मैंने प्राइम टाइम के अनगिनत एपिसोड में कहा है कि ‘वे’ आपके बच्चों को दंगाई बना रहे हैं। तब मेरा विश्वास था कि हर माँ-बाप और युवा भी, इतने स्वार्थी तो होते ही हैं कि अपना जीवन बर्बाद नहीं करेंगे।दंगाई नहीं बनेंगे लेकिन समाज ने मुझे ग़लत साबित किया। असल में ऐसा होने से कोई नहीं रोक सकता था। नफ़रत की विचारधारा की स्थापना राष्ट्र और धर्म के गौरव के बहाने आदर्श के रूप में प्रचलित कर दी गई है। इसके दो प्रकार के समर्थक हैं। अति सक्रिय समर्थक जो सड़कों पर उतरते हैं और सक्रिय समर्थक जो सोशल मीडिया से लेकर सामाजिक बैठकों में इसका समर्थन करते हैं। इसकी सामाजिक मान्यता इतनी बढ़ चुकी है कि कोई भी इसकी चपेट में आ सकता है और दंगाई बन सकता है।
यह बात केवल एक धर्म के लिए नहीं है। सभी धर्मों के लिए है। अयोध्या और गोरखपुर के केस में आपने देख लिया। यह भी मुमकिन है कि कोई बहुत पढ़ा लिखा और शांत मन वाला इसकी चपेट में आ जाए और कोई मानसिक रुप से बीमार व्यक्ति भी हथियार उठा ले। लेकिन, अब इसका विस्तार इतना बढ़ चुका है कि इस समंदर को थामना मुश्किल है और ख़ास कर तब जब हिन्दी प्रदेश के युवाओं को इसमें आनंद आने लगे और वह अपनी पहचान का हिस्सा बना ले। यही कारण है कि समय-समय पर धर्म को लेकर कोई न कोई मुद्दा खड़ा किया जाता है ताकि जो समाज तैयार किया गया है वह इसके पक्ष में लगातार उतरता रहे। उसे भी एक दिन का आराम नहीं दिया गया है। इसलिए, नहीं दिया जा रहा है क्योंकि इसकी रुपरेखा ही इस तरह से बनाई जाती है कि जो भी चपेट में आए, उसे कुछ और सोचने का मौक़ा न मिले। कश्मीर फाइल्स ख़त्म नहीं हुई कि यात्रा को लेकर विवाद हुआ, यात्रा ख़त्म नहीं हुई तो लाउडस्पीकर को लेकर झगड़ा होने लगा। विगत सात वर्षों में लोगों को इस स्तर का मूर्ख बना दिया गया है कि अब दंगा कराने के लिए कुछ नया नहीं सोचना पड़ता है। वही पुराना तरीक़ा जो सौ साल से आज़माया जा रहा है। लाउडस्पीकर को लेकर झगड़ा और मंदिर-मस्जिद के आगे मांस फेंक देना। धर्म ग्रंथों की बेअदबी कर देना अब भी लोग इन सब पर प्रतिक्रिया करते हैं और यक़ीन करते है कि ऐसा करने से दंगा हो जाएगा। इस मूर्खता से लड़ना असंभव होता जा रहा है।
एक पैटर्न और है। धर्म को लेकर जो युद्ध चलाया जा रहा है, उसमें आपको लगता होगा कि आप धर्म युद्ध में हैं। धर्म के लिए युद्ध कर रहे हैं। लड़ना ही धर्म के बारे में जानना है। जबकि ऐसा नहीं है। धर्म के नाम पर छोटा रास्ता लेने वालों को पता होना चाहिए कि नफ़रत के मुद्दों से धर्म के गौरव की स्थापना नहीं होती है। अगर आप वाक़ई धर्म को लेकर चिन्तित हैं तो अध्ययन कीजिए। बहुत सारे सुंदर ग्रंथ हैं, जिनके अध्ययन से आप ख़ुद को समृद्ध महसूस करेंगे।लेकिन, इसकी जगह लोग केवल लड़ने का बहाना खोज रहे हैं।उम्मीद है आप नफ़रत से दूर जाने का प्रयास करेंगे।
दैनिक भास्कर ने अयोध्या में दंगा फैलाने की साज़िश में गिरफ़्तार हुए सात युवाओं के बारे में विस्तार से छापा है। सभी साधारण घरों के युवा है। इनमें से कई अपने माँ-बाप की परवाह तक नहीं करते। बेरोज़गार हैं या कम कमाते हैं लेकिन नफ़रत की दौलत से सराबोर हैं। महेश कुमार मिश्रा को मास्टर माइंड बताया जा रहा है। भास्कर ने लिखा है कि महेश कुमार मिश्रा पहले विश्व हिन्दू संगठन और बजरंग दल से जुड़ा था लेकिन बाद में उसने हिन्दू योद्धा संगठन बना लिया। ब्रिजेश पांडे, विमल पांडे, नितिन कुमार, प्रत्युष श्रीवास्तव, दीपक कुमार गौर और शत्रुध्न प्रजापति के घर और मोहल्ले तक जाकर भास्कर ने कई लोगों से बात की है।
इस रिपोर्ट को पढ़कर दुख हुआ कि दंगाई बनाने की मेरी बात सच होती जा रही है। मुझे लगा था कि ग़लत साबित होगी। इस नफ़रत से निकलना आसान नहीं है। युवाओं को इसमें मज़ा आए, शक्ति का अहसास हो इसके लिए डीजे म्यूज़िक का इस्तेमाल होने लगा है जिसके असर में भीड़ में शामिल युवाओं में कुछ कर गुज़रने का सौंदर्य जागता है। उन्हें लगता है कि वे गौरव की स्थापना जैसा महान काम कर रहे हैं और भारत को सोने की चिड़िया बना रहे हैं।
अगर हिन्दी प्रदेश के युवाओं ने धर्म के गौरव की आड़ में यही रास्ता चुना है तो क्या कर सकते हैं। एक और बार कह सकते हैं और कहेंगे ही कि नफ़रत के रास्ते पर मत चलिए।