पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद (एनईसी) की बैठक ने सेक्युलर पार्टियों से यह अपील की है कि वे हरिद्वार के हिंदुत्व कार्यक्रम में नरसंहार के दिए गए आह्वान पर अपनी चुप्पी तोड़ें।
पॉपुलर फ्रंट की एनईसी द्वारा पारित एक प्रस्ताव में कहा गया कि मुख्यधारा की सेक्युलर पार्टियाँ देश के संविधान और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के अपने कर्तव्य को काफी समय से भुला बैठी हैं। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार समूहों के एक छोटे से वर्ग को छोड़कर पूरे देश में शायद ही किसी ने इस नफरती कार्यक्रम के खिलाफ कुछ बोला है, जिसमें खुल्लम-खुल्ला मुसलमानों से देश को साफ करने का आह्वान किया गया। चुनावों के दौरान यह पार्टियाँ मुसलमानों और देश के अन्य अल्पसंख्यकों के पास आकर उन्हें सांप्रदायिक फासीवाद से सुरक्षा प्रदान करने की बात करती हैं। लेकिन आज जबकि देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और नरसंहार के खतरे कहीं अधिक बढ़ते नज़र आ रहे हैं, ऐसे में यह पार्टियाँ ख़ामोश तमाशाई का रोल निभा रही हैं। यह केवल उन लोगों के साथ धोखा नहीं है जिन्होंने उन्हें वोट दिया है, बल्कि यह उन आदर्शों के साथ भी बड़ा धोखा है जिन पर चलने का वे दावा करती हैं। पॉपुलर फ्रंट की एनईसी ने कहा कि अगर यह पार्टियाँ देश और जनता के प्रति अपना कर्तव्य निभाने में आगे भी असफल रहती हैं तो बहुत जल्द वे अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता खो बैठेंगी। इसलिए एनईसी देश की सेक्युलर पार्टियों से अपील करती है कि वे अपनी चुप्पी तोड़ें और इन नरसंहारी ताक़तों के ख़िलाफ मज़बूत क़दम उठाएं।
दूसरे प्रस्ताव में पॉपुलर फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद ने ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ दक्षिणपंथी हिंदुत्व ताक़तों की बढ़ती हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त की। ख़बरों के अनुसार, केवल पिछले 1 साल में देश के अंदर ईसाईयों और उनकी सभाओं के ख़िलाफ हिंसा की 300 से अधिक घटनाएं सामने आई हैं। बीजेपी शासित राज्यों में धर्म-परिवर्तन के आरोप के तहत ईसाई समुदाय के मानवीय व शैक्षणिक संस्थानों के ख़िलाफ सरकार की दमनकारी कार्यवाहीयाँ इस प्रकार की हिंसक घटनाओं को हौसला देने का काम कर रही हैं। ईसाई चैरिटी संस्थानों का लाइसेंस रद्द करने और विदेशी फंड पर रोक लगाने से उन मरीज़ों और गरीब लोगों के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेंगे जिनका जीवन ऐसे ही संस्थानों पर निर्भर है। यह परिस्थितियाँ केवल अस्थाई रैलियों और प्रदर्शनों के बजाय पीड़ित वर्गों के अंदर से निरंतर एवं संयुक्त प्रयासों का तक़ाज़ा करती हैं, ताकि अत्याचार को पराजित किया जा सके। पॉपुलर फ्रंट यह उम्मीद करता है कि अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए पीड़ितों के बीच से ही संयुक्त लोकतांत्रिक संघर्ष उभरकर सामने आएगा।
एक अन्य प्रस्ताव में एनईसी ने कोरोना की तीसरी लहर से निमटने के लिए सरकार के तैयारी न करने पर अपनी पीड़ा जताई, क्योंकि देश में एक बार फिर कोरोना ज़ोर पकड़ रहा है और सरकार की तैयारी कुछ नहीं है। हालांकि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान सरकार की आपराधिक लापरवाही के कारण देश को भारी क़ीमत चुकानी पड़ी थी। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने मई 2021 में आश्वासन दिया था कि दिसंबर 2021 तक देश में सबको वैक्सीन लग जाएगा। लेकिन दुर्भाग्य से 30 दिसंबर तक कुल आबादी के 10 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्से को अभी पहला टीका भी नहीं लगा है और केवल 64 प्रतिशत वयस्क आबादी को पूरी तरह से वैक्सीन लगी है। स्वास्थ्य मंत्रालय अब 100 प्रतिशत वैक्सीन के लक्ष्य पर ख़ामोश है और तीसरी लहर के भय के बीच इस नाज़ुक समय में भारत के वैक्सीन डैशबोर्ड कोविन (CoWin) के अनुसार साप्ताहिक टीकाकरण का ग्राफ काफी नीचे आ गया है।
प्रस्ताव में ख़बरदार करते हुए कहा गया कि हालात बदतर होने से पहले तत्काल और ठोस क़दम उठाने चाहिएं, वरना नरेंद्र मोदी सरकार का ‘‘सब ठीक है’’ का प्रचार किसी काम नहीं आएगा। देश की जनता से हमारी अपील है कि वह कोरोना के सभी नियमों का पूरी तरह से पालन करें और सरकार को हरकत में लाने के लिए अपनी आवाज़ उठाएं। नागरिकों को चाहिए कि वे सरकार की झूठी तसल्लियों से बिलावजह के आत्मविश्वास का शिकार ना हों और तीसरी लहर के ख़तरे को हल्के में ना लें। वहीं सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह पूरी सूझबूझ और तेज़रफ्तारी से काम करते हुए हर तरह से तैयार रहे।
पॉपुलर फ्रंट के कैडर भी जिन्होंने पहली और दूसरी लहर के दौरान अपनी निस्वार्थ सेवाओं के द्वारा जनता की भरपूर सहायता की, एक बार फिर से ख़ुद को तैयार कर लें और ज़रूरत पड़ने पर स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलकर ज़रूरतमंदों को मानवीय सहायता व बचाव सेवा प्रदान करें।