रवीश का लेख: आम आदमी की आर्थिक तबाही के बीच चमकता सरकार का झूठ और शेयर बाज़ार

नरेंद्र मोदी की सरकार ने अर्थव्यव्था और वित्तीय प्रबंधन का बेड़ा ग़र्क कर दिया है। दावों से अलग आप हकीकत पर नज़र रखिए। अख़बारों में जो थोड़ा बहुत छप रहा है उसे खोज-खोज कर पढ़िए। यह उनकी सरकार का सातवां साल है। ज़्यादातर लोगों की आर्थिक तरक्की नहीं हुई है।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

GST इस गारंटी पर लाया गया थी कि केंद्र जो वसूलेगा उसमें से राज्यों को जो घाटा होगा उसकी भरपाई केंद्र करेगा।जीएसटी वसूली के आंकड़े आपको अस्सी हज़ार तो कभी एक लाख करोड़ बता दिए जाते हैं लेकिन केंद्र की हालत खराब है। वह राज्यों का हिस्सा देने के लिए ख़ुद भी लोन ले रहा है औऱ राज्यों से भी लोन लेने के लिए कह रहा है।

राज्य अब अपने पैसे के लिए केंद्र की तरफ ताकते रहते हैं, उनका ही पैसा जब दिया जाता है तो यह बड़ी ख़बर बन जाती है कि इस बारमिल गया। इससे राज्यों पर बुरा असर पड़ रहा होगा। यही कारण है कि राज्यों की आर्थिक स्थिति ख़राब हो रही है। 2022 के बाद अगर केंद्र ने राज्यों के टैक्स घाटे की भरपाई बंद कर दी तो तबाही आ जाएगी। राज्य मांग कर रहे हैं कि इसे अगले पांच साल के लिए बढ़ाया जाए।

जीएसटी से यही होना था, इन ख़तरों के बारे में पहले ही चेतावनी दी गई थी। जीएसटी ने आपके जीवन को कितना प्रभावित किया है उसे जोड़िए। हाउसिंग सोसायटी में आप मासिक रख-रखाव का बिल देते हैं, उस पर भी जीएसटी लगती है। रेलवे के ठेकेदार परेशान हैं जो सामान वे बाज़ार से ख़रीद कर लाते हैं, यानी पहले से जीएसटी देकर लाते हैं, सरकार उनसे भी जीएसटी भी लेती है। रेलवे के ठेकेदार जब तक हड़ताल करने की बात करते रहते हैं।

नरेंद्र मोदी की नीतियों की यही खूबी है। उन्हें इस तरह पेश किया जाता है जैसे हर किसी को लगे कि इसका समर्थन करना ही है। ताकि वे पढ़े-लिखे लगे। इस जीएसटी ने कितनी बर्बादी की है इसका हिसाब इसलिए नहीं होता क्योंकि मीडिया और उद्योग के लोग डर से बोलते नहीं है। जीएसटी की अवधारणा कांग्रेस की देन है मगर यह लागू नहीं हो रही थी। नरेंद्र मोदी ही गुजरात से विरोध कर रहे थे। अब राहुल गांधी जीएसटी के ख़िलाफ़ बोलते रहते हैं। इसीलिए कहता हूं कि आर्थिक नीतियों पर बारीक नज़र रखा कीजिए। आपको दोनों में या तो अंतर नहीं मिलेगा या उस अंतर को लेकर स्पष्टता नहीं दिखेगी।

लोन लेकर राज्यों को पैसे दिए जा रहे हैं। यूपी का चुनाव है। इस बार जो पैसा जारी हुआ है उससे यूपी को भी बड़ा हिस्सा मिलेगा। आप जानते ही हैं यह पैसा किस काम आएगा। उत्तर प्रदेश सरकार की हालत देखिए। कई हफ़्तों से हर दिन अख़बार में सरकार की कामयाबी पर विज्ञापन छप रहे हैं। लेकिन यह सरकार चार लाख रसोइया को आठ महीने से वेतन नहीं दे पा रही है। ये रसोइया स्कूलों में मध्याह्न भोजन बनाते हैं। इनका वेतन मात्र 1500 है। इतना कम पैसा भी सरकार देने की स्थिति में नहीं हैं। रसोइया के बारे में सोचिए। उसकी हालत कितनी ख़राब होगी।

उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री का बयान टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा है। श्रीकांत शर्मा का कहना है कि यूपी पावर कारपोरेशन के पास कोयला ख़रीदने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। विद्युत निगम के पास एनटीपीसी को देने के लिए भी पैसा नहीं है, जिससे बिजली ख़रीदा है। विद्युत निगम का घाटा नब्बे हज़ार करोड़ का हो गया है। निगम के जूनियर इंजीनियर अपने वेतन को लेकर हड़ताल पर हैं।

29 अक्तूबर के हिन्दू में एक ख़बर छपी है। मनरेगा के फंड में पैसे नहीं हैं। मनरेगा का अपना फंड निगेटिव में चला गया है। 8,686 करोड़ की कमी हो गई है। अभी वित्तीय वर्ष पूरा भी नहीं हुआ है। मनरेगा में काम करने वालों को पैसा नहीं मिल रहा है।

