रवीश का लेखः लोकतंत्र का सबसे बड़ा ख़तरा पैसावाद है, पैसा किसका है प्रधानमंत्री नहीं बताएंगे

अब आप शायर रावल की रिपोर्ट देखें। दिव्य भास्कर के शायर रावल की एक बार और बार चर्चा की है। गांधीनगर में निगम चुनाव हुए थे। इसके लिए भाजपा के उम्मीदवारों ने हलफनामा दिया। 41 उम्मीदवारों के हलफनामे में ग़लतियां भी एक जैसी है। खर्चे का जो हिसाब है वह तो और भी कमा है। सभी 41 उम्मीदवारों ने 1,33,380 ₹ ख़र्च किए हैं। हैं न कमाल का हिसाब और संयोग। राज्य चुनाव आयोग पर जनता का पैसा ख़र्च ही क्यों हो रहा है।

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अब आयोग को आधिकारिक रुप से बंद कर देना चाहिए ताकि इसका पैसा बच जाए। जब उनसे काम नहीं हो रहा है तो फिर क्या फायदा।झूठ मूठ कर रिश्तेदारी में हल्ला होता होगा कि चुनाव आयोग में चले गए हैं। संवैधानिक हो गए हैं। गेम देखिए, सभी 41 उम्मीदवारों ने डीजे से लेकर चाय की दुकान का बिल एक ही जगह का दिया है। गांधी नगर के एक वार्ड का नाम महात्मा मंदिर है। वहां के भाजपा उम्मीदवार ने भी वही काम किया है। अलग अलग 41 वार्ड एक ही जगह से सभी कुछ खरीदते हैं। एक ही जगह का बिल देते हैं और ख़र्चा भी एक समान दिखाते हैं।

प्रधानमंत्री ध्यान भटकाने के लिए पैसावाद के इस खेल से आपका ध्यान भटकाने के लिए परिवारवाद को लोकतंत्र का ख़तरा बताते हैं। लोकतंत्र का सबसे बड़ा ख़तरा राजनीतिक दल अपने हिसाब से तय करते हैं। जनता को अपनी नज़र से उन ख़तरों को देखना चाहिए। परिवारवाद भी ख़तरा है और पैसावाद भी। इन दोनों से बड़ा ख़तरा कुछ और है। जो आप देख रहे हैं। गोदी मीडिया। लेकिन प्रधानमंत्री ने अपने लिए लोकतंत्र का सबसे बड़ा ख़तरा परिवारवाद चुन लिया। आखिर जब तमाम ख़तरों को लेकर उन पर आरोप लग रहे हैं तो वे भी तो कुछ लगाएंगे।

अभी जो ख़तरा दिख रहा है वह यह कि उनके शासन के नीचे संस्थानों को ख़त्म किया जा रहा है। लोकतंत्र की चुनौतियां केवल पार्टी में नहीं हैं, संस्थाओं में भी हैं। कितनी आसानी से कह दिया कि ED CBI अपना काम करती रहती हैं, निष्पक्ष हैं। बीच में चुनाव आ जाता है। हंसी आ जाती है। चुनाव के समय केवल विपक्ष के ही लोग धरे जाते हैं। और ED जैसी निष्पत्र एजेंसी के सीनियर आई पी एस अफसर इस्तीफा देकर बीजेपी से चुनाव भी लड़ते हैं।

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)