संजय कुमार सिंह
राणा अयूब को लोकोपकार के उनके कामों के लिए परेशान किया जा रहा है। इससे पता चलता है कि देश में लोकोपकार कितना मुश्किल है। भारत जैसे गरीब देश में जहां सरकार जनता के लिए जरूरी बहुत सारे काम नहीं करती या पर्याप्त ढंग से नहीं कर पाती है वहां गैर सरकारी संगठन काफी मददगार हो सकते हैं। यह सहायता विदेशी धन से की जाए तो सरकार या देश का कोई नुकसान भी नहीं है उल्टे नागरिकों की सेवा में वह पैसा लग रहा है जो देश का है ही नहीं। एक गरीब देश के लिए यह कतई बुरा नहीं है और जन आवश्यकताएं पूरी करने के लिए एक रास्ता तो है ही।
सरकार ही इस मार्ग में बाधा बन जाए तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है। साफ है कि सरकार को मतलब सिर्फ राजनीति से है। पहले की सरकार में ऐसे मामले होते थे कि नहीं, मैं नहीं जानता पर जन हित में विदेशी चंदा लेने को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। नियमों की आड़ में जन सेवा करने वाले को परेशान करना बेहद अनैतिक है। कमेंट बॉक्स में न्यूज लांड्री के लिए लिखी आयुष तिवारी की खबर का लिंक है जो बताती है कि ऐसे मामले में सजा जैसा कुछ नहीं है। बदनामी, सेवा जैसे काम से रोकना और डराना उद्देश्य हो तो वह जरूर पूरा हो सकता है। लेकिन उसमें सेवा तो रुक ही जाएगी। इसकी परवाह सरकार को नहीं है।
बहुमत के नशे से अलबलाई सरकार जनहित को भी ताक पर रख दे रही है और बगैर पूर्व सूचना लॉक डाउन का अफसोस तो नहीं ही है उस दौरान सैकड़ों लोगों को राहत पहुंचाने का कोई ईनाम तो छोड़िए परेशान करने की कोशिश की जा रही है क्योंकि राणा अयूब सरकार के खिलाफ लिखती है। अगर गलत लिखती होती तो उसी के लिए कार्रवाई की जा सकती थी और वहां कानून कम नहीं है। लेकिन सोशल मीडिया पर ट्रोल करने के अलावा सरकारी स्तर पर यह सब। यह दिलचस्प है कि आरोप गलत हों, जांच गैर जरूरी तो सरकारी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई का कोई नियम नहीं है ना ही पीड़ित को कोई राहत या क्षतिपूर्ति देने की व्यवस्था। यह हमारा सिस्टम है और इसे सुधारने का काम सरकार का था। पहले की सरकारों ने नहीं किया तो इसे करना था पर.
पीएम केयर्स का विरोध इसीलिए किया जाता है। कानूनन जो जांच राणा अयूब की हो रही है वही पीएम केयर्स की हो तो वहां गलतियां कम नहीं निकलेंगी या सर्वविदित हैं पर खबर नहीं छपती। ना ट्रोल किया जाता है। अगर वह सरकारी नहीं है, जैसा दावा किया जाता है तो जांच क्यों नहीं होनी चाहिए। पर पीएम केयर्स तो छोड़िए जांच उसी की होती है जो सरकार के खिलाफ है या जो सरकार को चुनाव में प्रभावित कर सकता है। कहने की जरूरत नहीं है कि राणा अयूब के खिलाफ तो जांच हो रही है लेकिन मंदिर के लिए चंदे के पैसे के दुरुपयोग की इससे गंभीर और ठोस शिकायत पर कार्रवाई नहीं हुई। उस मामले में भी नहीं जहां शिकायतकर्ता संघ की पदाधिकारी रही हैं। तब कह दिया गया है कि जिसने चंदा नहीं दिया है उसे क्या मतलब और इस मामले में ऐसी ही शिकायत पर कार्रवाई!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)