प्रदर्शनकारियों के नाम रवीश का पत्र, हे भावी अग्निवीरों, मैं जानता हूँ कि मेरी बात समझने में कई साल लगेंगे…

हे भावी अग्निवीरों

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हिंसा रोक दो। 19 जून को कई परीक्षाएँ हैं। बाक़ी युवा कैसे जाएँगे परीक्षा देने? हिंसा के कारण आपने समाज का समर्थन खो दिया है। पहले भी नहीं था लेकिन अब पूरी तरह खो दिया है। इस तरह की तोड़फोड़ और आगज़नी भयावह है। इतनी ट्रेनें जला दी गई हैं कि लोगों का आना-जाना मुश्किल हो गया है। आपने जैसे दूसरों को हराया, इस बार आपके हारने की बारी है। अपनी हार स्वीकार कर लें और हिंसा छोड़  दें। जीत चाहते हैं तो शांति से संवाद करें। विधायकों और सांसदों से बात करें।

यही वक्त है सोचने का कि कोई बात पसंद नहीं आई तो सबसे पहले हिंसा का ध्यान कैसे आया? आपका सपना टूटा है लेकिन किसका नहीं टूटा है। आप एक बार याद करें उन तर्कों को, जिनसे आपने अदालत के फ़ैसले के पहले किसी के घर गिरा दिए जाने को सही ठहराया था, इसके याद आते ही आपको अपने सपनों का तोड़ दिया जाना सही लगने लगेगा। तकलीफ़ होगी मगर आप जल्दी नार्मल हो जाएँगे।

इस तरह से बेलगाम हिंसा देखी नहीं जा रही है। इस योजना का लिखित विरोध करें। फ़ेसबुक पर पोस्ट करें। व्हाट्स एप में लिखें। ट्विटर पर ट्रेंड कराएँ। मेरी तरह हर दिन लिखते रहें, जिससे कुछ नहीं होता है लेकिन हारने का जो सुख मिलता है,उसकी तुलना जीत के सुख से नहीं की जा सकती। मैंने गोदी मीडिया के बारे में इतना लिखा, क्या हो गया? जो मीडिया बचा था, वह भी गोदी हो गया। हर दिन अपने लिखे का, बोली हुई बातों का मज़ाक़ उड़ते देखता हूँ, आप सबसे और ख़ुद से हारता हूँ। तब भी हर दिन पहले से बेहतर महसूस करता हूँ।

आप भी हारने के लिए कमर कस लें। नौकरियों के दिन चले गए। जिसे आप अच्छी नौकरी कहते हैं, उनमें भी कम यातना नहीं है। नोटबंदी की तरह अग्निपथ को गले लगा लें। आख़िर यह समाज कोरोना की दूसरी लहर में बिना ऑक्सीजन के अपनों को मरता-तड़पता देखने के बाद भूल गया न, मान लिया न कि आक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा। धर्म की राजनीति का यही लाभ मिलता है। मानसिक सुख प्राप्त होता है। गर्व का भाव आता है।

एक दिन आप भी इस दर्द को भूल जाएँगे कि पंद्रह साल की नौकरी चार साल की हो गई। मोदी जी ने किया है तो कुछ अच्छा सोच कर किया होगा। यही क्या कम राहत की बात है कि राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया? तब सोचिए आप इस देश को और ख़ुद को कितना कोसते?

मेरी अपील है कि हिंसा का रास्ता छोड़ दें। मैं जानता हूँ कि आपने आठ सालों में गांधी को इतनी गाली दी है कि अहिंसा का नाम सुनकर भड़क उठेंगे लेकिन मैं याद दिलाना चाहता हूँ कि अहिंसा पर केवल गांधी जी की कॉपीराइट नहीं है। गांधी भी ऐसा दावा नहीं करते थे।

मेरी राय में यह दौर सपनों के मंदिर के निर्माण का है। वह हो रहा है। आप ग़लत सपने न देखें। कई लोग आप सभी पर हंस रहे हैं। आप हिंसक प्रदर्शन छोड़ दें। मैं जानता हूँ कि मेरी बात समझने में कई साल लगेंगे, फिर भी आप इसे एक बार पढ़ कर देखिए। आपने कितनों के सपनों को रौंदते हुए देखा है, रौंदा है, एक बार अपने सपनों को कुचले जाते भी देख लीजिए। हिंसा छोड़ दीजिए।

आपका,

रवीश कुमार

दुनिया का पहला ज़ीरो टीआरपी ऐंकर