मदरसा पैराटीचर्स फुटबॉल क्यों बनें?

न में मदरसा पैराटीचर्स जो कि एक तरह से बन्धुआ मजदूरी वाली नौकरी करने को मजबूर हैं। सरकार उनका हर साल हजार पन्द्रह सौ रूपए तो बढा देती है, लेकिन उन्हें नियमित करने के लिए तैयार नहीं है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस ने विधनसभा चुनाव घोषणा पत्र में मदरसा पैराटीचर्स सहित सभी संविदाकर्मियों को नियमित करने का वादा किया था। घोषणा पत्र जारी करते समय सभी प्रमुख कांग्रेसी नेता मौजूद थे। इनमें विशेष रूप से अशोक गहलोत जो कि राज आने के बाद मुख्यमंत्री बने और सचिन पायलट जो कि तब पीसीसी अध्यक्ष थे और राज आने के बाद उप मुख्यमंत्री बने, भी मौजूद थे। हालांकि आज सचिन पायलट किसी भी पद पर नहीं हैं।

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आज विचित्र स्थिति यह पैदा हो गई है कि न तो मुख्यमंत्री गहलोत पैराटीचर्स को नियमित करना चाहते हैं और ना ही सचिन पायलट जो खुद की कुर्सी के लिए तो लड़ रहे हैं, लेकिन पैराटीचर्स के लिए मुंह खोलना भी उचित नहीं समझते। यही हाल कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं, मन्त्रियों और विधायकों का है कि वे पैराटीचर्स के मुद्दे पर खामोश तमाशबीन बने बैठे हैं, जबकि पैराटीचर्स पहले दिन से सत्ता की हर चौखट पर हाजरी देकर मांग कर रहे हैं और लगातार धरने प्रदर्शन भी कर रहे हैं। करीब सवा महीने से पहले अधूरी दाण्डी यात्रा को पूरा करने के नाम पर, फिर जयपुर के शहीद स्मारक पर महापड़ाव व अनशन के नाम पर पैराटीचर्स ने अन्य संविदाकर्मियों के साथ विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन इतने बड़े और लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें मिला कुछ नहीं और वे आज एक तरह से फुटबॉल बन गए हैं।

पैराटीचर्स आन्दोलन पूरी तरह से राजनीतिक हो गया है और कुछ लोगों ने भोलेभाले ग़रीब पैराटीचर्स को अपना सियासी औज़ार बना लिया है। इन लोगों में कुछ भावी टिकटार्थी हैं, तो कुछ राजनीतिक नियुक्तियों के दावेदार, तो कुछ प्रतिनियुक्ति व ट्रांसफर पोस्टिंग के सौदेबाज़, जिन्होंने अपने निजी स्वार्थ के लिए गरीब पैराटीचर्स को एक तरह से बरबाद कर दिया है, उन्हें नियमित करवाने का ख़्वाब दिखाकर हफ्तों खुले आसमान के नीचे बैठा दिया और एक रुपल्ली उनके मानदेय की भी नहीं बढवा पाए। सरकार ने इनसे किसी भी स्तर पर कोई वार्ता नहीं की और 06 अक्टूबर को महापड़ाव खत्म कर दिया गया। अब सवाल यह है कि ऐसा क्यों हुआ ? पैराटीचर्स के इतिहास का इतना बड़ा आन्दोलन एक फ्लाॅप शो क्यों साबित हुआ?

इसके लिए वे पैराटीचर्स जिम्मेदार हैं, जो पैराटीचर तो हैं, लेकिन नाम के हैं। यह किसी से ढकी छुपी बात नहीं है कि मदरसा पैराटीचर्स में एक अच्छी खासी संख्या कागजी पैराटीचर्स की है। जिनके मदरसे कागजों में चलते हैं और विद्यार्थी संख्या भी कागजों में है और उनकी ड्यूटी भी कागजों में होती है तथा यह लोग राजनेताओं की चम्मचागिरी करते रहते हैं। अल्पसंख्यक मामलात विभाग के अधिकारियों से इनकी मिलीभगत है। यह लोग बिना कुछ किए धरे मानदेय उठा रहे हैं, पाठ्य सामग्री, मिड डे मील, कम्प्यूटर आदि का पूरी तरह से दुरूपयोग कर रहे हैं। इन कागजी पैराटीचर्स की वजह से बेचारे वे ग़रीब पैराटीचर्स भी बरबाद हो रहे हैं जो ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करते हैं और बच्चों को पढ़ाकर बेहतर परिणाम भी देते हैं।

एक और वजह भी फुटबॉल बनने की है, वो यह है कि मदरसा पैराटीचर्स की हिमायत में इनके बीच आज तक जो भी आया उसको यह कागजी पैराटीचर्स जलील करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ते हैं, जिससे इनकी हिमायत में अब बहुत से लोगों ने आना भी छोड़ दिया है। पैराटीचर्स को खुद से पूछना चाहिए कि आज आपके बीच सत्ता व विपक्ष का कोई भी विधायक व राजनेता क्यों नहीं आना चाहता ? क्योंकि उनको मालूम है कि इनकी हिमायत करना बहुत बड़ी बेवकूफ़ी होगी, कल यह कागजी पैराटीचर्स जब मन में आए हमें सोशल मीडिया पर गालियों से सम्मानित करने लग जाएंगे। यह भी सच है कि यह बदतमीज़ी सभी कागजी पैराटीचर्स नहीं करते, सिर्फ चन्द कागजी पैराटीचर्स ही ऐसा करते हैं और उन्हें न सरकार का कोई खौफ है और ना ही अपने अधिकारियों का और ना ही खुद की प्रबन्ध कमेटी का, क्योंकि मदरसा तालीम नाम की लूट की सेटिंग में ऊपर तक सबका भला होता है।

