अमर उजाला ने ख़बर बता भी दी और छिपा भी दी। जिस ख़बर को पहले पन्ने पर होना था उसे भीतर सरका दिया। कभी आपने ऐसी मुठभेड़ सुनी है कि सात के सात बदमाशों के पैर में एक ही जगह गोली लगी हो? इससे पहले की सवाल हो धार्मिक संगठनों से पुलिस का स्वागत करा दो, उन्हें आगे कर सवालों को छुपा लो। लोग भावुक हो जाएँगे लेकिन क्या वे कभी नहीं देखेंगे कि ये पूरी कहानी है और धार्मिक भावना के नाम पर इस तरह की छूट मिलेगी तो पुलिस किसी के साथ ऐसा कर जाएगी ? सात लोगों की तरफ़ से गोली चल रही है, साफ़ नहीं कि सातों के पास बंदूक़ थी या नहीं, अख़बार लिखता है कि बदमाशों ने सात गोलियाँ चलाईं।कहानी में सात बदमाश, सात गोलियों पर ज़ोर लगता है! पुलिस को एक गोली नहीं लगती है। एक गोली जीप में लगती है। पुलिस 13 गोलियाँ चलाती है और सात गोलियाँ बदमाशों को लगती है। वो भी एक ही जगह। घुटने के नीचे। अगर इस मामले को धर्म और राजनीति का कवर नहीं दिया जाता तो सामान्य स्थिति में जनता इस पर सवाल करती और कोर्ट संज्ञान लेता।
यूपी में ही पहले के एनकाउंटरों पर नागरिक संगठनों की एक रिपोर्ट आई है जिसकी भूमिका सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन ही लोकुर ने लिखी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 17 एनकाउंटरों की जाँच शुरू की थी जिसका कुछ पता नहीं चला। रिपोर्ट में बताया गया है कि एनकाउंटर के 17 मामलों में एक भी मामले में पुलिस टीम के खिलाफ FIR नहीं हुई है।
FIR 17 हैं, लेकिन सबमें एक ही तरह के हालात में पुलिस और अपराधी के बीच एनकाउंटर होता है। जिस थाने की पुलिस एनकाउंटर करती है उसी थाने की पुलिस जांच भी करती है। पांच शवों में बुलेट के निशान के चारों तरफ पुताई की गई है, निशान बनाए गए हैं ताकि लगे न कि नज़दीक से गोली मारी गई है।17 एनकाउंटर में 280 पुलिसकर्मी शामिल थे लेकिन 20 को ही चोट लगी या गोली लगी। इनमें से 17 मामलों में देखा गया कि 15 मामलों में पुलिस को मामूली चोटें आई थीं. आगे आपकी समझदारी।
ये दिल्ली है…यहां ग़ैर कानूनी काम न करे यूपी पुलिस। यूपी में चलता होगा, यहां नहीं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने यूपी की शामली पुलिस को फटकार लगाई थी। कहा था कि विवाह के मामले में आपने देखा नहीं कि आरोपी की उम्र क्या है? शामली से दिल्ली आकर पुलिस लड़के के भाई और पिता को ले गई। इस पर जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा कि यहां दिल्ली में इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी. आप यहां अवैध काम नहीं कर सकते. कोई आपके पास आता है और आप उसकी उम्र की पुष्टि किए बिना गिरफ्तारी करने लगते हैं? चाहे वह नाबालिग हो या बालिग? कोर्ट ने एसएचओ, पुलिस थाना, शामली को केस फाइल के साथ व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए नोटिस जारी किया था.
