राहुल, प्रियंका ने बता दिया कि राजनीति का मतलब देश को ज्यादा सुशिक्षित करना, जनता के मानसिक स्तर को उपर उठाना और प्रगतिशील मुद्दों को बढ़ावा देना है। केवल चुनाव जीतना नहीं। भारत जैसा विशाल देश जो विविधता से भरा हुआ है नफरत से नहीं चल सकता। यह प्रेम, लोगों को जोड़कर और उन्हें सच की तरफ ले जाकर ही आगे बढ़ सकता है।
एक बार देखने से ऐसा लग सकता है कि चुनाव के समय राहुल और प्रियंका ये कैसी आदर्शवाद की बातें कर रहे हैं। मगर कोई भी देश आदर्शवाद और उद्दात्त मूल्यों से बड़ा बनता है। राहुल गांधी के लोकसभा के भाषण की बहुत लोग तारीफ कर रहे हैं। मगर हमें सबसे ज्यादा सुखद आश्चर्य आरएसएस के पुराने लोगों द्वारा राहुल के भाषण की तारीफ देखकर हुआ। उन्हें सबसे ज्यादा क्या बात पसंद आई? राहुल के दो भारत बनने की बात। एक गरीब का दूसरा अमीरों का।
कोई भी हो चाहे कितना ही बड़ा भक्त हो। मगर उसे भी लगता है कि वह और ज्यादा गरीब होता जा रहा है। और अपनी आमदनी कम होने से ज्यादा उसे यह लगता है कि अंबानी, अडानी की संपत्ति दिन दूनी, रात चौगुनी कैसे बढ़ती जा रही है। गांव में लोग अपने मुहावरे में कहते हैं कि कौन से हल बैल जोत रहे वे?
संघ के लोग एक निश्चित माहौल में पढ़ते, सीखते हैं। मगर पुराने लोग सबसे मिलते जुलते थे। शहर, गांव की खबर रखते थे। वे देख रहे हैं कि अब साढ़े सात साल से केन्द्र में और पांच साल से उत्तर प्रदेश में वह सरकार है जिसका सपना वे छोटी उम्र से देख रहे थे। मगर इन सरकारों के आने से क्या हुआ? प्रधनमंत्री मोदी ने कह दिया कि 2014 के बाद भारतीयों की विदेशो में इज्जत बढ़ी है। मगर आजकल सबके बच्चे, निकट के रिश्तेदार विदेशो में हैं। वे इस दावे का खंडन करते हैं। वे भारत में रह रहे अपने परिवार वालों को बताते हैं कि विदेशों में झूठ को बहुत बुरा माना जाता है। बड़े बड़े दावों को कमजोरी की निशानी समझा जाते है। वहां सच्चाई का बहुत महत्व है। हम लोग यहां इतने सम्मान से इसलिए रह रहे हैं और अच्छा काम पा रहे हैं कि कि यहां गांधी, नेहरू के समय से भारत की छवि एक उदार और सत्य के साथ चलने वाले देश की है। यहां पैसा कमाना बुरा नहीं माना जाता मगर नैतिकता और व्यवसायिक मूल्यों के साथ। यहां अरबपति जनता को गरीब करके नहीं बन सकते। भारत में अभी 84 प्रतिशत परिवारों की आमदनी घटी है। और अरबपतियों की तादाद और आय दोनों बढ़ी हैं।
राहुल ने यही कहा कि दो भारत बन गए हैं। एक अमीरों के लिए और दूसरा गरीबों के लिए। दोनों के बीच खाई बढ़ती जा रही है। यह बात उन चंद अरबपतियों को छोड़कर देश के अधिकाश लोगों को पसंद आई। इनमें ही संघ परिवार के लोग भी हैं।
राहुल का लोकसभा का भाषण एक स्टेटसमेन ( दलगत राजनीति से उपर उठे देश के बारे में बात करने वाले राजनेता) की तरह था। देश की चिन्ता करते हुए। देश की जनता के बारे में सोचते हुए। जिसमें अपने और अपनी पार्टी के तात्कालिक लाभ हानि की चिन्ता नहीं थी। पहले देश, जनता फिर पार्टी। खुद की इमेज या खुद को स्थापित करने की चिन्ता तो थी ही नहीं। राहुल 2004 में राजनीति में आए। अपना पहला चुनाव अमेठी से लड़कर। उसके बाद से ही उन्हें सरकार में लेने और पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने की मांग होने लगी। लेकिन राहुल नहीं माने। 2007 में महासचिव बने। और उसके बाद वह ऐतिहासिक काम किया जिसके बारे में कोई सोच नहीं सकता था। एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस की जिम्मेदारी मिलते ही उन्होंने इन दोनों जगह संगठन में चुनाव करवाना शुरू कर दिए। यह अलग बात है कि इसी मनोनयन से गुलामनबी आजाद, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी युथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे और फिर पार्टी में इसी को लेकर सवाल उठाने लगे। मगर राहुल ने या सोनिया गांधी ने कभी नहीं कहा कि आप लोगों की पूरी राजनीति इसी तरह मनोनीत करने से चली है। और अब जब पार्टी विपक्ष में है और उसे ज्यादा सहयोग एवं एकता की जरूरत हो तब आप लोग विघटन के सवाल उठा रहे हैं।
