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भड़काऊ नारेबाज़ी और सियासत: न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिन्दोस्तां वालों….

हेट स्पीच करने वालों को, सिर फोड़ने का हुक्म देने वालों को और मारने वालों को मजा आने लगा है। अब वे किसी के खिलाफ भी कुछ भी बोल सकते हैं। कुछ भी कर सकते हैं। इसमें भी जो कमजोर हैं उनमें कोई ज्यादा मजा नहीं है। जो कुछ खास समझते हैं, उन्हें मारने में ज्यादा संतुष्टि मिलती है। एक भाव आता है कि देखो इन्हें भी मजा चखा दिया।

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समझ रहे हैं न इसका मतलब! कोई नहीं बचेगा। गारंटी है, हर घर नफरत की, गुस्से की, हिंसा की, विभाजन की आग में जलेगा। और चाहे कोई किसी भी जाति का हो, धर्म का हो, बुजुर्ग हो, स्त्री हो, किसान हो, कोई हो नहीं बचेगा। जैसे जब प्रेम का माहौल होता है तो कुष्ट रोगियों के साथ भी लोगों का व्यवहार प्रेमिल हो जाता है और जब घृणा फैलाई जाती है तो जिसे अनादि काल से अन्नदाता कहा जा रहा है, उसका सिर फोड़े बिना उसे जाने न देने का आदेश दिया जाता है।  देश गलत दिशा में जा रहा है। थोड़ा नहीं बहुत ज्यादा। यहीं इकबाल की वह चेतावनी याद आती है कि-

“न समझोगे तो मिट जाओगे, ए हिन्दोस्तां वालों

तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में!

9 महीने से किसान सड़कों पर बैठा है। सारे मौसम खुले आसमान के नीचे निकाल दिए। सर्दी, गर्मी और अब ये बरसात। और उसके लिए खुले आम कहा जा रहा है कि बच कर न जाने पाए। जो जाए उसका सिर फूटा हो। और यही हुआ। करनाल में पचासों किसान खून में नहा गए। एक शहीद हो गया। लेकिन सबके सामने किसानों के सिर फोड़ने का हुक्म देने वाले अफसर का कुछ नहीं हुआ। हरियाणा के मुख्यमंत्री उसके पक्ष में बयान दे रहे हैं। बाकी लोग किसानों का खून बहता देख खुश हो रहे हैं। ये हिंसा से सुख पाना एक नया मनोभाव पैदा हो गया है। सैडिज्म ( दूसरों को दुःख देकर खुशी पाना) का और भयानक रूप है। जहां भीड़ के जरिए, सत्ता के द्वारा जुल्म ढाकर शक्तिसंपन्न होने का अहसास होता है।

क्या क्या नहीं हो रहा? मध्य प्रदेश के नीमच में एक युवा आदिवासी के पांव मिनी ट्रकनुमा गाड़ी से बांधकर खींचा जाता है। सड़क पर घिसटते हुए उस कान्हा नाम के अदिवासी को मरना ही था। पचासों लोग देखते रहे। किसी ने नहीं बचाया। वीडियो बनाते रहे। यह नया भारत है। जहां संवेदना को खत्म कर दिया गया है। और डर ऐसा बैठा दिया गया है कि कोई किसी की मदद करने की हिम्मत नहीं कर रहा।

हिंसा करने वाले, नफरत से उसके लिए माहौल बनाने वाले कहते हैं कि वे देश को बहादुर और मजबूत बना रहे हैं। कमजोर पर गरीब पर अत्यचार करना ही अगर वीरता है तो निश्चित ही रूप से देश में वीरता का नया संचार हो रहा है। और अगर इस विभाजन से देश मजबूत हो रहा है तो फिर पक्के तौर पर देश बहुत शक्तिशाली हो जाएगा। उससे भी ज्यादा जितना टीवी वाले हमें बताते हैं। एक न एक दिन चीन को भी खबर मिल ही जाएगी की भारत की भीड़ बहुत ताकतवर हो गई है। कभी भी उसकी  लिंचिंग करने आ सकती है। फिर वह खुद ही डर कर भाग जाएगा। और हमारे टीवी के वीर, बहादुर एंकर बताएंगे कि जिस चीन को हमारी सेना ने घुसने दिया वह हमारी भीड़ को देखकर भाग गया। वह एंकर सबसे ज्यादा खुश होकर बताएगी, जिसने कहा था कि चीन की घुसपैठ सुरक्षा बलों की नाकामी है। सरकार का इससे क्या मतलब। रोकने की जिम्मेदारी सेना की थी वह असफल रही। और अब जो काम सेना नहीं कर पाई उसे हमारे द्वारा प्रेरित भीड़ ने कर दिखाया।

