गुड्डो
शिमला। दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के अलावा दो और जगह राष्ट्रपति निवास देश में हैं। एक शिमला तो दूसरा हैदराबाद में। शानोशौकत से भरपूर ये दोनों ‘रिट्रीट’ सालभर राष्ट्रपति की यात्रा और उनके निवास के लिए तैयार रहते हैं। शिमला में मशोबरा की पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस भवन का अधिग्रहण वायसराय द्वारा 1895 के दौरान किया गया।
राष्ट्रपति वर्ष में कम से कम एक बार इस रिट्रीट में जाते हैं और रिट्रीट में उनके प्रवास के दौरान, उनका मुख्य कार्यालय यहां स्थानांतरित हो जाता है। शिमला रिज टॉप से एक हजार वर्गफुट ऊंचा रिट्रीट रमणीय परिवेश में बसा हुआ है। इस स्थान की वास्तुकला और प्राकृतिक सौंदर्य ने इस रिट्रीट को शिमला में पर्यटन का एक आकर्षण बना दिया है। इस भवन की एक खासियत यह है कि यह दाज्जी दीवार के साथ पूरी तरह लकड़ी के ढांचे से बना हुआ है। मूलत: 1850 में निर्मित इस भन का निर्मित क्षेत्र 10628 वर्ग फुट है। रिट्रीट में कुल 16 कमरे हैं। कोटी रियासत के राजा ने इस भवन का निर्माण 1840 में कराया था। बाद में इसे भारत सरकार को स्थायी लीज पर सौंप दिया गया। आजादी के बाद से ही भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान भवन को राष्ट्रपति निवास का दर्जा प्राप्त था। लेकिन 1962 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जब इसे एडवांस्ड स्टडी के लिए दे दिया तो छराबड़ा के रिट्रीट को राष्ट्रपति निवास बनाया गया।
साल में एक बार जाना जरूरी
राष्ट्रपति की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार राष्ट्रपति अपने दोनों रिट्रीट पर साल में कम से कम एक बार जाते हैं। इस प्रवास के दौरान उनका कार्यालय भी साथ रहता है यानि सारा कामकाज दिल्ली से शिमला या हैदराबाद पहुंच जाता है। राष्ट्रपति की आधिकारिक वेबसाइट कहती है कि शिमला स्थित ‘रिट्रीट बिल्डिंग’ और हैदराबाद में मौजूद राष्ट्रपति निलियम, ”भारत के राष्ट्रपति कार्यालय की एकीकृत भूमिका के प्रतीक हैं। इन स्थानों का देश के उत्तर और दक्षिणी हिस्से में होना हमारे देश और हमारी विविध संस्कृतियों और लोगों की एकता का प्रतीक है।
लाखों का ख़र्च
इन दोनों स्थानों की देखभाल के लिए तैनात कर्मचारियों के वेतन पर हर साल लाखों रुपए ख़र्च होते है। शिमला के रिट्रीट में ही 13 माली और एक चौधरी के वेतन पर हर साल 30 लाख से ज़्यादा ख़र्च होता है। हैदराबाद में स्थित राष्ट्रपति निलियम इमारत में देखरेख करने के लिए 35 अस्थाई और तीन नियमित कर्मचारी हैं। तनख़्वाह पर सालाना साढ़े सात लाख से अधिक ख़र्च हो रहा है। अस्थाई कर्मचारियों को अलग से वेतन दिया जाता है। इसके अलावा दोनों स्थानों पर सुरक्षा गार्ड भी तैनात हैं। हैदराबाद की इमारत को भारत की स्वतंत्रता के बाद तत्कालीन शासक निज़ाम से लिया गया था. इस इमारत का निर्माण वर्ष 1860 में किया गया था और इसका क्षेत्र 90 एकड़ है।