रवीश का लेखः महंगाई से परेशान हैं तो महंगाई के सपोर्टरों की बातों से स्नान करें

मैं महंगाई के स्पेक्ट्रमों का सम्मान करता हूँ। इन लोगों ने एक बड़ा बदलाव लाया है। महंगाई से परेशान जनता को मानसिक रूप से तैयार किया है कि महंगाई नहीं है। आम तौर पर इसके नाम से घबरा जाने वाले अर्थशास्त्री महंगाई के सपोर्टर से प्रेरणा ले सकते हैं और मूल्य वृद्धि के भूत से डरने से बच सकते हैं। मैं उन सभी को महंगाई का सपोर्टर कहता हूँ जो अपने तर्कों से साबित करते हैं कि महंगाई नहीं है। है तो कमाई बढ़ी है। इनका आप मज़ाक़ उड़ाएँगे लेकिन मैं नहीं उड़ाता। इन लोगों का होना समाज में एक ऐसे राजनीतिक और आर्थिक तत्व का होना है जो किसी भी स्तर की महंगाई को देश के लिए ज़रूर बता सकता है और जनता मान जाती है। आप भी कोशिश कर सकते हैं। अगर आप महंगाई से परेशान हैं तो महंगाई के सपोर्टर की सुनिए। आप महंगाई से स्नान करने लगेंगे।

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रही बात धर्म के नाम पर तमाशा करने की तो वो तो आपका स्वाभाविक लक्षण हो गया है। ये नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे। किसी की दुकान बंद करा देना किसी का खाना बंद करा देना अगर ये सब नहीं करेंगे तो ख़ुद को उदार और सहिष्णु कैसे कहेंगे।

तो अब भर्ती नहीं निकलेगी

सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए ख़ुशख़बरी। तीन साल के लिए मिलेगी नौकरी। नहीं मिलने से तीन साल की नौकरी तो बेहतर है। पोजिटिव सोचें और नमकीन के पैकेट फाड़ कर देखें कि भीतर क्या है , कहीं कुछ छिपाने के लिए तो अरबी में नहीं लिखा है! तीन साल की नौकरी का स्वागत किया जाना चाहिए। तीन साल दौड़ने में लगा देने वाले युवाओं को तीन साल की नौकरी मिल रही है इससे बड़ी बात क्या हो सकती है।

इस ख़बर में एक बात से एतराज़ है। कश्मीर में तैनाती का ज़िक्र क्यों हैं? क्या मानसिक दबाव बनाने के लिए कि सेना में आओगे तो आतंक वाले क्षेत्रों में तैनाती करेंगे? जो जवान होता है वह शांत क्षेत्रों में भी उसी मुस्तैदी से ड्यूटी करता है। उसके लिए सीमा पर और सीमा के भीतर हर जगह एक ही तरह की स्थिति है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र क्यों परेशान हैं? क्या सभी परेशान हैं?

आज सुबह से ही दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों की तरफ़ से मैसेज आ रहे थे। मेरी उनके मसले पर कोई राय नहीं है। छात्रों का कहना है कि कई दिनों से आंदोलन कर रहे हैं मगर कोई सुन नहीं रहा है। अब इस पोस्ट को देखकर अलग अलग राज्यों से मुझे मैसेज न करें। मेरा मन कि किस पर लिखूँगा और किस पर नहीं। यह फ़्री सेवा है। जो मैं अपने समय से समय निकाल कर करता हूँ। मेरे समय का आदर करें। मैं न तो भारत के सभी प्रदर्शनों पर पोस्ट लिख सकता हूँ और न कवर कर सकता हूँ। अगर आपको लगता है कि कुछ का नहीं किया है तो आप लिखें, आप कवर करें। मैं जो भी दिखाता हूँ उसका भी कुछ नहीं होता है। आप जो चीज़ दिखाने के लिए कहते हैं वह भी अख़बारों में छपा ही होता है तो छपने से भी कुछ नहीं होता। अपवाद को छोड़ कर।इसलिए भी दिखाने में कोई दिलचस्पी नहीं रही। इतनी सी बात न समझ पाएँ तो कोई बात नहीं।

दिल्ली विश्वविद्यालय से अपील करता हूँ कि छात्रों की माँग पर विचार करें और उनसे बात कर अंतिम फ़ैसला बता दें। छात्रों को परेशान रखने से क्या फ़ायदा। क्या दिल्ली विश्वविद्यालय से कोई इसे पढ़ेगा भी?

छात्रों का पत्र-

दिल्ली विश्वविद्यालय अपनी मनमानी कर रहा हैं , हमारा 70 से 75 प्रतिशत कोर्स ऑनलाइन क्लासेज में पीडीएफ रीड करके kava दिया और वो भी फिजिक्स, केमिस्टरी एवम मैथ्स जैसे विषयों को और जब से कॉलेज खुले है हमारी मात्र 10 क्लास ऑफलाइन mode में हुई हैं ,अब ये हमारी ऑफलाइन एग्जाम ले रहे है

हम ने बार बार विश्विद्यालय को इस बारे में अवगत करा दिया है , पिछले 2 महीनों से हम लगातार बात कर रहे है , आंदोलन कर रहे है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रहे हैं  कैंपस के अंदर  पुलिस को बेझकर स्टूडेंट्स को डराया जा रहा है, बच्चों को पीटा जा रहा हैं ,तमाम बच्चे बहुत ज्यादा परेशान है , आन्दोलन को हम सब छात्र लीड कर रहे है , इन लोगो ने हमारे 10 छात्रों पर  FIR लगवा दी हैं , जिससे उनका करियर खराब किया जा सके , और भविष्य मैं कभी कोई इनके खिलाफ आवाज न उठा सके ,

हमारे कई छात्र हंगर स्ट्राइक pr bethe हुए हैं , जिनकी कोई परवाह nhi hai du को

मुकदमे लगने से आहत 3 विद्यार्थी,

नोट- हमारे पास दिल्ली विश्वविद्यालय का पक्ष नहीं है।