रवीश का सवाल: विपक्ष कब अख़बार फाड़ो आंदोलन शुरू करेगा? क्या ख़त्म हो जाने के बाद?

Alt News की इस रिपोर्ट को देखिए। पता नहीं इस तरह का काम और कहाँ कहाँ हो रहा होगा। जब आप पुष्टि नहीं कर सकते तब फिर फ़र्ज़ी वीडियो कैसे शेयर कर सकते हैं । इस वीडियो के आधार पर कैसे अलग अलग जगहों पर खबर छपती है। सिम्पल दिमाग़ लगाने की बात थी। सपा का उम्मीदवार पाकिस्तान बनाना है का नारा क्यों लगाएगा? तभी कह रहा हूँ जब तक विपक्ष सारा काम छोड़ कर गोदी मीडिया के ख़िलाफ़ जन आंदोलन नहीं चलाएगा उसकी किसी लड़ाई का मतलब नहीं।

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मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि विपक्ष को हर दिन अपनी सभाओं में अख़बार पढ़ कर फाड़ना चाहिए। लोगों को बताना चाहिए। सपा के इस प्रत्याशी को भी करना चाहिए कि कैसे उसे बदनाम करने के लिए हज़ारों करोड़ों के मीडिया घराने लगे हैं। जबकि यह काम मीडिया का है कि वह अफ़वाहों का पता लगाए लेकिन यहाँ तो पूरा तंत्र मिला हुआ है। आप इस लेख को पढ़िए तो पता चलेगा कि किस तरह का खेल चल रहा है।

ज़रूर लिखने बोलने में गलती होती है। हम लोगों से भी होती है लेकिन यह हरकत कुछ और है। चूक होती तो बताने पर सुधार किया जाता है लेकिन इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद आप जान सकेंगे कि हो क्या रहा है।

क्या पत्रकारिता समाप्त हो गई है?

पत्रकारिता केवल ख़त्म नहीं हुई है बल्कि इसकी जगह जिन रिपोर्ट के सहारे पत्रकारिता के बचे होने का दावा किया जा रहा है उसे लेकर भी सवाल होने चाहिए। यह विषय निरंतर सोचते रहने का है। आपके भीतर के दर्शक को ख़त्म किया जा रहा है। प्राइम टाइम के इस अंक में इस पर एक टिप्पणी है। जिसे यहाँ चस्पाँ कर रहा हूँ ताकि आप इस बात को अपनी आदतों से जोड़ कर देखें या जो देखा है उससे जोड़ कर देखें।

“चुनावी चर्चाओं में ऐसी खबरें अब गायब होने लगी हैं क्योंकि ये देखने वालों में उत्तेजना पैदा नहीं करती हैं। यही कारण है कि पत्रकार राह चलते लोगों से बात करने लगते हैं और लोगों की बातें रोचक भी लगती हैं। इसमें एक फर्क नोट कीजिएगा। आपको लगेगा कि आप लोकेशन से रिपोर्ट देख रहे हैं मगर लोकेशन से भी लोकेशन गायब है। जैसे आम आदमी बहुत गुस्से में या रोचकता से बता रहा है कि अस्पताल स्कूल की हालत खराब है लेकिन उन जगहों पर पत्रकार नहीं जाता है। इस तरह से लोकेशन में से लोकेशन माइनस कर दिया जाता है और आपको लगता है कि आप ग्राउंड से रिपोर्टिंग देख रहे हैं।  “ 

बहुत धीरज और मुश्किल काम है दर्शक होना। एक बार यह तार टूट गया तो आप अकेले दम पर या हज़ारों करोड़ लगाकर पत्रकारिता खड़ी नहीं कर सकते। अफ़सोस कि इस तार को भी न्यूज़ चैनलों ने ही तोड़ा है। स्पीड न्यूज़ ने आपके दर्शक होने को रौंद डाला। एक समय था जब इस स्पीड न्यूज़ को लेकर काफ़ी बोला करता था। तब भी किसी ने नहीं सुना।

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)