राजकुमार सोनी
कल मुझे एक फोन आया. फोन करने वाले ने जयश्री राम कहते हुए सूचना दी कि वह कश्मीर फाइल्स देखने लिए टिकट का प्रबंध कर सकता है. जब मैंने उसे बताया कि फिल्म को लेकर कायम किए गए शोर-शराबे के बीच मन को मारकर फिल्म देख चुका हूं तो उसने कहा- कोई बात नहीं आप अपने बच्चों को टिकट दे सकते हैं. मैंने कहा- मेरे बच्चे नफरत से वाकिफ नहीं होना चाहते तो सामने वाले ने थोड़ा नाराजगी प्रकट करते हुए कहा- ऐसा मत बोलिए भाई साहब…बच्चों को तो यह जानना बेहद जरुरी है कि दाढ़ीवालों ने हम पर कैसे- कैसे अत्याचार किए हैं ? कैसे हमारी मां-बहनों की इज्जत को लूटा हैं ? अगर हम यह सब अपने बच्चों को नहीं बता पाएंगे कि तो फिर हमारे होने और नहीं होने का कोई मतलब नहीं है. हमें यह तो बताना ही होगा कि हमारा असली दुश्मन कौन हैं ? अगर हमें अपनी पीढ़ी को बचाना है तो हमें हर घर से कम से कम दो-तीन बच्चे को राष्ट्रवादी बनाना ही होगा. हर घर से दो-तीन बच्चा राष्ट्रवादी रहेगा तो फिर 2030 तक मोदी जी को कोई नहीं हिला पाएगा.
जब मैंने प्रतिवाद किया कि मेरे बच्चे राष्ट्रवाद का चूरन चाटने को तैयार नहीं हैं तो बहस लंबी चलने लगी…और अंत में इस बात पर जाकर खत्म हुई कि मैं देशद्रोही हूं.जेहादियों का समर्थक हूं.जब हिन्दू राष्ट्र बन जाएगा तब मैं कलपता फिरूंगा कि मैंने ये क्या कर डाला ?मैंने हिन्दू राष्ट्र बनने में अपना सहयोग क्यों नहीं दिया ? वगैरह- वगैरह…
हो सकता है जो मेरे साथ घटित हुआ है वह आपके साथ भी हुआ हो. आपको भी किसी ने फोन करके कहा हो कि अगर आप देशभक्त हैं तो पहली फुरसत में जाकर कश्मीर फाइल्स देख आओ.
देश में इन दिनों बड़े जोर-शोर से यहीं तमाशा चल रहा है. कुछ लोग थोक भाव में फिल्म की टिकट खरीद रहे हैं और उसे फ्री में बांट रहे हैं. हॉल पर हॉल बुक कर रहे हैं और फिल्म दिखवा रहे हैं. अगर आप मना करते हैं तो आपसे कहा जा रहा है कि आप टिकट रिश्तेदार या पड़ोसी को दे दीजिए.
आखिर कौन हैं वे लोग जो हमें जबरिया फिल्म दिखाने पर आमादा हैं? आप थोड़ी सी छानबीन करेंगे या इनकी फेसबुक प्रोफाइल खंगालेंगे तो इनके चेहरे सामने आ जाएंगे.
आप पाएंगे कि कोई बजरंग दल से जुड़ा है तो कोई विद्यार्थी परिषद से.कोई भाजपा का नेता हैं तो कोई संघ परिवार का सदस्य है. कोई संघ परिवार से संबद्ध नहीं भी हैं तो वह ऊंची जाति का जीव यानी प्राणी हैं.
ये लोग झुंड बना कर उत्तेजक और भड़काऊ नारे लगाते हुए सनीमा देखने जा रहे हैं. फिल्म के पोस्टर और टॉकीज के सामने भगवा गमछा ओढ़कर सेल्फी ले रहे हैं. हॉल के अंदर संघ की प्रार्थना-नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे गा रहे हैं और उसका वीडियो बनाकर यू् ट्यूब- फेसबुक पर शेयर करते हुए लिख रहे हैं- जान लो जेहादियों… फलांने-ढिकांने भैय्या की वजह से पूरी टॉकीज बुक हुई हैं.दाढ़ी वालों अब तुम्हारी खैर…नहीं…। ये फिल्म नहीं ताबूत हैं… आदि-आदि.
