रवीश का लेख: इस देश में मच्छर की तरह जातियाँ हैं।

बिहार के युवाओं, कहीं यह तुम्हारे सत्यानाश का सम्मेलन तो नहीं है? पटेल प्रोफ़ेसर समूह क्या होता है? इसमें सरदार पटेल की तस्वीर की क्या भूमिका है? क्या पटेल प्रोफ़ेसर समूह से जाति समूह का अंदाज़ा नहीं होता? मंच पर खड़े और बैठे हुए ये सारे प्रोफ़ेसर, वाइस चांसलर क्या एक जाति के नहीं हैं? अगर हैं तो क्या ये महज़ संयोग होगा कि सरदार पटेल का फ़ोटो लगाकर पटेल यानी कुर्मी समुदाय के प्रोफ़ेसर जमा हुए? प्रोफ़ेसर को पटेल नाम लगाकर जमा होने की ज़रूरत क्यों पड़ी?

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जिन सरदार पटेल को भारत की एकता के प्रतीक के रूप में स्थापित करने के लिए तीन हज़ार करोड़ की मूर्ति योजना को मूर्त रूप दिया गया ताकि देश में एकता का संचार हो, उनकी तस्वीर लगाकर जाति का सम्मेलन हो रहा है। राज्यपाल को इस सभा में मौजूद सभी लोगों की जाँच करनी चाहिए और अगर साबित होता है कि यह जाति सम्मेलन था तो इसमें मौजूद एक वाइस चांसलर को बर्खास्त कर देना चाहिए और सारे प्रोफ़ेसरों का तीन महीने का वेतन काट लेना चाहिए। इस समागम की जाँच बहुत ज़रूरी है ताकि पता चले कि यहाँ जाति को लेकर क्या बातें हुईं और सम्मानित होने वाले एक जाति के क्यों हैं ? मैं मंच पर बैठे सबके नाम दे सकता था लेकिन अभी नहीं। पहले जाँच होनी चाहिए कि पटेल प्रोफ़ेसर समूह क्या है? क्या दूसरी जातियों के प्रोफ़ेसरों का भी सम्मेलन होता है तो उसकी भी पोल खुलनी चाहिए। बस दुआ ही करूँगा कि यह जाति का सम्मेलन न हो, अगर होगा भी तो क्या कर लेंगे लिखकर। ये लोग किसी न किसी दल या नेता के आदमी होंगे तो इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।

अगर राज्यपाल ऐसा नहीं कर सकते तो बक़ायदा आदेश जारी करें कि वाइस चांसलर अपनी जाति का सम्मेलन कर यूनिवर्सिटी में जातिवाद को मज़बूत करें। क़ायदे से आदेश तो यह जारी होना चाहिए कि पटेल प्रोफ़ेसर समूह सरदार पटेल का फ़ोटो लगाकर जाति सम्मेलन या दूसरे बहाने से जमा नहीं हो सकता। पटना के स्वतंत्रता सेनानी भवन , दरोगा राय पथ पर सम्मान के बहाने किन लोगों का समागम हुआ है?

बिहार की उच्च शिक्षा निहायत ही स्तरहीन है। छात्रों का बस चले तो एक बच्चा इसके कॉलेजों में न पढ़ें। बल्कि अंदाज़े से कहा भी जा सकता है कि जो लोग पटेल प्रोफ़ेसर समूह के बैनर तले चला हुए हैं उनके बच्चे भी उन कालेजों में न जाएँ जहां उनके माँ बाप पढ़ाते हुए पटेल प्रोफ़ेसर समूह बनाते हैं। ये लोग क्या पढ़ाते हैं और क्या पढ़ाना भी आता है? अगर ये सही में शिक्षक होते तो ऐसे सम्मेलन और समागम में जाते?

पटना शहर में डॉक्टरों का समागम भी जाति के आधार पर होता है। अलग अलग जाति के डॉक्टर जमा होते हैं और दवा कंपनियाँ जातिवाद को आर्थिक सहारा देती हैं। पटना के हर डॉक्टर को यह बात मालूम है। कथित रूप से उच्च कही जाने वाली जातियों के डॉक्टरों ने इसे बढ़ावा दिया है और अब हर दूसरी जाति के डॉक्टरों का सम्मेलन होता है। अगर सब अपने अपने फ़ाइलम (जाति) के कार्यक्रम का फ़ोटो यहाँ साझा कर दें तो पता चलेगा कि हाल कितना बुरा है। उल्टा भी हो सकता है। कई लोग अपनी जाति का डॉक्टर और इंजीनियर जानकर ख़ुशी भी हो सकते हैं। इससे मेडिकल प्रोफ़ेशन को कितना लाभ होता होगा वही जानते होंगे।

बाक़ी आपकी मर्ज़ी । इस देश में मच्छर की तरह जातियाँ हैं। करते रहिए सबका सम्मेलन। हज़ार दो हज़ार साल भी कम पड़ जाएगा। पटना में मच्छर की भी बड़ी समस्या है लोग उसके काटने से एडजस्ट हो चुके हैं।

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)