मुग़लों से लोहा ले रहे प्रवक्ताओं को बीजेपी ने अरबों के दबाव में हटाया? क्या अरब देशों और उनके शेखों के दबाव में बीजेपी ने अपने दो प्रवक्ता निकाले हैं? बीजेपी ने उस वक्त कार्रवाई क्यों नहीं की, जिस वक्त विवाद सामने आया था? ज़ाहिर है अरब देशों के दबाव में एक राष्ट्रवादी पार्टी को अपना प्रवक्ता हटाना पड़ा। यह कई तरह से शर्मनाक है। अरब देशों में बीजेपी के प्रवक्ताओं के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभियान चलने लगा। भारत के बारे में अच्छी बातें नहीं कही जा रही थी। बीजेपी के पास अपनी आई टी सेना है, पार्टी जवाबी अभियान चला सकती थी। अरबी सोशल मीडिया को जवाब दे सकती थी। सोशल मीडिया पर बीजेपी के समर्थक राज करते हैं। वे अरब देशों की ईंट से ईंट बजा देते। लेकिन उल्टी बीजेपी ने अपने प्रवक्ता हटा लिए।
इससे उन समर्थकों और मूर्खों का मनोबल टूट सकता है, जो इन दिनों मुग़लों का बदला लेने में लगाए गए थे। इन दिनों वीरता सप्ताह चल रहा है। इसी सप्ताह में पृथ्वीराज फ़िल्म रिलीज़ हुई है। पृथ्वीराज फ़िल्म देखकर बीजेपी के नेता वर्जिश करने में लगे थे। जब एक फ़िल्म से मुग़लों का बदला लिया जा सकता है तो सोशल मीडिया से बीजेपी ने अरबों को जवाब क्यों नहीं दिया? क्या अरब शेख़ तय करेंगे कि बीजेपी का प्रवक्ता कौन होगा? फिर बीजेपी और समर्थक मुग़लों का बदला कैसे लेंगे?
मज़ाक़ से इतर एक सवाल और है। क्या धंधे के दबाव के आगे कथित धर्म युद्ध से बीजेपी और गोदी मीडिया ने पाँव खींच लिए? ऐसी ख़बरें हैं कि अरब देशों के सोशल मीडिया पर भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की अपील की जा रही थी। क्या इसके लिए अरब देशों में धंधा कर रहे भारतीय उद्योग जगत ने मोदी सरकार और बीजेपी पर दबाव डाला? यह तो और भी बुरी बात है? यूरोप को नेहरू के बयान से जवाब देने वाले विदेश मंत्री जयशंकर क्या हैं? क्या संडे को छुट्टी पर हैं?
आठ साल से गोदी मीडिया पर एक धर्म के खिलाफ नफ़रत फैलाई जा रही है। हर डिबेट में बीजेपी के प्रवक्ता होते हैं और नफरती बयान देते हैं। सुप्रीम कोर्ट तक ने नाराज़गी ज़ाहिर की है। बीजेपी ने सबका बचाव किया। कोई कार्रवाई तक नहीं की। कोर्ट का आदेश न होता तो हरिद्वार धर्मसंसद के मामले में कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी। बीजेपी को कई मौक़े मिले कि इन बहसों से दूर रहें लेकिन उसके प्रवक्ता से लेकर मंत्री तक कभी इशारे में तो कभी सीधे सीधे एक धर्म के खिलाफ बयान देते रहे। लेकिन अरब देशों के सोशल मीडिया पर दो घंटे अभियान क्या चला, उसके दबाव में बीजेपी पीछे हट गई। शायद पहली बार बीजेपी ने दो-दो प्रवक्ताओं को हटाया है और पार्टी से निकालना पड़ा है।
सिम्पल बात है, जिस तरह से इस वक्त में अंग्रेजों से बदला नहीं लिया जा सकता उसी तरह से इस वक्त में मुग़लों से बदला नहीं लिया जा सकता क्योंकि दोनों के सुल्तान, गवर्नर और सेना अब नहीं है। वो अतीत का हिस्सा हैं। उनके वक्त में जिन्हें लड़ना था, उन्होंने क़ुर्बानी दी है। दबाव में प्रवक्ताओं को हटा कर बीजेपी ने एक और बड़ी गलती की है। सही फ़ैसला वो होता जब दोनों प्रवक्ताओं को तभी का तभी निकाल दिया जाता। सही काम तब बड़ा होता है जब आप ख़ुद करें या किसी को बताने पर समय से करें। बाहरी देशों के दबाव में आंतरिक फ़ैसले नहीं लिए जाते। बीजेपी के प्रवक्ताओं ने भारत का नाम ख़राब किया तो बीजेपी ने मान कर समर्थकों का काम ख़राब कर दिया।
कुछ दिन पहले मोहन भागवत के बयान की क्लिपिंग इसी पेज पर साझा की थी। मुझे नहीं पता था बीजेपी इतनी जल्दी उनकी बात सुन लेगी।