान राजनेताओं, पुलिस तथा नौकरशाहों की घिनौनी भूमिका का पर्दाफ़ाश करते हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित विशेष जाँच दल (एस.आई.टी.) के कार्य को उन्होंने निकट से देखा और इस निष्कर्ष तक पहुँचे कि एस.आई.टी. ने अपराधियों को उनके कुकृत्यों का दण्ड दिलाने के बजाय उनको बचाने वाले वकील के तौर पर काम किया। गुजरात के दंगे और बाद की परिस्थितियों के चश्मदीद गवाह ने यह पुस्तक अपनी अन्तरात्मा के बोझ को हल्का करने के लिए लिखी है ।’
आरबी श्रीकुमार के बारे में कहा जाता हैं कि उन्होने सिर्फ बीजेपी पर ही आरोप लगाए लेकिन यह भी सच नही हैं अपनी किताब में उन्होने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर दंगा पीडि़तों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने का भी आरोप लगाया, उन्होने एक जगह कहा था कि 2002 गुजरात दंगों में कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की मौत के बाद उनकी पत्नी जकिया जाफरी से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मिलना चाहती थीं। लेकिन उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)