अजित अंजुम की ख़ूब चर्चा हो रही है। लगातार रिपोर्ट फ़ाइल कर रहे हैं।किसान आंदोलन ने अपने भीतर मीडिया की अलग अलग संभावनाओं का थोड़ा और विस्तार किया है। इन संभावनाओं की अपनी सीमा है लेकिन जब कुछ न हो रहा हो तो यह भी स्वागतयोग्य है। मेरा मतलब यह है कि ज़्यादा बड़ी आबादी मुख्यधारा की मीडिया को देखने का पैसा देती है। आप अख़बार और टीवी देखने का फोकट का पैसा देते हैं। इन संस्थाओं ने मीडिया की भूमिका छोड़ दी है लेकिन इनका पैसा बना हुआ है। संस्थान की अपनी भूमिका होती है। इनमें जानकारी जुटाने और पहुँचाने के ख़तरे उठाने की क्षमता होती है। अब पत्रकार किसी मंत्रालय के भीतर से जानकारी नहीं ला पा रहे हैं। अपने उद्गम स्थल पर सूचनाएँ सूख गई हैं।
ज़ाहिर है मैदान ही बचता है। अगर सरकार और विज्ञापन तंत्र पत्रकारिता को टिकने नहीं दे रहा है तो पत्रकारों को मैदान में फैल जाना चाहिए। अजीत अंजुम और अन्य पत्रकारों ने यू ट्यूब के माध्यम से किसान आंदोलन की बातों के प्रवाह को बंद नहीं होने दिया है।मुख्यधारा के मीडिया ने बंद कर दिया है। आप जितनी देर करेंगे अख़बार को बंद करने में, न्यूज़ चैनल पर पैसा और समय खर्च करने में अपना और देश का उतना ही ज़्यादा नुक़सान करेंगे।
आप इसे समझ तो रहे ही हैं तभी तो आप अजीत अंजुम को देख रहे हैं। आप जानते हैं कि गोदी मीडिया को आप पैसे तो दे देंगे लेकिन सूचनाएँ नहीं मिलेंगी। सूचनाओं के लिए अजीत अंजुम को देख रहे हैं। गोदी मीडिया को कम मत आंकिए। घर घर में लोग इसके फैलाए प्रोपेगैंडा की चपेट में हैं क्योंकि लोग इसे ही मीडिया संस्थान समझते हैं। देखते और पढ़ते हैं। इस गोदी मीडिया के कारण आज किसान अपने ही गाँव में आतंकवादी समझा जाने लगा है। हाउसिंग सोसायटी में रिटायर्ड लोग दंभ से इन्हें आतंकवादी बता रहे हैं। उन्हें ये सब सूचनाएँ गोदी मीडिया ही तो पहुँचा रहा है। आप इन लोगों से बात कर लें हर ग़लत को सही मानने की ज़िद किए हैं। इस कदर धर्मांध हो चुके हैं। धर्मांध इसलिए कहा क्योंकि इनके सच को न सुनने की वजह सिर्फ़ धर्म है। इतनी भयानक धार्मिकता कट्टरता फैली हुई है कि अब सूचना का रोल मुश्किल हो गया है।
इसलिए नेता हर वक्त धर्म का सहारा लेता है। वह जान गया है। धर्म के नाम से अक़्ल पर पर्दा पड़ जाता है। दरअसल यह अधर्म है। सच्चा धर्म या धर्म की सच्ची समझ तो झूठ और अर्धम के ख़िलाफ़ खड़ा होने की शक्ति देती है। यह कैसा धर्म है जो हर तरह के ग़लत को सही कहने का नैतिक बल देता है।
बस एक छोटी सी कल्पना कीजिए। पंजाबी के यू ट्यूब लोकल चैनल और अजीत अंजुम,अभिसार और आरफ़ा जैसे लोग नहीं होते तो आपको क्या मिलता। गोदी मीडिया ने करोड़ों को समझा दिया कि किसान आंदोलन में किसान नहीं कम्युनिस्ट और कांग्रेसी हैं। प्रोपेगैंडा वास्तविक है। सूचना अवास्तविक। इसलिए सरकार बेफ़िक्र है। वह जानती है कि सब कुछ अब छवि का खेल है। सूचना का नहीं।
अगर आप बिना कुछ किए, हाथ पाँव हिलाए इस देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो मैं एक आसान और सबसे सस्ता रास्ता बताता हूँ। सबसे पहले हिन्दी के अख़बारों और चैनलों को अपने घर और आदत से निकाल दीजिए। कुछ लोगों को तो इतना नशा हो गया है कि अपनी जेब से पैसा देकर शाम को डिबेट देखते हैं जिसमें उन्हीं को आतंकवादी बताया जा रहा होता है। इससे बेहतर है कि आप अभिसार, अजीत अंजुम और आरफ़ा को देखें।
(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)