रवीश का सवाल: गोदी मीडिया में कुछ मौलाना ख़ुद से आते हैं या वे सत्ता के इशारे पर आते हैं?

गोदी मीडिया में कुछ मौलाना ख़ुद से आते हैं या वे सत्ता की किसी अदृश्य शक्ति के इशारे पर आते हैं। ख़ुद को ख़राब तरीक़े से पेश करने के लिए ताकि दूसरे तरफ़ को यह कहने का मौक़ा मिले कि देखो कैसे बोलते हैं। सुनने वाले को लगे कि ‘ये लोग’ ऐसे होते हैं। ताकि ‘इनके’ के बारे में जो घृणा फैलाई गई है, वो लोगों की निगाह में सही लगे। कुछ मौलाना इस भूमिका को निभाने जाते हैं। हो सकता है इन्हें सत्ता का कोई गुप्त संरक्षण मिला हो या कोई और बात हो।

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बाक़ी अगर नफ़रत को डिबेट से हटा देंगे तो गोदी डिबेट में बचेगा क्या। आप किसी एक शो को केवल उस दिन के शो की नज़र से मत देखिए, कई सारे शो को मिला कर देखिए। एक अकेला शो चुनेंगे तो हो सकता है कि किसी शो में ये पत्रकारिता की बात करने लगें और किसी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की। बाक़ी अब आप उस स्तर पर हैं, जहां से कुछ नहीं हो सकता। गोदी मीडिया ऐसे ही रहेगा और करोड़ों लोग देखने वाले वैसे ही रहेंगे।

प्रवक्ताओं को हिदायत मगर बड़े नेताओं की हेट स्पीच पर बीजेपी चुप

आठ साल तक दिन-रात नफरती बयान देने, नफरती बहस में भाषण से बीजेपी ने सूत्रों के हवाले से मीडिया से कहलवाया है कि नफरती बयान देने वाले प्रवक्ताओं को हिदायत दी गई है। जिस पार्टी की सरकार में गोली मारे …के नारे लगाने वाले को राज्य मंत्री से केंद्रीय मंत्री बनाया जाता है। एक बार नहीं दो तीन बार मंत्री जी नारे लगाते हैं और जवाब वही आता है गोली मारो…को। ज़ाहिर है इसी जवाब के लिए देश के ग़द्दारों का नारा लगाया जा रहा था।

जिस पार्टी की सरकार की शह पाकर तमाम तरह के धर्म गुरु धर्मांध बातें पैदा करते रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ या तो चुप्पी रही या कार्रवाई की ख़ानापूर्ति की गई। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है नफरती भाषण पर सुप्रीम कोर्ट में बहस। कितने दिनों से नफरती भाषण देने वालों पर लगाम और कार्रवाई को लेकर बहस हो रही है। ज़ाहिर है इन्हें समर्थन था और समर्थन रहेगा।

गोदी मीडिया के खिलाफ सरकार एक्शन नहीं ले सकती है क्योंकि गोदी मीडिया ही पार्टी है।आप प्रवक्ता निकाल सकते हैं मगर पार्टी को भंग नहीं कर सकते। यूपी और बंगाल चुनाव में नेताओं के बयान निकाल कर सुनें जा सकते हैं। इशारों की भाषा में कैसे एक समुदाय को टारगेट किया जाता रहा है।