विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का बयान सुन रहा था। वे कह रहे थे कि यूक्रेन के खारकीव शहर में जो भारतीय हैं, वे किसी भी तरह से शहर छोड़ दें। पैदल ही निकल चलें। जब वे युद्ध में फँसे भारतीयों को पैदल निकल चलने की बात कह रहे थे, उनकी नज़र और ज़ुबान दोनों लड़खड़ा रही थी। मोदी सरकार का सारा प्रोपेगैंडा इस एक बात से ध्वस्त हो गया जब उनकी सरकार अपने नागरिकों को पैदल भागने की एडवाइज़री जारी कर रही थी। यानी सरकार ने छात्रों पर ही छोड़ दिया कि युद्ध के सारे ख़तरे वही उठाए और हम गोदी मीडिया लगाकर देश में मोदी मोदी कर लेंगे। लोगों क भरमा देंगे कि सब सरकार कर रही है। यहाँ ध्यान रहे कि सरकार ने छात्रों को यूक्रेन से नहीं निकाला है। जब वे ख़ुद निकल कर आए हैं तब सरकार उन्हें दूसरे देशों से लेकर भारत आई है।
यूक्रेन संकट के समय प्रधानमंत्री मोदी की हालत उस छात्र की तरह दिखी, जो क्लास में टीचर के आते ही झट से सर झुकाकर पढ़ने का नाटक करने लगता है। वह कॉपी में लिखता नहीं है लेकिन हाथ आगे कर लिखने का नाटक करता है। ठीक यही काम हमारे प्रधानमंत्री करते हैं। दिन भर बलिया जौनपुर करने के बाद शाम की बैठक का वीडियो आता है। इस वीडियो में भंगिमा देखिए। गंभीरता का ऐसा नाटक किया जाता है जैसे सारा दिन सरकार यही कर रही है, यह सब करने के बाद भी ज़मीन पर नतीजा क्या निकल रहा है। छात्र अपने पैसे से लाखों रुपये देकर यूक्रेन की सीमा से लगे देशों में पहुँच रहे हैं। प्रचार की भूखी इस सरकार के मंत्री जब जहाज़ में अनाउंसमेंट माइक लेकर मोदी मोदी कर रहे होते हैं तब छात्र भी उस हक़ीक़त को जान देख रहे होते हैं जिसके बारे में लगातार लिखता रहा हूँ।
आप याद करें कि युद्ध होने के बाद हज़ारों छात्रों को प्रधानमंत्री भी ट्रोल करने लगे। जब उन्होंने कह दिया था कि छात्र छोटे देशों में पढ़ने क्यों जाते हैं। जब छात्र जान बचाने के लिए गुहार कर रहे थे तब यह कहने का वक़्त नहीं था। आई टी सेल लगा कर छात्रों को गालियाँ दिलवाई गईं कि अपने पैसे से टिकट क्यों नहीं खरादा।ज़मीन पर वास्तविकता क्या होती है और प्रचार-प्रोपेगैंडा क्या होता है,हज़ारों भारतीय छात्रों और उनके माँ-बाप ने देख लिया होगा।
2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई थी तब उस समय पूर्वी यूक्रेन में संकट चल रहा था। रुस और यूक्रेन की सेना के बीच तनाव की ख़बरें आने लगी थी, तभी यूक्रेन स्थित दूतावास ने सख़्त और स्पष्ट एडवाइज़री जारी कि छात्र पूर्वी यूक्रेन छोड़ दें। उस वक़्त युद्ध नहीं हुआ था लेकिन तब भी भारतीय दूतावास के नाम पर 3 और 4 जून 2014 को पाँच-पांच सौ टिकट ख़रीदे गए और छात्रों को पूर्वी यूक्रेन से राजधानी कीव लाया गया। कीव से उन सभी को विमान से भारत भेजा गया। सारा खर्चा सरकार ने उठाया।
इस बार छात्रों ने सरकार से मुफ़्त टिकट नहीं माँगे थे, यह प्रोपेगैंडा चलाया जा रहा है लेकिन आई टी सेल ख़ुद इसकी जाल में फँस गया। उसके सामने यह तथ्य रख दीजिए कि जून 2014 में भारत सरकार ने 1000 छात्रों का टिकट कटाया था, ख़ुद से पहल की थी तो इस बार क्यों नहीं की गई? कितनी बार बताए कि 15 फ़रवरी को जो पहली बार एडवाइज़री आई थी उसमें यही लिखा था कि छात्र अस्थायी तौर पर यूक्रेन छोड़ने पर विचार कर सकते थे। इसके उलट 2014 की एडवाइज़री में साफ़ साफ़ लिखा होता था और सरकार ने टिकट देकर छात्रों को यूक्रेन से निकाला था। इस बार सरकार सोती हुई पकड़ी गई।