रवीश का लेख: मैं अब युवाओं से काफ़ी प्रभावित हूँ कि वे शिक्षा जैसे विषय को महत्व नहीं देते

अगर भ्रष्टाचार कारण होगा तो कोई ख़ास बात नहीं। जिसने भी कथित रूप से किया होगा वह किसी ज्योतिष से मिलकर नई अंगूठी बनवा लाया होगा और हवन भी करा चुका होगा। ऐसे कई लोग इस तरह से कवच पहन लेते हैं और ऐसे कवचधारियों को सरकार और समाज धर्म का प्रतिनिधि समझ कर कृपा बरसा देते हैं। इस देश के कण कण में ऐसे लोग विराजते हैं और सुखी जीवन जी रहे हैं। सरकार के हिसाब से थोड़ा एडजस्ट करते हैं और धर्म के विकास के लिए चंदा देने में पीछे नहीं रहते। ऐसा करने के बाद उनका मन हल्का हो जाता है कि भगवान और सरकार से दंड नहीं मिलेगा। जिन दो चार के खिलाफ कार्रवाई होती है वो अपना ज्योतिष बदल लेते हैं और नई अंगूठी पहन लेते हैं। सड़क का क्या है।

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यह घटना राजस्थान की है। एक निजी यूनिवर्सिटी के लिए बिल पेश होती है और जब पता चलता है कि सब कुछ फ़र्ज़ी है तो विधेयक वापस लिया जाता है। इसके लिए रिपोर्ट बनाने वाले सभी सदस्यों के यहाँ आयकर विभाग को जाना चाहिए। विधेयक वापस होना सुधार का कदम हो सकता है लेकिन यह किस व्यक्ति की यूनिवर्सिटी है जो इस हद तक सरकार के भीतर दखल रखते हुए रिपोर्ट बनवा लेता है और विधेयक आ जाता है।

कुछ दिन पहले पटना गया था। वहाँ एक निजी कॉलेज से जुड़े व्यक्ति अपनी व्यथा सुनाने आए। उन्होंने बताया कि किसी विषय को पढ़ाने से पहले निरीक्षण कार्य होता है। इसके लिए बक़ायदा लाख डेढ़ लाख की फ़ीस जमा होती है। पहले यह फ़ीस बीस पचीस हज़ार थी। जब निरीक्षण करने वाला दल उनके कॉलेज पहुँचा तो सदस्य मंडल ने अलग से नगद पैसे लिए। सदस्य मंडल में प्रोफ़ेसर टाइप के लोग होते हैं। आपसे परिचय तो धमक कर देंगे कि हम प्रोफ़ेसर हैं लेकिन किसे पता कि ये जनाब पढ़ाने की जगह घूस कमाने के प्रोफ़ेसर हैं। इस तरह से जितने बच्चों की मंज़ूरी मिली है उससे कई गुना ज़्यादा इसके लिए मंज़ूरी की फ़ीस और रिश्वत देने में लग गया। और उनके अनुसार बिहार में यह आम है।

बात है कि यह सब इतना आम हो चुका है कि इस प्रक्रिया से जुड़े लोगों से बात कर डर लगने लगता है कि फिर तो बदला ही क्या। हम लोग इतनी सावधानी से रहते हैं। गलती बचाने में ही जान निकली रहती है और इतनी बड़ी तादाद में लोग आराम से लेन देन कर रहे हैं। ये वो लोग हैं जो हर सरकार में पाला बदल कर सिस्टम का लाभ लेने आ जाते हैं। लाभ लेते रहते हैं।

बाक़ी मैं अब युवाओं से काफ़ी प्रभावित हूँ कि वे शिक्षा जैसे विषय को महत्व नहीं देते हैं। उनका काम कोचिंग से चल जाता है। भारत के युवा अच्छे हैं। उन्हें जाति और धर्म के गौरव की सप्लाई होती रहे, मस्त रहेंगे।

जो भी इस निजी यूनिवर्सिटी से जुड़े लोग हैं अब उनके बारे में इतना ही जानने का मन है कि इनका जीवन किस ठाठ से गुजर रहा है। कौन सी नई गाड़ी ख़रीदी है? छुट्टी मनाने कहाँ गए हैं। क्या इन्हें ये सब करते हुए संविधान से लेकर ईश्वर और समाज का भय नहीं होता? फिर ये लोग धर्म का नाम लेकर कैसे मैदान में कूदे रहते हैं? पूजा करते समय इन्हें डर नहीं लगता? या ये भगवान को भी जनता समझ बैठे हैं?

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)