नई दिल्लीः पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के महासचिव अनीस अहमद ने कहा है कि कानपुर में हिंसा के दौरान और बाद में यूपी पुलिस की कार्यवाही पक्षपातपूर्ण और एक पक्ष के प्रति भेदभाव पर आधारित है। पीएफआई ने कहा कि पैगंबर साहब पर जिस नूपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद कानपुर में प्रदर्शन शुरू हुए, उसके ख़िलाफ कई एफआईआर होने के बाद भी पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर रही है। यह प्रदर्शन किस तरह हिंसक हो गए इसकी पूरी बारीकी और निष्पक्ष रुप से जांच और अपराधियों के ख़िलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए।
अनीस अहमद ने कहा कि घटना के फुटेज से यह स्पष्ट होता है कि जब अपराधियों की तरफ से प्रदर्शनकारियों पर विस्फोटक पदार्थ फेंके जा रहे थे, तो पुलिस ख़ामोश खड़ी तमाशा देख रही थी। वहीं पुलिस ने लोगों को ख़ामोश करने का प्रयास कर रहे मुस्लिम लीडरों के साथ बदतमीज़ी की। ज़्यादातर मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें कई का हिंसा से कोई लेना-देना नहीं था।
उन्होंने कहा कि प्रदर्शनों का हिंसक हो जाना भारत में कोई नई बात नहीं है। इस पर क़ानूनी व निष्पक्ष तरीके से कार्यवाही की जानी चाहिए। लेकिन जब ये प्रदर्शन मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर होते हैं, तो इसे आतंकवाद की तरह देखा जाता है और उनके ख़िलाफ ग़ैर अदालती तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। मुस्लिम संगठनों और लीडरों को बदनाम किया जाता है। कानपुर मामले में भी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को बदनाम करने की कोशिश की गई।
अनीस अहमद ने कहा कि कानपुर पुलिस के पास पॉपुलर फ्रंट को हिंसा से जोड़ने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ मीडिया घराने इसमें पॉपुलर फ्रंट का नाम घसीटने के लिए उतावले हुए जा रहे हैं। पॉपुलर फ्रंट इस तरह की ख़बरों को साफ शब्दों में खारिज करता है। घटना के बाद यूपी पुलिस की प्रतिक्रिया यह दिखाती है कि वह इस दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति को बुलडोज़र की राजनीति के लिए एक अवसर में बदलना चाहती है।
पीएफआई के नेता ने कहा कि आला अधिकारियों ने खुले तौर पर उन लोगों की संपत्तियों पर बुलडोज़र दौड़ाने की धमकी दी है, जिनके प्रति वे भेदभाव रखते हैं और जिन पर हिंसा का आरोप लगाया है। यह केवल राजकीय आतंकवाद है। इससे आख़िरकार लोकतांत्रिक संस्थानों और समाज में क़ानून व्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा। पॉपुलर फ्रंट यूपी सरकार और पुलिस से अपील करता है कि वे क़ानून व्यवस्था को नज़रअंदाज़ करना और न्याय पर पहरा डालना बंद करें।