“भारत के प्रति बैर भाव रखने और इस क्रम में उसे नीचा दिखाने की कोशिश करने वाले विदेशी मीडिया के एक हिस्से की इस आशय की एक रपट को विपक्ष और खासकर कांग्रेस जिस तरह से अंतिम सत्य के रुप में प्रस्तुत कर रही है कि भारत ने कुछ लोगों की जासूसी के लिए एक रक्षा सौदे के तहत इज़रायल से पेगासस साफ्टवेयर खरीदा था उस पर हैरानी नहीं। यह समझना कठिन है कि जब इस सारे प्रकरण की जांच सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त एक समिति की ओर से की जा रही है तब फिर उसके निष्कर्षों की प्रतीक्षा करने से क्यों इन्कार किया जा रहा है?”
न्यूयार्क टाइम्स ने पेगासस जासूसी सॉफ़्टवेयर पर जो रिपोर्ट छापी है उसके बारे में जागरण का संपादकीय इन पंक्तियों से शुरू होता है। यह संपादकीय पूरी तरह से भ्रामक है। जागरण न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट को भारत विरोधी बता कर एक साल लगाकर अलग अलग देशों में अलग अलग लोगों से मिलकर और साक्ष्यों को जुटा कर तैयार की गई रिपोर्ट को ख़ारिज कर रहा है। अगर ख़ारिज ही करना था तो उसके पास अपने कुछ ठोस तर्क होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के नाम पर विपक्ष के सवालों को खारिज कर रहा है। क्या जागरण को नहीं पता कि सरकार ने अपनी तरफ से जांच कराने से इंकार कर दिया था। क्या जागरण को यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं लगता कि सरकार के दावे से अलग तथ्य सामने आए हैं कि भारत में पेगासस जासूसी साफ्टवेयर ख़रीदा है? क्या जागरण को नहीं पता कि जिस वर्ष यह सॉफ़्टवेयर खरीदा गया उस वक़्त राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के बजट में बेतहाशा वृद्धि की गई थी? क्या जागरण को इस बात पर हैरानी नहीं होती है कि सरकार ने संसद में कहा है कि सॉफ़्टवेयर नहीं खरीदा गया और अखबार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत ने खरीदा है जब 2017 में प्रधानमंत्री इज़रायल गए थे?
एक साल लगाकर न्यूयार्क टाइम्स ने यह रिपोर्ट भारत को नीचा दिखाने के लिए नहीं की है। न्यूयार्क टाइम्स ने सबसे पहले तो यही बताया है कि इजरायल की NSO कंपनी ने अमरीकी खुफिया तंत्र में घुसपैठ कर ली है। तो यह रिपोर्ट अमरीका के भी खिलाफ है। और यह रिपोर्ट अमरीका को नीचा दिखाने के लिए नहीं बल्कि दुनिया को यह बताने के लिए लिखी गई है कि कैसे एक कंपनी इस तरह का सॉफ़्टवेयर बेच रही है जिसके ज़रिए आम लोगों से लेकर ख़ास लोगों के फ़ोन की जानकारी ली जा रही है। केवल जानकारी नहीं ली जा रही है बल्कि उनके फोन में संदिग्ध दस्तावेज़ डाल कर उन्हें किसी अपराध में गिरफ़्तार करवाया जा रहा है। पेगासस से यह संभव है कि आपके सिस्टम में कोई दस्तावेज़ डाल दिया जाए जिसके बारे में आपको कुछ जानकारी न हो। एक दिन पुलिस आएगी और जेल में डाल देगी कि आप आतंकवादियों की मदद कर रहे थे। इस काम के लिए कोई देश किसी देश से गुप्त रुप से सॉफ़्टवेयर ख़रीदता है तो वह अपने देश को उस देश की नज़र में गिरा देता है। क्योंकि इसका सौदा चोरी छुपे किया जाता है। आतंकवाद और सुरक्षा की आड़ में ऐसे सॉफ़्टवेयर की खरीद और इस्तमाल को लेकर जनता को मूर्ख बनाना बंद कीजिए और इस तरह के संपादकीय को थोड़ा ध्यान से पढ़ा कीजिए।
क्या सुप्रीम कोर्ट की कमेटी NSO के दफ्तर भी जाने वाली है? जहां तक पहुंच कर न्यूयार्क टाइम्स ने बताया है कि कैसे इस साफ्टवेयर का बाज़ार गुप्त रुप से खरीदा गया? क्या सुप्रीम कोर्ट की कमेटी एप्पल कंपनी से भी सबूत मांगने वाली है जिसने अपने उपभोक्ताओं का फ़ोन हैक करने के लिए NSO के खिलाफ अमरीका में मुकदमा किया है? क्या सुप्रीम कोर्ट की कमेटी व्हाट्स एप से सबूत मांगेगी जिसने NSO पर उसके उपभोक्ताओं के नंबर हैक करने के लिए अमरीका में मुकदमा किया है? क्या ये सब भारत को नीचा दिखाने के लिए हुआ है? या उस कंपनी की करतूत को बाहर लाने के लिए किया गया है जो लोगों के फ़ोन सुन रही है। क्या आप जानते हैं कि इस तरह के सॉफ़्टवेयर से आपके फोन की जानकारी लेकर आपके खाते से पैसे तक उड़ाए जा सकते हैं और आप कंगाल हो जाएंगे? क्या तब भी आपको या जागरण को इस सॉफ़्टवेयर के गुप्त इस्तमाल में कुछ गलत नहीं लगता है?
न्यूयार्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट से यह बताया है कि इज़रायल पेगासस के ज़रिए देशों को अपने पक्ष में ब्लैक मेल कर रहा है। हिन्दी के इस सबसे बड़े अख़बार को क्या यह हिस्सा नहीं दिखा? यह ब्लैकमेल इसलिए कर रहा है क्योंकि आतंक के नाम पर पेगासस लेकर आम जनता की जासूसी की जा रही है। ग़लत इस्तेमाल हो रहा है औऱ यह बात इज़रायल जानता है इसलिए वह ब्लैकमेल कर रहा है। वह संयुक्त राष्ट्र में अपने पक्ष में उन देशों से वोट करवा रहा है जिसे यह सॉफ़्टवेयर बेचता है। न्यूयार्क टाइम्स ने यह भी बताया है कि इस सॉफ़्टवेयर को भारत के अलावा हंगरी, पोलैंड और मैक्सिको ने ख़रीदा है। उन देशों ने ज्यादा इस्तेमाल किया है जो अपने लोकतंत्र को कुचलना चाहते हैं। तो यह रिपोर्ट भारत को नीचा दिखाने के लिए कैसे हो जाती है? इस तरह के तर्कों के सहारे हिन्दी का यह अख़बार अपने पाठकों के विवेक को भोथरा कर रहा है। जागरण का यह संपादकीय चालाकी भरा है। न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट को तथ्यों के सहारे नहीं बल्कि प्रतिष्ठा के फर्ज़ी दावों के आधार पर कर रहा है। दरअसल जो काम सरकार पेगासस के ज़रिए कर रही है यानी लोकतंत्र को कुचल रही है, ठीक वही काम जागरण इस तरह के संपादकीय से जनता के विवेक को कुचलने का कर रहा है। जनता विवेकहीन होगी तो लोकतंत्र अपने आप ढह जाएगा।