रवीश का सवाल: क्या उत्तर भारत भी तमिलनाडु की तरह नीट के विरोध से सहमति रखता है?

8 फरवरी को विधानसभा की विशेष सत्र बुलाया गया था। इस सत्र में मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने जो भाषण दिया है उसका बड़ा हिस्सा द हिन्दू अख़बार ने अपने संपादकीय में छापा है। नीट की परीक्षा का विरोध तमिलनाडु में आज का नहीं है। मेरी इस विषय में दिलचस्पी रही है। इसलिए इस भाषण का अनुवाद किया है ताकि हिन्दी प्रदेशों के नौजवानों की राय मिल सके। पहले उन्हें पता चले कि तमिलनाडु में जो मुद्दा उठाया जा रहा है, क्या वे उन मुद्दों से इत्तफ़ाक़ रखते हैं। राज्य विधानसभा में केवल बीजेपी ने नीट हटाने के लिए लाए गए प्रस्ताव के समर्थन में वोट नहीं किया। सदन से बाहर चले गए।

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लेकिन राज्य के बाकी दलों ने सर्वसम्मति से नीट से तमिलनाडु को अलग किए जाने के प्रस्ताव पर वोट किया है। एम के स्टालिन ने कहा है कि हम यहां केवल नीट का विरोध करने नहीं आए हैं बल्कि उस संघवाद पर हमले का भी विरोध करने आए हैं जो भारती उपमहाद्वीप में भाषा, जातीय और सांस्कृति पहचान की गारंटी देता है। नीट संविधान के द्वारा स्थापित सिस्टम नहीं है। इसे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के ज़रिए बनाया गया है। 2010 में जब नीट लाया गया था तभी एम करुणानिधि ने इसका ज़ोरदार विरोध किया था। उस वक्त अन्य राज्यों ने भी चुनौती दी थी।तमिलनाडू ने सभी का नेतृत्व किया था  देश भर की अदालतों में नीट के ख़िलाफ 115 याचिकाएं दायर कर दी गईं। इन सभी की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई थी।

18 जून 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने नीट को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। नीट की व्यवस्था समाप्त कर दी गई।लेकिन जब बीजेपी सत्ता में आई तब एक निजी संस्थान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर देती है। 24 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को वापस लिया और फिर से सुनने की बात कही। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 अप्रैल 2016 को अध्यादेश जारी कर दिया और देश भर में नीट की व्यवस्था लागू कर दी। इससे प्राइवेट कोचिंग संस्थानों को काफी फायदा होने लगा। लेकिन जो छात्र महंगी कोचिंग नहीं ले सकते हैं उनके हितों की रक्षा में तमिलनाडु में नीट को निरस्त करने के लिए विधेयक लाया गया है। नीट गरीब छात्रों के डाक्टर बनने का सपना पूरा नहीं होने देगा।नीट को कोई पवित्र गाय नहीं है। यह मेरिट के नाम पर गरीब छात्रों को किनारे कर देता है। इसलिए हम इसका विरोध करते हैं।

19 जून 20121 को जस्टिस ए के राजन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी। 14 जुलाई को इस कमेटी ने 193 पन्नों की एक रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्कूलों के बच्चे नीट की परीक्षा में सफल नहीं हो पा रहे हैं। हमने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है। कि इस रिपोर्ट के आधार पर सुझाव दे। बहुत सोच समझ कर यह बिल लाया गया है कि तमिलनाडू को नीट से बाहर रखा जाए। यह बिल तमिलनाडु की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। मगर राज्यपाल ने इसे वापस कर दिया। राज्यपाल को इसे राष्ट्रपति के पास भेजना चाहिए था। लेकिन ऐसा न कर उन्होंने 142 दिनों तक बिल को अपने पास रखा। हम गुज़ारिश करते रहे कि जल्दी फैसला करें। राज्यपाल जी ने जिस आधार पर बिल को रिजेक्ट किया है वह गलत है। सितंबर 2021 में हमने बिल पास किया था। आज फिर बिल पास कर रहे हैं। 

10 जून 2021 को ए के राजन कमेटी का गठन हुआ था। इसमें सरकार के अधिकारी और अकादमिक जगत के लोग थे। इसकी शर्तों औऱ दायरे के बारे में जानकारी सार्वजनिक की गई थी। लोगों से राय मांगी गई थी।हज़ारों लोगों ने सुझाव भेजे थे। सुझावों के अनुसार नीट ने एम बी बी एस में गरीब तबके की हिस्सेदारी कम कर दी थी। केवल आर्थिक रुप से सक्षम लोगों के बच्चों को फायदा हो रहा है। दलित आदिवासी और पिछड़े समुदाय के ग़रीब बच्चे बाहर हो जा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंट ने मार्डन डेंटल कालेज बनाम मध्य प्रदेश सरकार का एक मामला सुना था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला साफ था कि राज्य सरकार के पास अधिकार है कि वह उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों के प्रवेश को लेकर कानून बना सकती है। इसी केस से जुड़े एक और मामले में जस्टिस भानुमति ने फैसला दिाय है कि छात्रों के प्रवेश का कानून बनाना राज्य सरकार के अधिकार के दायरे में आता है। हमने उसी विधायी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए नीट को खत्म करने का विधेयक पास किया है।

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)