हो सकता है कि इस लेख की बहुत सी बातों से मदरसा पैराटीचर्स सहमत नहीं होंगे और इसको पढने के बाद हमें भी गालियां निकालेंगे। लेकिन आप अपने दिल पर हाथ रखकर कहिए कि क्या आपको मालूम नहीं कि कुछ मदरसे नाम के सिर्फ कागजों में चल रहे हैं, खाला सदर, मामू सेक्रेटरी और भांजा पैराटीचर और विद्यार्थी संख्या व बाकी सब कुछ कागजों में ? क्या आपको मालूम नहीं कि आपके बीच कुछ पैराटीचर्स ऐसे हैं जो कई महीने अपने मदरसे की शक्ल नहीं देखते और मदरसा कमेटी व अधिकारियों की मिलीभगत से 50/50 फार्मूले पर मानदेय उठा रहे हैं ? क्या आपको मालूम नहीं कि सरकार ने जो कम्प्यूटर बच्चों को सीखाने के लिए दिए थे, इन कम्प्यूटरों की एक अच्छी खासी संख्या सदर साहब, सेक्रेटरी साहब और पैराटीचर्स के बच्चों के काम आ रही है ? क्या आपको नहीं मालूम कि समायोजन/ट्रांसफर के नाम पर कुछ ऐसे मदरसों से सेटिंग के जरिए पैराटीचर्स ने तबादले करवा लिए जहाँ पढने वाले बच्चे खूब थे और जहाँ तबादला करवाया वो मदरसा सिर्फ कागजों में चल रहा है ? क्या इस हेराफेरी के खेल से मुख्यमंत्री वाकिफ नहीं हैं ? उन्हें सब कुछ मालूम है, इसीलिए वे आपकी मांगों पर गम्भीरता से गौर नहीं करते हैं। आपके बीच बैठे ऐसे ही लोगों की वजह से आज ईमानदार पैराटीचर्स बन्धुआ मजदूरी वाली यह नौकरी करने को मजबूर हैं।

क्या आपको मालूम नहीं कि गत वर्ष उदयपुर में आन्दोलन को सियासी मेनेजमेन्ट के तहत बरबाद किया गया ? लाख रोकने की कोशिश करने के बावजूद वहाँ बिना सोचे समझे समझौता किया गया। फिर उन्होंने सरकार के गुणगान किए। मुख्यमंत्री, मन्त्री व विधायकों के जयकारे लगाए। आन्दोलन को पूरी तरह से डायवर्ट व फ़ेल करने की कोशिश की। सभी मांगें पूरी होने का गला फाड़ फाड़ कर दावा किया। सुजानगढ़ उप चुनाव में गली गली जाकर कांग्रेस के लिए वोट मांगे। सरकार व पार्टी की सुविधाएं भोगी। जनवरी 2021 के जयपुर कलेक्टरेट धरने, सिविल लाइन्स कूच और सुजानगढ़ कूच आन्दोलन को फ्लाॅप करवाने की घिनौनी साजिशें की। मुख्यमंत्री, शिक्षा मन्त्री, विधायकों व सत्ताधारी नेताओं के साथ सेल्फी-फोटो सेशन किया। कौन थे यह लोग ? इनसे सवाल पूछिए कि आपने हमारे साथ ऐसा क्यों किया ?

यह आन्दोलन जब शुरू हुआ तब भी पर्दे के पीछे लिखी पटकथा से संचालित था और आज भी। पहले भी धोखा हुआ और अब भी धोखा होगा। हम हमेशा से सभी संविदाकर्मियों को नियमित करने के हक में हैं तथा इस बन्धुआ मजदूरी वाली नौकरी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के फेवर में हैं। आपकी मांग मानी जाए और आन्दोलन सफल हो, लेकिन आपको कागजी पैराटीचर्स और इनके सियासी आकाओं से सावधान हो जाना चाहिए।

आप लोगों ने महापड़ाव खत्म किया, यह आपकी मर्ज़ी। लेकिन इतने बड़े संख्या बल से आप वार्ता को भी पटरी पर नहीं ला सके, क्यों ? क्या आपको महापड़ाव खत्म करने की बजाए शान्तिपूर्वक सिविल लाइन्स कूच कर मुख्यमंत्री निवास के आगे अनिश्चितकालीन धरना नहीं लगाना चाहिए था ? खैर, जो बीत गई सो बात गई। अब आप लोग विधायकों के घर के आगे धरना लगा रहे हैं, जो अच्छी बात है। लेकिन आन्दोलन को मजबूत करने के लिए आप सभी 200 विधायकों और विधानसभा प्रत्याशियों के घर के आगे शान्तिपूर्वक धरना लगाएं, लगातार लगाएं। तीन दिन का सरकार को अल्टीमेटम दें, बात नहीं मानी जाए तो अगले दिन सभी 200 विधानसभा सीटों के मुख्यालयों पर एक साथ मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, मन्त्रियों और विधायकों के पुतले फूंकें। इतना कर लोगे तो यकीनन मुख्यमंत्री आपकी बात सुनेंगे और आपको नियमित भी कर देंगे। लेकिन यह सब करने के लिए ईमानदारी, खुद्दारी, समर्पण और कड़ी जद्दोजहद का जज़्बा चाहिए, जो कागजी पैराटीचर्स के संरक्षण में आपको नहीं मिल सकता, क्योंकि कागजी व खानापूर्ति की नौकरी करने वाला कभी सत्ता की चौखट को नहीं हिला सकता।

(लेखक इक़रा पत्रिका के सम्पादक हैं।)