2019 में दो दिन लगा था कोरपोरेट टैक्स कम हो गया था। डेढ़ लाख करोड़ टैक्स की राहत दे दी गई जिसके बारे में ख़ुद वित्त मंत्री ने आगे चल कर बयान दिया कि जितना निवेश होना था, उतना तो हुआ नहीं। कोरपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए ख़ूब सपने दिखाए गए कि निवेश बढ़ेगा। नौकरियां आएंगी। टैक्स छूट से कारपोरेट का मुनाफा भयंकर बढ़ा है।मुनाफ़ा बढ़ेगा तो शेयर बाज़ार में शेयरों के दाम बढ़ेंगे ही।अर्थव्यवस्था के नाम पर इस देश में केवल स्टॉक मार्केट बचा है। बैंकों में ब्याज दर इतना निगेटिव कर दिया गया है कि हर आदमी शेयर बाज़ार की तरफ भाग रहा है। मजबूरी की इस चकम को आप अर्थव्यवस्था न समझ लें। शेयर बाज़ार अर्थव्यवस्था नहीं है।

इसलिए कारपोरेट मोदी सरकार से खुश रहता है, चुप रहता है या मोदी मोदी करता है क्योंकि उसका हिस्सा मिल चुका है। उनके मोदी मोदी करने से आपको लगता है कि अर्थव्यवस्था तेज़ी से भाग रही है जबकि अमीर अपना पैसा बाहर ले जा रहे हैं। ख़ुद भी बाहर बसने लगे हैं। जो यहां हैं उसके ख़ून से टैक्स निकाला जा रहा है।

12 साल में पहली बार हुआ है जब कारपोरेट टैक्स का कलेक्शन इंकम टैक्स से कम हुआ है। पहले हमेशा ज़्यादा होता था। जीएसटी का हाल आपने देख ही लिया। कोरपोरेट टैक्स से भी कम मिल रहा है। सरकार ने इसका बोझ आप पर डाल दिया है। उसके पास पैसा नहीं हैं। पांच साल में पेट्रोल और डीज़ल से टैक्स की वसूली 14 लाख करोड़ से अधिक हो चुकी है।इसकी भरपाई आप जनता से हो रही है। पेट्रोल और डीज़ल के दाम आप कितने महीनों से दिए जा रहे हैं। सरकार आपकी जेब से कई हज़ार रुपये निकाल चुकी है।

पहले भी सरकारी योजनाएं होती थीं लेकिन उसकी भरपाई इस तरह पेट्रोल और डीज़ल के दाम नहीं बढ़ाए जाते थे। शुक्र है कि मोदी को उन मूर्ख दलीलो का समर्थन मिल रहा है जो आपको बताता है कि विकास का काम हो रहा है तो दाम बढ़ेगा। लेकिन उस विकास के काम में आपका तो कुछ नहीं बढ़ रहा है। लोगों की कमाई कम हो रही है। पहले भी पोलिया का टीकाकररण हुआ लेकिन इसके बजट का पैसा लोगों से नहीं वसूला नहीं गया। मूर्खों को आप नहीं समझा सकते हैं।

अब आते हैं खाद संकट पर। सरकार को अगस्त में ही पता था कि खाद का स्टाक भयानक तरीके से कम है। हर साल आयात भी घटता जा रहा है। इसका कारण यही हो सकता है कि खाद का आयात करने वाली कंपनियों को सब्सिडी का पैसा नहीं मिल रहा है या दाम नहीं मिल रहा है। लेकिन आप मंत्रियों के जवाब देखिए। एक ही बात होती है कि खाद पर सब्सिडी बढ़ा दी गई है। लेकिन वो किसे दी जा रही है? किसान को जब खाद ही नहीं मिल रहा है तब वह सब्सिडी कहां हैं। देश भर के किसान खाद के लिए परेशान हैं। मंत्री खाद की बात नहीं करते, सब्सिडी की बात करते हैं।

बाकी आप हिन्दू मुस्लिम ही करेंगे। आपकी यही नियति तय कर दी गई है। इसलिए यह बात रोज़ रोज़ लिखता हूं ताकि आप दंगाई बनना छोड़ें और नागरिक बनना सीखें। ये आर्थिक नीतियां आपको कहीं का नहीं छोड़ने वाली हैं। केवल अपना नहीं, आस-पास भी ज़रा देखते रहिए समझ आ जाएगा कि क्यों राजनीति का फैसला मस्जिद और नमाज़ पर हमलों से हो रहा है। क्यो आप बेरोज़गार हैं और नौकरी मांगने पर लाठी मारी जा रही है।

नोट- लंबे लेख पढ़ा कीजिए, शार्ट कट के कारण आपका जीवन ही शार्ट कट हो गया है। इस वक़्त की बर्बादी को समझने के लिए मेहनत तो करनी पड़ेगी। फिर उसके बाद आप मोदी मोदी करते रहिएगा।

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं,यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)