किस के खिलाफ, उस राहुल के खिलाफ जो प्रधानमंत्री के कहने के बावजूद सरकार में शामिल नहीं हुए। आप लोगों को मंत्री बनाया। राज्यसभा दी। आजाद को राज्य सभा में विपक्ष का नेता और आनंद शर्मा को उप नेता बनाया। और मनीष को हार के डर से 2014 का चुनाव लड़ने से इनकार करने के बाद फिर 2019 में सेफ सीट देकर लोकसभा जिताया। कम लोगों को मालूम होगा तो यहां यह भी बता दें कि इन्दिरा गांधी ने मनीष के पिता को भी राज्यसभा दी थी। राहुल बहुत बाद में अध्यक्ष बने। 2017 में। पूरे विधिवत चुनाव से और 2019 में साहसपूर्वक इस्तीफा दे दिया।
कोरोना को दो साल हो रहे हैं। राहुल इस दौरान लगातार जनता के बीच रहे। चाहे पहली लहर के दौरान मजदूरों के सैंकड़ों मील पैदल चलकर अपने गांव जाने का मामला हो या किसानों का एक साल चला आंदोलन हो। हाथरस का दलित लड़की के साथ बलात्कार और उसकी मौत के बाद रातों रात उसका शव जला देने का मामला हो या लखीमपुर खीरी में केन्द्रीय मंत्री के बेटे द्वारा किसानों और पत्रकारों को अपनी गाड़ी से रौंद देने का मामला हो। राहुल हर जगह पीड़ितों के साथ खड़े रहे। उत्तर प्रदेश के हर मामले में वहां की इन्चार्ज महासिचव प्रियंका गांधी पीड़ितों की आवाज उठाने और न्याय दिलाने के लिए घटना स्थल पर पहुंची। हाथरस जाते हुए राहुल को धक्का देकर गिराया गया। प्रियंका ने अपने हाथ पर पुलिस की लाठियां रोकीं। सोनभद्र और लखीमपुर जाते हुए हिरासत में लिया गया मगर दोनों भाई बहनों ने कभी कोई शिकायत नहीं की।
आज प्रियंका यूपी में डोर टू डोर प्रचार कर रही हैं। कह रही हैं कि लोग गर्मी और चर्बी की बात कर रहे हैं। हम युवाओं की भर्ती बात कर रहे हैं। प्रियंका ने यूपी में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को दिए हैं। देश की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन लाने वाले काम की शुरुआत की है। इसी तरह जब यूपी में पूरा चुनाव धर्म और जातियों के नाम पर हो रहा है। तो एक वे ही हैं जो रोजगार, महिला सुरक्षा, किसान, चिकित्सा, शिक्षा पर बात कर रहीं हैं। और केवल बात नहीं युवा और महिला के लिए अलग से घोषणा पत्र जारी किया है। हार जीत लगी रहती है। मगर जनता के मुद्दों का जिन्दा बने रहना बड़ी बात है। देश मजबूत जनता से ही बनता है। और जनता को लगातार जागरूक करते रहना, उसे भावुक मुद्दों से निकालकर जीवन के वास्तविक सवालों पर लाकर खड़ा करना बड़ी बात है।
राहुल और प्रियंका की राजनीति एक उम्मीद जगाती है कि कुछ लोग हैं अभी जो डरते नहीं हैं। ऐसे समय में जब सारी संवैधानिक संस्थाएं डरी हुई हैं। चुनाव हैं, मगर चुनाव आयोग बोल नहीं सकता। न्याय की देवी ने अपनी आंखों के बाद कान और मुंह भी बंद कर लिए हैं। मीडिया की तो बात ही करना बेकार है। कोई शब्द, उपमा नहीं जो उसके पतन का वास्तविक रूप बता सके। केवल शर्म और दुःख ही कहा जा सकता है। बाकी सब भी चुप हैं या सरकार के इशारों पर नाच रहे हैं। ऐसे में जनता की आवाज बनना। उसके साथ खड़ा होना बड़ी बात है। राहुल और प्रियका यही कर रहे हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एंव वरिष्ठ पत्रकार हैं)