विश्वदीपक
मॉस्को के मायरहोल्ड थियेटर एंड कल्चरल सेंटर की निदेशक कोवलस्काया ने यूक्रेन पर रूसी हमले के विरोध में इस्तीफ़ा दे दिया. कोवलस्काया ने अपने इस्तीफ़ा में लिखा “एक हत्यारे (पुतिन) के लिए काम करना और फिर उसके बदले में उससे सैलरी लेना उनके लिए मुश्किल है”.
रूस की जनता पुतिन को “हत्यारा” कहती है. यूक्रेन की जनता से माफ़ी मांग रही युद्ध के लिए. इधर,भारत की “मृतआत्माएं” (निकोलाई गोगोल के शब्दों में) जार पुतिन के बचाव में तरह-तरह के तर्क गढ़ रही हैं.
रूस के खिलाड़ी, वहां के स्टार, अभिनेता, समाज के अग्रणी लोग पुतिन की हत्याओं के लिए ख़ुद को रूसी होने के नाते जिम्मेदार समझ रहे हैं. वो गिल्ट में हैं. इधर का हाल यह है कि “भारतीय गुलामों” में से कई तो रूसी सेना द्वारा थोपे गए युद्ध के फायदे तक बताने में लग गए.
रजनीश सही बोलता था. यह मुल्क सड़ी हुई, गुलाम आत्माओं वाला मुल्क है. यहां लोग सवाल नहीं, जवाब लेकर पैदा होते हैं. खाने-पीने, सोने और सेक्स के अलावा कुछ पैसा, गाड़ी और फ्लैट (शहरी गुलाम) खरीद लेने को भारत की सड़ी हुई आत्माएं अपनी उपलब्धि के तौर पर दर्ज़ करती हैं.
फिर दोहरा रहा हूं: पुतिन के लिए वाटरलू साबित होगा यूक्रेन का युद्ध. पुतिन ज़ार की तरह अय्याश है. रशियन माफिया, oligarch का पॉलिटिकल प्रतिनिधि है. उसका अंत दुनिया के लिए ज़रूरी है. उसका रूस की जनता से कोई संबंध नहीं. वैसे ही और उसी प्रकार से जैसे हमारे यहां के रूलिंग एलीट का. स्पष्टीकरण: यहां की रूलिंग क्लास फिर भी मानवीय है.
यूक्रेन पर रूसी हमले के विरुद्ध दिल्ली में प्रदर्शन
हमें यह समझना होगा कि बिना अमेरिकी संदर्भ के भी “जार” पुतिन द्वारा यूक्रेन पर थोपे गए युद्ध को समझा जा सकता है. इसके लिए किसी रॉकेट साइंस या पांच साल तक पीएडी करने की ज़रूरत नहीं. सिंपल सी बात है कि एक लगभग बिना सेना वाले देश की संप्रभुता को एक सनकी, तानाशाह (23 साल से रूस की सत्ता पर काबिज) ने टैंक तले रौंदने की कोशिश की.
सड़ी हुई चेतना और बिकी हुए ज़मीर वालों की बात नहीं करता. लेकिन इस बात का समर्थन कोई नहीं करेगा कि किसी काल्पनिक खतरे की आशंका में आप एक देश को नष्ट कर दें. लाखों को विस्थापित और बेघर-बार कर दें. मार डालें. रूस के लेकर ब्राजील तक इस ठग और हत्यारे पुतिन विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. यहां तक कि रूस के युवक-युवतियां जान की परवाह किए बिना, पुतिन की ऐसी की तैसी कर रहे.
जबकि यहां भारत में “इतिहास के गुलाम” प्राकृतिक गैस की खरीद बिकवाली का फर्ज़ी तर्क गढ़ रहे. कुछ लुंपेन किस्म के JNU वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता (क्योंकि और कुछ नहीं बन सकते थे) तानाशाह के समर्थन में अभियान चला रहे. सबसे दिलचस्प तो गाय, गोबर और मुसलमान के नाम पर कल्तेआम मचा देने वाले “भक्तों” का रवैया है. वो फिर से कम्युनिस्टों को “देशद्रोही” साबित करने में लग गए. यह उनका पसंदीदा शगल है. याद रखिएगा – पुतिन का अंत नज़दीक है. धैर्य का मतलब कमजोरी नहीं. दुनिया देख रही है. इसका वही अंत होगा जो हिटलर का हुआ था.
याद रखिएगा
यूक्रेन पर पुतिन का हमला उसके लिए “वाटरलू की लड़ाई” साबित होने वाली है. वक्त लग सकता है लेकिन पुतिन का अंत होना तय है. वो अपनी समाप्ति की कहानी वाले दस्तावेज पर खुद ही हस्ताक्षर कर चुका है. अमेरिका ने यूक्रेन के राष्ट्रपति से कहा कि हम तुम्हे कीव से बाहर निकाल सकते हैं लेकिन जेलेंस्की ने मना कर दिया. उसने कहा कि वो अपने लोगों के साथ, जिन्होंने उसे चुना है, लड़ते हुए कीव में मर जाना पसंद करेगा.
जो लोग अपनी आज़ादी के लिए लड़ते हैं, मिट जातें हैं — वो मरकर भी अमर हो जाते हैं. दुनिया उन्हें कभी नहीं भूलती. दाएं-बाएं माहौल भांपकर लिखने-बोलने वाले, छिछली, अनैतिक राह चुनने वाले, सड़ी हुई चेतना के लोग सीज़नल टिड्डियों की तरह विलीन हो जाते हैं.
बहुत अच्छे से याद है जब काला सूट और सफेद शर्ट पहने सद्दाम हुसैन की गर्दन पर एक मोटी रस्सी फंसा दी गई थी. पकी हुई, खिचड़ी दाढ़ी वाले सद्दाम कुछ थके लग रहे थे उस दिन लेकिन उनके चेहरे पर मौत का खौफ बिल्कुल नहीं था.तब मेरा ग्रेजुएशन भी पूरा नहीं हुआ था.
“द हिंदू” की वो कटिंग आज भी मेरे पास है. जेलेंस्की की आंखों में मुझे खौफ नहीं दिखा. आज़ादी के लिए मृत्यु की राह पर चलने वाला यह नैतिक, खूबसूरत, बहादुर इंसान याद रह जाएगा.
(लेखक जाने-माने पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)