रवीश का लेखः पाकिस्तान का नाम आते ही सर्जिकल स्ट्राइक की धमकी, चीन का नाम आते ही वार्ता की बात।

पाकिस्तान का नाम आते ही सर्जिकल स्ट्राइक की धमकी। चीन का नाम आते ही वार्ता की बात। एक ही सरकार के दो बोल। पड़ोस में विदेश नीति फेल हो चुकी है। आर्थिक नीति फेल है। हिन्दी प्रदेश के बेरोज़गार युवाओं को भरमाने के लिए  हर दिन इतिहास का नया थीम लाँच हो रहा है। जैसे मोदी और उनके मंत्री इतिहास के शिक्षक नियुक्त हुए हैं। मोदी जी अपना बदनाम प्रधानसेवक से प्रधान इतिहासकार कर लें। अमित शाह एसोसिएट इतिहासकार कर लें। झाँसे में आ चुके युवाओं से अनुरोध है कि 105-117 रुपया लीटर पेट्रोल भरवाते रहें।

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वर्दी का घमंड

दो दारोगा हैं। एक हत्या के मामले में गिरफ्तार हुए हैं और एक बलात्कार के मामले में फ़रार हैं। वर्दी के घमंड में किसी और का जीवन तो बर्बाद किया ही अपना और अपने परिवार का भी कर लिया। रिश्वत और वसूली के सिस्टम में चैन किसी को नहीं है। पुलिस को अपना नैतिक चरित्र फिर से गढ़ना होगा वरना शांति नहीं मिलेगी। वसूली का पैसा पता नहीं कहाँ जमा होता है और ख़र्च होता है। दोनों उदाहरण यूपी के हैं मगर कई राज्यों का हाल एक सा है। बाक़ी आप समझें। इससे भी दिक़्क़त नहीं तो 117 रुपया लीटर पेट्रोल भरवाते रहें। कम से कम अमीर होने का घमंड तो कर ही सकते हैं।

राम के नाम पर झूठ

रामकथा में जब ग्यारह हज़ार देने का एलान किया था तब ग्यारह हज़ार ही देना था। ताली बजने के बाद एक हज़ार देना ठीक नहीं है। कथा के आयोजक भी बीजेपी के नेता हैं और ग्यारह हज़ार बोल कर एक हज़ार देने वाले भी बीजेपी के नेता हैं। आयोजक ने विधायक जी को जो स्मृति चिन्ह दिया था वो उनसे वापस ले लिया है। राम के नाम पर राजनीति में इतने झूठ बोले गए इसलिए ग्यारह हज़ार बोलकर एक हज़ार देने की बात हैरान नहीं करती है। हिन्दी प्रदेश का जनविवेक इस स्तर पर पहुँच गया है कि सामने से नज़र तो आ रहा है कि ठगे जा रहे हैं फिर भी ठगे जा रहे हैं। फ़िलहाल आप पेट्रोल के दाम पूरा पूरा दिया कीजिए।

सिंघु बोर्डर पर हुई निर्मम हत्या की कड़ी निंदा

क़ानून व्यवस्था और सुरक्षा पर लाखों करोड़ रुपये जनता के पैसे से ही ख़र्च होते हैं। इसके बाद भी किसी भी बात पर लोग किसी को घेर कर मार देते हैं। धर्म के नाम पर और अन्य कारणों से भी। ठीक है कि मुख्यमंत्री खट्टर ने बयान वापस ले लिया लेकिन वे अपने कार्यकर्ताओं से लाठी उठाने की बात तो कर ही रहे थे। कोई भी धर्म संविधान से ऊपर नहीं है, इस घटना की निंदा में मैं यह बात लाखों बार लिख सकता हूँ और लिखा भी है। मगर उनसे कौन पूछे जो आए दिन हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं और सरयु में डूब जाने की नौटंकी भी। ऐसे लोग भी सिंघु बोर्डर की घटना के बहाने धर्म के नाम पर राजनीति और कट्टरता के ख़तरनाक पक्ष को उभार रहे थे भले ही उनका मक़सद किसान आंदोलन को  बदनाम करने और लखीमपुर खीरी की हिंसा का हिसाब बराबर करने के रूप में देखना था लेकिन कुछ तो दिखा।

मुझे अच्छा लगा कि जो लोग किसानों को कुचल कर मार देने की घटना पर चुप थे वे मुझसे पूछने आ गए कि मैं क्यों चुप हूँ। इसका मतलब है कि हिंसा की किसी घटना पर चुप नहीं रहना चाहिए। उससे ज़्यादा उसका मुखर या मौन समर्थन नहीं करना चाहिए। मंत्री अजय मिश्रा के साथ खड़ी होने वाली मोदी सरकार और उनके समर्थकों ने चुप्पी का माहौल बनाया और मुखर समर्थन का भी। किसी ने मोदी से नहीं पूछा कि वे चुप क्यों हैं। पहले दिन नहीं बोल सके लेकिन अब तो कई  तथ्य सामने आ चुके हैं, अब बोल लीजिए। ख़ैर मुझसे पूछा अच्छा किया। उन्हें पता है छुट्टी पर भी रवीश कुमार को बोलना है और जो बिना छुट्टी लिए काम करने का प्रचार करे उसकी चुप्पी पर कोई सवाल नहीं। ये और बात है कि कम सोने वाले और दिन रात देश के लिए काम करने वाले मोदी हर मोर्चे पर फेल हो चुके हैं तभी तो उनके समर्थक भी 117 रुपया लीटर पेट्रोल भरा रहे हैं। बेरोज़गार घूम रहे हैं।

सिंघु बोर्डर की घटना क्रूरता की इंतेहा है।शर्मनाक है। धर्म के पुजारी के हत्या में शामिल होने से हत्या धार्मिक कार्य नहीं हो जाती है। हर हत्या बर्बर होती है। धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी पर भड़कने की संस्कृति ख़तरनाक है। कोई भी इसका लाभ उठा कर किसी समाज को हिंसक बना सकता है। 2015 के बिहार चुनाव में मंदिरों पर गाय का मांस और मस्जिदों पर सुअर का मांस फेंकने की कई सौ घटनाएँ कराई गईं थीं ताकि लोग भड़क जाएँ और दंगा करें और फिर राजनीतिक लाभ किसे मिलता आप जानते हैं। एक्सप्रेस की पुरानी रिपोर्ट निकाल कर पढ़िए। बहुसंख्यक धर्म के नाम की जाने वाली राजनीति, आई टी सेल और उनकी गुलाम गोदी मीडिया ने ऐसी कितनी ही हत्याओं को कई तरीक़ों से सही ठहराया है और किसी अपराध में आरोपी का धर्म विशेष देखकर उकसाने का प्रयास किया है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने न सिर्फ़ हत्या की निंदा की बल्कि यह भी साफ़ किया कि उनका आंदोलन धार्मिक नहीं है। निहंग यहाँ से चले जाए यह सुनकर किसान आंदोलन में शामिल सिख किसानों ने आंदोलन से बग़ावत नहीं कर दी बल्कि ऐसा कहने वालों में वे भी थे।

ग्रंथी हों, मौलवी हों या पंडित हों, धर्म के अपमान के नाम पर किसी को छूने तक का अधिकार नहीं होना चाहिए। लेकिन कितने लोग मार दिए गए। अब तो नाम भी भूल चुके होंगे। अख़लाक़ से लेकर जुनैद और तबरेज़ अंसारी। नजीब का तो पता ही नहीं चला। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को किसने मारा किसी जाति का गौरव वाला ख़ून भी नहीं खौला।

(लेखक जाने-माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)