मैंने पहले भी लिखा था. फिर से वहीं बात दोहारा रहा हूं कि कश्मीर फाइल्स निहायत ही गंदे मकसद से बनाई गई दो कौड़ी की फिल्म हैं.
यह फिल्म युद्ध के उदघोष की तरह जय-जय श्रीराम का नारा लगाकर रोजी-रोटी चलाने वाले लंपट समुदाय की भावनाओं को आसन्न चुनाव में भुनाने और उनकी दोयम दर्जे की ऊर्जा का उपयोग करने के मकसद से ही बनाई गई हैं. फिल्म का खुला और भीतरी स्वर यहीं हैं कि मुसलमान कौम हत्यारी हैं और हर मुसलमान गद्दार हैं. यह फिल्म मुसलमानों के प्रति नफरत का भाव पैदा करती हैं तो सवर्णों के प्रति सहानुभूति.
लेकिन फिल्मकार ने सवर्ण समुदाय को सहानुभूति दिलाने के चक्कर में उन्हें भी दया और घृणा का पात्र बना दिया है. लोग-बाग सोशल मीडिया में सवर्ण समुदाय को जमकर गरिया रहे हैं. यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या देश में सिर्फ़ पंड़ित ही रहते हैं ? क्या देश में शोषित-पीड़ित दलित आदिवासियों का कोई वजूद नहीं हैं ? जो पंड़ित नहीं है क्या वह इंसान नहीं है?
वैसे इस बीच एक अच्छी बात यह हुई कि देश के पढ़े- लिखे और समझदार लोगों ने समीक्षा लिख- लिखकर फिल्म की बैंड बजा दी हैं. हालांकि अभी भी देश के नामचीन बुद्धिजीवियों और लेखकों की टिप्पणियां आनी बाकी हैं.तथापि जितने लोगों ने भी फिल्म के कंटेंट को लेकर धुलाई अभियान जारी रखा है वह काबिले तारीफ हैं.देश की अमनपसंद जनता के अलावा कश्मीर के बाशिंदों ने भी अपने प्रतिवाद से यह जाहिर कर दिया है कि कश्मीर फाइल्स आधे- अधूरे सच के साथ बनाई गई एक कचरा फिल्म के अलावा और कुछ नहीं है.
फिल्म को देखकर या समीक्षाओं को पढ़कर लोग पूरी शिद्दत से यह सवाल भी उठा रहे हैं कि भक्तों… अब तो आठ साल से केंद्र में मोदी की सरकार है. कम से कम अब तो कश्मीरियों का पुर्नवास कर दो ? इस बीच फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री का दो- एक मजेदार इंटरव्यू भी वायरल हुआ है. एक पत्रकार ने यह पूछा कि आपकी फिल्म ने करोड़ों कमा लिए… क्या आप कश्मीरी पंड़ितों के पुर्नवास के लिए कुछ करेंगे ? विवेक अग्निहोत्री ने आंखें चुराते हुए उत्तर दिया हैं-आपको गलतफहमी हैं कि फिल्म कमा रही हैं.जब कमाएगी तब देखेंगे. एक राज्य में कोई भक्त फ्री में फिल्म दिखवा रहा था तो अग्निहोत्री को कहना पड़ा- खुले में फिल्म दिखवाना अपराध है. लोग पैसे देकर फिल्म को देखें.
देश के भाजपा शासित राज्यों ने फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया है. टैक्स फ्री-टैक्स फ्री की चिल्लो-पौ पर किसी ने सोशल मीडिया में यह सुझाव भी दिया है कि अगर विवेक अग्निहोत्री सही मायनों में देशभक्त हैं तो उन्हें अपनी फिल्म को यू ट्यूब में डाल देना चाहिए.
फिल्म को देखने के बाद लोग प्रधानमंत्री की क्षमता को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं. सवाल यहीं है कि क्या देश का प्रधानमंत्री इतना कमजोर हैं कि उसे चुनाव जीतने के लिए एक अविवेकी फिल्मकार के चरणों में शरण लेनी पड़ रही हैं?
(राजकुमार सोनी अपना मोर्चा के संपादक हैं, उनसे 826895207 पर संपर्क किया जा सकता है)