इस मामले में एसपी सुकीर्ति माधव ने कोतवाली के प्रभारी पंकज त्यागी और उप निरीक्षक नरेंद्र वर्मा को निलंबित कर दिया है।
मैं बार बार गुज़ारिश कर रहा हूँ कि पुलिस को पुलिस बनना होगा। अगर वह इस तरह से काम करेगी तो हर बात संदेह के दायरे में आएगी। पुलिस के अफ़सर क़ानून तोड़ कर चैन से नहीं रहते। हर समय कार्रवाई की तलवार लटकी रहती है। इससे बचने के लिए ने नेताओं के हाथ में खेलते हैं और फिर से ग़लत काम करने लगते हैं। बेशक कुछ दिन बाद बहाल हो जाएँगे और मुमकिन है कुछ मैनेज हो जाए जैसा कि हर जगह होता है लेकिन एक बार मेहनत से पुलिस अधिकारियों को सोचना चाहिए कि इससे मिला क्या? बच्चे भी शक करते होंगे कि इतना पैसा कहाँ से आ रहा है, उनसे नज़रें चुराते होंगे या उन्हें बताकर शामिल कर लेते होंगे। इस तरह से ऐसे कामों का असर बहुत अच्छा नहीं होता है।
बेहतर है कि पुलिस के लोग खुद से लड़ें। शुरुआत ग़लत कामों में कमी लाने से करें। उन्हें करने से मना करें। अच्छे काम का प्रतिशत बढ़ाएँ। धीरे धीरे उनकी साख अच्छी होने लगेगी तब बड़े नेताओं और अफ़सरों के दबाव को भी नकारना शुरू कर दें। तब नींद भी अच्छी आएगी और सर भी ऊँचा रहेगा। पूरा जीवन अपने अनुभवों पर चलकर देख लिया, कुछ देर इस रास्ते भी चलकर देख लीजिए। बाक़ी आपकी मर्ज़ी।
इसमे गलत क्या है?
इन दो ख़बरों पर नज़र डालिए। आप कहेंगे कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है तो मुझे कोई बहस नहीं करनी। आपको विवेक प्राप्त हुआ है तो आप बेहतर समझेंगे। हम सब अब इसी को राहत समझने लगे हैं कि सब करते हैं। पहले होता रहा है के नाम पर अब जो हो रहा है उससे आँखें नहीं मूँद सकते। अगर इस तरह के कार्यक्रमों के पीछे होने वाले खर्चे का आँकलन किया जाए न जाने कितने सौ करोड़ का हिसाब निकल आएगा।पिछले सात साल से चुनावी राज्यों में ऐसे कार्यक्रमों के पीछे सरकारी धन फूंका गया है। इस पैसे से जनता की तस्वीर बदल जाती। डाउन टू अर्थ पढ़ रहा था। उसमें ख़बर छपी है कि बुंदेलखंड में तिल के किसानों को साढ़े सात करोड़ का नुक़सान हुआ है। इसकी भरपाई हो सकती थी। बहुत से लोगों इलाज के लिए पचास लाख और दो करोड़ का चंदा माँग रहे हैं, ऐसे लोगों को राहत पहुँचाई जा सकती थी।
पहली ख़बर मध्य प्रदेश से है। प्रधानमंत्री को भगवान बिरसा की याद आई है। डेढ़ घंटे के कार्यक्रम के लिए तीन लाख आदिवासी लाए जा रहे हैं। इस कार्यक्रम पर 16 करोड़ खर्च होगा। इसी तरह हर चुनावी राज्य में पिछले सात साल में कई कार्यक्रम होने लगते हैं। सरकारी कार्यक्रमों के बहाने उनमें प्रधानमंत्री जाते हैं और भाषण देते हैं। यह तो पता ही नहीं चलेगा कि इसके पीछे कितना सरकारी धन खर्च हुआ है।
यह ख़बर अमर उजाला में छपी है। भीड़ जुटाने के लिए सरकार के ख़ज़ाने से चालीस लाख खर्च हो रहा है। यह तो एक ऐसी ख़बर आ गई है। न जाने कितनी ऐसी ख़बरें नहीं आ रही हैं।जिस पार्टी को सबसे अधिक चंदा मिलता हो, जिसके पास हज़ारों करोड़ रुपये चंदे के है, वह पार्टी सरकारी पैसे से अपना कार्यक्रम करा रही है।
(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)