हमारे देश में एक पैटर्न है। हर सामाजिक समूह के पास नाइंसाफ़ी की अपनी कहानी है। किसी को इंसाफ़ नहीं मिला है। हिन्दू, मुसलमान, सिख, आदिवासी से लेकर दलित तक। अगर सिस्टम होता जो सरकारों के रंग से अलग सबके लिए काम करने वाला होता तो नाइंसाफ़ी की कहानियों की सूची थोड़ी छोटी होती। हत्या के बाद नाइंसाफ़ी की कथा ही बचती है। इंसाफ़ नज़र नहीं आता। इसलिए सब अपनी अपनी नाइंसाफ़ी का बेबस मैच खेल रहे हैं या खेलने के लिए मजबूर किए जा रहे हैं। संविधान की शपथ लेकर सरकार की कुर्सी पर बैठने वाले लोग इंसाफ़ नहीं करते हैं। नाइंसाफ़ी पैदा करते हैं और उसकी कथा चलवाते हैं।
आगरा का वह पत्रकार
आगरा के पत्रकार गौरव बंसल के साथ जो हुआ है उसे लेकर एडिटर्स गिल्ड का बयान आया है। पत्रकारिता करना हर दिन एक मुश्किल काम होता जा रहा है। ऐसे ही कम पत्रकार रह गए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए। जब तमाम सवालों और आलोचनाओं के रहते वे आराम से चुने गए हैं तो उनके प्रशासन को भी अपनी तरफ़ से उदारता और आत्मविश्वास का प्रदर्शन करना चाहिए। गौरव बंसल इस वक्त कितना मायूस होंगे। उनके परिवार को कैसा लग रहा होगा।
ज़रा सोचिए। बंसल समाज से अपील है कि वह भी गौरव बंसल के लिए आगे आए। अब अगर इस देश में जाति की संस्थाएँ ही राजनीतिक रुप से प्रभावी रह गई हैं तो उन्हीं के पास न्याय के लिए जाना शुरू कर देना चाहिए। न्याय पाना बरसों का इंतज़ार हो गया है। इस पूरी प्रक्रिया में लेन-देन और सिफ़ारिश के तनावपूर्ण दौर से गुजरने में जनता टूट जाती है।
महंगाई से नहीं महंगाई के सपोर्टर से ही बहस जीत कर दिखाइये
कई महीने पहले हमने इस नई राजनीतिक श्रेणी की पहचान की थी जब लोगों को लगा था कि महंगाई से जनता त्रस्त है। यह तब का समय है जब सौ रुपये लीटर पेट्रोल हो रहा था। यूपी में कई लोग मिले जो औपचारिक रूप से दर्ज करा रहे थे कि महंगाई से दिक़्क़त नहीं है। महंगाई ज़रूरी है। यूपी चुनाव के नतीजों ने महंगाई के सपोर्टरों की जीत साबित कर दी। यही वो सपोर्टर हैं जिनके रहते महंगाई का मुद्दा ध्वस्त हो गया। आप इनका मज़ाक़ उड़ाएँगे लेकिन मेरी गुज़ारिश है कि उसके पहले इन्हें ध्यान से सुन लें।
भारत की राजनीति के इतिहास में महंगाई के मुद्दे को ख़त्म करने वाले इन महंगाई के सपोर्टरों ने वो काम कर दिखाया जो कोई सरकार भी नहीं कर सकती। महंगाई के समर्थकों की जीत का सम्मान कीजिए। हाँ ज़रूर दाम बढ़े तो उसे दर्ज कराइये लेकिन याद रखिए कि जनता के बीच दो वर्ग हैं। एक जो महंगाई से परेशान है और एक जो महंगाई का स्वागत करता है। समर्थन करता है। इस श्रेणी की पहचान के लिए और टीवी पर सम्मान के साथ लाने के लिए मुझे फ़ुल टंकी पेट्रोल फ़्री मिलना चाहिए!
(लेखक जाने-माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)