राकेश टिकैत का टोक देना और ऐंकर का भरभरा जाना

रवीश कुमार

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राकेश  टिकैत ने इंडिया टीवी के मंच पर एक सही सवाल क्या कर दिया उसके  ऐंकर जवाब  देने के नाम पर टिकैत की ही भाषा बोलने लगे। टिकैत ने पूछा कि मंच की स्क्रीन पर मंदिर मस्जिद की तस्वीर क्यों हैं तो ऐंकर कहने लगे कि हम नहीं दिखाते। पार्टियाँ मुद्दा बनाती हैं तो हम दिखाते हैं। यहाँ ऐंकर बीजेपी का नाम नहीं ले सका मगर बिना नाम लिए हुए भी बीजेपी पर ही सवाल कर दिया। ऐंकर ने राकेश टिकैत के सवाल का ही साथ दिया। उसके जवाब से ऐसा लगा कि तस्वीर उन्होंने नहीं बीजेपी ने लगा दी है। क्योंकि ऐंकर जानता है कि चैनल और वो क्या खेल खेल रहे हैं। बस वह सच निकल आया। ऐंकर ने अपने जवाब से बीजेपी से दूरी बनाने की कोशिश की,बन नहीं सकी क्योंकि टिकैत का सवाल विकेट पर था। बाउंसर नहीं था। बाउंसर होता तो ऐंकर बच जाता लेकिन टिकैत की गेंद विकेट पर जा लगी। अब उस ऐंकर को तैयारी कर अगले शो में बीजेपी से सवाल करना चाहिए कि आप मंदिर मंदिर क्यों करते हैं जिससे हमें स्क्रीन पर मंदिर का ही फ़ोटो लगाना पड़ता है?

इंडिया टीवी के स्क्रीन पर बीजेपी के उठाए मुद्दे के हिसाब से तस्वीर तो थी लेकिन विपक्षों मुद्दों की तस्वीर नहीं थी। जितनी देर तक टिकैत सवाल करते हैं, विपक्ष के नेताओं की तस्वीर नज़र नहीं आती है। मंदिर के नाम पर पत्रकारिता और लोकतंत्र को रौंद देने का यह खेल टिकैत ने सबके सामने उजागर कर दिया। टिकैत ने पूछ दिया स्क्रीन पर मंदिर की इतनी बड़ी तस्वीर क्यों है? क्या यह भी पार्टियों ने बताया था?

चुनाव का समय है। बेरोज़गारी और महंगाई की क्या कोई तस्वीर नहीं होती होगी? तस्वीर के ऊपर किसान लिख देने से जवाब पूरा नहीं होता। राकेश टिकैत का सवाल आप सभी का सवाल होना चाहिए। लोगों की आस्था की आड़ में इस खेल को पहचानना चाहिए। टिकैत ने पहचान लिया और पूछ दिया कि मंदिर की जगह अस्पताल और स्कूल क्यों नहीं।

राकेश टिकैत ने सही जगह पर हाथ रखा है। बीजेपी और मोदी के प्रसार के लिए गोदी मीडिया खास तस्वीरों और रंगों का इस्तमाल करता है। उन तस्वीरों में जनता ग़ायब है। यूपी ग़ायब है। मंदिर सामने रख कर चुनाव लड़ाने में मदद कर रहा है। जबकि इसकी राजनीति को ख़त्म करने के लिए इस देश के तमाम लोगों ने अपने सारे सवालों को पीछे रख कोर्ट के फ़ैसले का साथ दिया कि राजनीति बंद हो। दूसरे ज़रूरी मुद्दों पर बात हो लेकिन इसके बाद भी मंदिर मंदिर की राजनीति को हवा दी जा रही है।

मैंने कई बार लिखा है कि गोदी मीडिया से लड़े बिना कोई भी लड़ाई ख़ानापूर्ति है। इस चुनाव में ऐसे कई वीडियो दिखे जिसमें अखिलेश यादव भी गोदी मीडिया से यही सवाल कर रहे हैं। गोदी मीडिया के पास जवाब नहीं होता है। गोदी मीडिया पर सामने से सवाल उठाना राहुल गांधी ने शुरू किया लेकिन टिकैत और अखिलेश अलग लेवल पर ले गए हैं। हार और जीत से बेफ़िक्र अखिलेश ने यह काम बेहतर तरीक़े से किया है। गोदी मीडिया द्वारा चुनाव को बार बार धर्म के एजेंडे पर लाए जाने की हर कोशिश का प्रतिकार किया है। उनके सामने ऐंकर लटपटा जाते हैं। एंकरों के पास भड़कने के अलावा दूसरा रास्ता भी नहीं होता।

एक बात याद रखिएगा। आप भले बीजेपी के समर्थक हैं लेकिन यह गोदी मीडिया आपका समर्थक नहीं है। आपके मुद्दों के साथ नहीं होगा। आप महंगाई से और बिना दवाई से मर जाएँगे तब भी आपकी बात नहीं करेगा। फ़ैसला आपको करना है। क्या आप बीजेपी को पसंद करने के नाम पर ऐसी मीडिया को पसंद करते हैं जो आपकी ही हत्या कर दे? इसके पीछे की क्या मजबूरी है? बीजेपी को पसंद करते हैं, यह तो समझ सकता हूँ लेकिन गोदी मीडिया के समर्थन में आने की क्या मजबूरी है?

इस देश का गोदी मीडिया आपके पुरखों के बनाए लोकतंत्र की हत्या कर रहा है। आप किसी भी दल के समर्थक हों, मीडिया ग़ुलाम होगा तो समर्थकों के साथ भी गुलामों की तरह बर्ताव होगा। आप किसी नेता को चुनते हैं कि वह ग़लत को रोकेगा इसलिए नहीं कि चुनने के बाद उस ग़लत को सही बताएगा।

अच्छी बात है कि इंडिया टीवी ने टिकैत के सवालों का लिंक अलग से भी दिया है ताकि हिट्स और व्यूज़ मिलता रहे। कोई इंडिया टीवी को बताएँ कि टिकैत ने बयान नहीं दिया है बल्कि चैनल से सवाल किया है।

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)