नई दिल्लीः कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब विवाद देश के अन्य राज्यों में भी फैलता जा रहा है। हिजाब लगाने वाली छात्राओं को क्लासरूम में जाने से रोका जा रहा है, तो वहीं कर्नाटक के हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट में बहस चल रही है। एक वर्ग विशेष द्वारा हिजाब पहनने को दकियानूसी बताया जा रहा है, तो वहीं ऐसी भी महिलाओं की कहानियां सोशल मीडिया और मीडिया में छप रही हैं, जिन महिलाओं ने हिजाब को लेकर कोई समझौता नहीं किया, और वे ज़िंदगी की सफलता के शिखर पर पहुंचीं। इन्हीं में से एक राफिया अरशद हैं, राफिया हिजाब लगाती हैं, और दो साल पहले ही वे ब्रिटेन में जज बनीं हैं।
इंडिपेंडेंट की ख़बर के मुताबिक़ राफिया अरशद हिजाब पहनने वाली पहली मुस्लिम महिला हैं, जो ब्रिटेन में जज बनी हैं। वह जल्द ही मिडलैंड्स में डिप्टी अटॉर्नी जनरल के रूप में पदभार संभालेंगी। 40 वर्षीय राफिया अरशद का संबंध लीड्स से हैं। राफिया ने एक ब्रिटिश अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने ग्यारह साल की उम्र में जज बनने का सपना देखा था। लॉ कॉलेज के इंटरव्यू के वक्त परिवार के लोगों ने उनसे हिजाब उतारने को भी कहा था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था।
‘यह कामियाबी योग्यता से मिली, हिजाब पहनने से नहीं’
राफिया अरशद ने कहा, ‘मैं मुस्लिम युवाओं को बताना चाहती हूं कि वे जो सोचते हैं, उसे हासिल कर सकते हैं। मैं इस बात को विश्वसनीय बनाना चाहती हूं कि समाज में विभिन्न विचारों और सोच रखने वाले लोगों की समस्याओं को भी सुना जाए। यह समाज में सभी महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर जो मुस्लिम हैं। मैं खुश हूं, लेकिन मुझे यह अन्य लोगों से साझा करके जो खुशी मिली है वह कहीं अधिक बड़ी है।’
मैं कई वर्षों से इस पर कई सालों से मेहनत कर रही थी। जब मेरे करीबी लोगों ने कहा कि हिजाब पहनने से कामयाबी की संभावना कम हो जाएगी मैंने उस वक्त भी हिजाब को नहीं छोड़ा। राफिया पिछले 15 वर्षों से बच्चों से संबंधित कानून, जबरन शादी, महिलाओं के खिलाफ नस्लीय भेदभाव और इस्लामी कानून की प्रैक्टिस कर रही हैं। राफिया का कहना है कि, “मुझे यह ओहदा मेरी काबिलियत की वजह से मिला, हिजाब पहनने की वजह से नहीं।’