धारा 370 हटाते समय संसद में अमित शाह ने कहा था कि अक्साई चीन भी लेंगे। उसके बाद से इस मुद्दे पर कभी नहीं बोले।चीन पूर्वी लद्दाख में आ धमका और पुल बनाने लगा। अक्साई चीन पर वो उनका अंतिम भाषण था। कुछ हफ़्ते पहले मनोज सिन्हा और जम्मू कश्मीर प्रशासन का विज्ञापन हिंदी प्रदेश के अख़बारों में ठेला जाने लगा। कश्मीर के विकास के ऐसे दावे थे कि लगा कि अब वहाँ सारे काम हो चुके हैं, बस ताला बंद कर आने की ज़रूरत है।
ख़ैर हिन्दी प्रदेश को इससे ज़्यादा क्या चाहिए। फिर एक फ़िल्म आई। इसके ज़रिए महंगाई और बेरोज़गारी के कारण लुके-छिपे समर्थकों में जोश भरा गया और वे कश्मीर को लेकर हिन्दी प्रदेश में सक्रिय हो गए। कुल मिलाकर भावुकता और झूठ के सहारे जन समर्थन जुटा लेने की रणनीति अपनी जगह तो सही हो सकती है मगर इससे समस्या का हल नहीं निकलता।
कश्मीरी पंडित पलायन कर रहे हैं। उन्हें मोदी सरकार की मज़बूती पर भरोसा नहीं है। वे एयरपोर्ट तक आ गए हैं। उन्हें भागने से रोका जा रहा है और वे भागने से ख़ुद को रोक नहीं पा रहे। घाटी में आतंकवाद बेलगाम हो चुका है। वहाँ सभी को निशाना बनाया जा रहा है। कश्मीर के आम मुसलमान भी मारे जा रहे हैं लेकिन वे भाग नहीं रहे हैं। उनके पास भागने की कोई जगह नहीं है। लेकिन डर उनके मन में भी है। इसलिए वे कश्मीरी पंडितों के साथ आतंक के ख़िलाफ सड़कों पर उतरे हैं और वहाँ के पंडितों ने राहुल भट्ट और रियाज़ अहमद अमर रहे के नारे लगाए हैं। इन दोनों को आतंकवादियों ने मार दिया है।
उधर बीजेपी सरकार ने जिस हार्दिक पटेल पर देशद्रोह का आरोप लगाया, जेल में बंद कर दिया, उन्हें बीजेपी अपनी पार्टी में ले आई है। ऐसा तभी हो सकता है जब यह यह पक्का हो जाए कि गोदी मीडिया और आई टी सेल लगाकर हिन्दी प्रदेश के युवाओं के सोचने समझने की शक्ति हमेशा के लिए ख़त्म की जा चुकी है। किसी को दिखेगा ही नहीं कि बीजेपी के लिए देशद्रोही हार्दिक उसके सिपाही हो जाएँगे।