हिंसा का बढ़ना और विचारों का पतन सब साथ साथ होता है। ये चीजें अन्योन्याश्रयित होती है। नफरत और विभाजन के भाषण हिंसा का बढ़ाते हैं। हिंसा विचारों में, शब्दों में और क्रुरता, जहर घोल देती है। और फिर ये जहर किसी को को नहीं बख्शता। अभी उत्तर प्रदेश में मोदी सरकार में शामिल अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (एस) के व्हट्सएप ग्रुप का एक मैसेज वायरल हुआ। इसमें पूछा गया है कि भारत में सबसे गंदी जाति कौन सी है? आप्शन में दो नाम हैं। ब्राह्मण और राजपूत! समझ लीजिए। घृणा का यह सैलाब हर तरफ पहुंचेगा। कोई प्रिवलेज ( सामाजिक विशेषाधिकार) आपको बचा नहीं सकेगा। घृणा उपर भी पहुंचेगी। और वहां आपस में और ज्यादा वीभत्स रूप में होगी। मध्य प्रदेश में आदिवासी के वीडियो से कुछ ही दिन पहले एक और वीडियो आया था। इसमें करणी सेना के लोग एक युवक संतोष पांडेय को सामने थूक रहे हैं। और उससे चटवा रहे हैं। अपने जूते पर सिर रखवा रहे हैं। जुल्म करने और उसका मजा लेने के नए नए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं। पहले लोग खुश थे कि वे इसका शिकार नहीं बनेंगे। मगर अब सिद्ध हो गया कि नफरत, विभाजन और हिंसा जब उपर से, राजनीतिक रूप से फैलाई जाती है तो फिर कोई नहीं बचता।

यहां मुसलमानों, दलितों, पिछड़ों के साथ किए जाने वाले अत्याचारों का जिक्र ही नहीं कर रहे। न जाने कितने हैं। मगर घृणा की यह संस्कृति महिलाओं के लिए कितनी खतरनाक है यह जरूर बताना होगा। राजनीतिक क्षेत्रों खासतौर से भाजपा की महिला नेताओं के बीच इस समय एक वीडियो बहुत च्रर्चा में है। ये महिला नेता बहुत गुस्से में हैं। ज्यादातर तो खामोश हैं। मगर कुछ ने कहा कि हम बहुत अपमानित महसूस कर रहे हैं। माफी मांगते हैं इस व्यक्ति का समर्थन करने के लिए।

क्या है वीडियो में? हंस हंस कर महिला को उपभोग की वस्तु बताना। राजनीति में आने वाली सभी महिलाओं का चरित्र हनन। बेशर्मी के साथ तुलना कि सपा की महिलाओं के साथ यह होता है। और भाजपा की महिलाओं के साथ तो बहुत खराब। इन स्वामी जी का घृणा फैलाने वाले लोगों ने खूब समर्थन किया था। महिलाओं ने भी। तब, जब ये दूसरे समुदाय के खिलाफ ऐसी ही बातें कर रहे थे। यह एक वीडियो नहीं है। इससे पहले एक और आया था। जिसमें पुरुष के काम पर चले जाने के बाद घर में रह रही महिलाओं पर ऐसी ही टिप्पणियां की गईं थीं।

धर्म के प्रचारक से लगते ऐसे व्यक्तियों को पहले कुछ बातें रटवा दी जाती हैं। वे घृणा फैलाने वाले को सूट करती हैं। मगर प्रचार पाते ही वह व्यक्ति अपनी अक्ल लगाने लगता है। जो घृणा से बनी होती है। फिर उसमें वह अपने हिसाब से चाहे जिसे निशाने पर लेने लगता है।

ये किसी एक धर्म या जाति की समस्या नहीं है। घृणा का प्रसार कर दो तो वह हिन्दु, मुसलमान, सवर्ण, अवर्ण सबमें प्रवाहित हो जाती है। ताकत वाले के पास ज्यादा। कमजोर इसका निशाना बनते हैं। मगर कमजोर कौन कहां हैं यह समय और परिस्थितयों के हिसाब से तेजी से बदलता रहता है। उपर के उदाहरण बताते हैं कि एक एक करके सब इसका शिकार बनते हैं।

मीडिया क्या सोचता है? बच जाएगा! कोई नहीं बचेगा। आज ये एंकर और पत्रकार सबसे ज्यादा नफरत फैला रहे हैं। रोज नए भस्मासुर पैदा कर रहे हैं। ये भस्मासुर किसी को नहीं छोड़ेंगे। और तब मीडिया के पास कहने को सिर्फ यह होगा जो पास्टर निमोले ने 75 साल पहले जर्मनी में कहा था कि मुझे बचाने वाला कोई नहीं बचा। निमोले भी शुरू में हिटलर की नफरत की राजनीति का समर्थक था। मगर जुल्म का शिकार होने से वह भी नहीं बचा। तब उसने यह कविता लिखी-

“पहले वे यहुदियों के लिए आए

और मैं नहीं बोला

क्योंकि मैं नहीं था यहूदी।

फिर वे क्म्युनिस्टों के लिए आए

तब मैं नहीं बोला

क्योंकि मैं नहीं था कम्युनिस्ट।

फिर वे कैथोलिकों के लिए आए

फिर भी मैं नहीं बोला

मैं नहीं था कैथोलिक

फिर वे मेरे लिए आए

और कोई नहीं था

जो मेरे हक में बोलता!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)