रवीश का लेखः 2019 से वही हेडलाइन छप रही है- सौ लाख करोड़ का इंफ़्रा

15 अगस्त 2019, 15 अगस्त 2020, 15 अगस्त 2021, लगातार तीन साल तक प्रधानमंत्री ने सौ लाख करोड़ के इंफ़्रा का नाम लिया है। 2019 के बजट में इरादे की घोषणा हुई थी। इस योजना में केंद्र की हिस्सेदारी 39 परसेंट होनी है और राज्यों की 40 परसेंट। बाकी प्राइवेट सेक्टर। लेकिन प्रचार केंद्र सरकार अपना कर रही है। आगे इस एपिसोड में देखिएगा तो बजट को देखने का अनुभव बदल जाएगा।

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वरुण गांधी और भाजपा

सांसद किसी भी दल का हो, वह उसके अनुशासन या नियमों से बंधा होता है लेकिन वह एक स्वायत्त राजनीतिक प्राणी भी होता है। अगर वह अपनी इस स्वायत्तता को गँवा देगा तो अपने क्षेत्र की जनता की नुमाइंदगी का नैतिक अधिकार भी गँवा देगा। वरुण गांधी जो बोल रहे हैं उसे केवल बग़ावत के फ़्रेम में मत देखिए। मोदी दौर में सासंद की स्वायत्ता समाप्त हो गई। उनका बोलना नेता के लिए बोलने तक सीमित हो गया। अपने क्षेत्र की जनता के लिए बोलना बंद हो गया। उन्हें सरकार के प्रोपेगैंडा का प्रचारक बना दिया गया। और तो और एक अजीब परंपरा शुरू हो गई। प्रधानमंत्री को सुनने की। मन की बात आ रहा है तो सांसद फ़ोटो भेज रहे हैं कि वे सुन रहे है।

अगर प्रधानमंत्री को बुरा न लगे तो इतना सतही भाषण इतने सम्मान के साथ केवल भय के माहौल में ही सुना जा सकता है। दस साल बाद यही सांसद इस तस्वीर को छुपाते फिरेंगे। आप मन की बात सुनते हुए सांसदों और मंत्रियों ने जो ट्विट किए हैं उसे ध्यान से देखें। पार्टी के भीतर सुनने का अनुशासन बनाया गया है जैसे कोई आकाशवाणी हो रही है और लोग सुन रहे हैं। यह बताता है कि सांसद की ही नहीं पार्टी के भीतर नेताओं और कार्यकर्ताओं की स्वायत्ता भी समाप्त हो गई है। छठी क्लास के छात्र की तरह सांसद मन की बात सुनते हुए फ़ोटो खींचा रहे हैं।

पार्टी के ढाँचे को निरंकुश तंत्र में बदला जा चुका है। इस संदर्भ में वरुण गांधी का बोलना देखा जाना चाहिए। वे बोलते हुए एक सांसद की स्वायत्ता बहाल कर रहे हैं। हर पार्टी में ऐसा होना चाहिए।

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)