इन तथाकथित शोभायात्राओं का इस्तेमाल मुसलमानों को डराने-धमकाने के लिए किया गया…

पलश सुरजन

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देश को हिन्दू राष्ट्र में तब्दील करने की सनक पर कितनी तेजी से काम हो रहा है, इस बात का अंदाज़ा जगह-जगह चलते बुलडोज़रों से लगाया जा सकता है। मुसलमानों को पहले ही हिंदुत्व से आक्रांत करने की कोशिशें चल रही हैं। हनुमान जयंती, रामनवमी और दुर्गापूजा के मौकों पर जो शोभायात्राएं देश के कई स्थानों में निकाली गईं, उनमें शोभा कितनी थी और धर्मांधता का उत्पात कितना था, यह जागरुक जनता ने देखा है। इन तथाकथित शोभायात्राओं का इस्तेमाल मुसलमानों को डराने-धमकाने के लिए किया गया। जानबूझ कर उकसाने वाली बातें की गईं ताकि प्रतिवाद हो, हिंसा भड़के और फिर अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों का ज़ोर दिखाया जा सके।

और जब ऐसा हुआ तो फिर उत्पात वाले इलाकों में अचानक प्रशासन को अवैध निर्माण दिखाई देने लगा, मानो इससे पहले वो सारा निर्माण अदृश्य था। ऐसा नहीं है कि इससे पहले देश में कभी अवैध निर्माण तोड़े नहीं गए। कई प्रशासनिक अधिकारियों ने लोगों की नाराज़गी मोल लेते हुए नियम-कायदों के तहत अवैध निर्माण तुड़वाए हैं। लेकिन उसकी एक प्रक्रिया होती है। लोगों को नोटिस जारी किया जाता है, अपना सामान खाली करने का वक़्त दिया जाता है। मगर इस समय देश में जो हो रहा है, उसे प्रशासनिक गुंडागर्दी के अलावा और क्या नाम दिया जाए, ये समझ नहीं आ रहा।

उत्तरप्रदेश से निकाली गई बुलडोज़र यात्रा अब मध्यप्रदेश और गुजरात के बाद दिल्ली भी पहुंच चुकी है। दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में शनिवार रात हनुमान जयंती के मौके पर हिंसा भड़क गई थी। शोभायात्रा में हथियार लहराए गए, दो समुदायों के बीच भिड़ंत हुई और दिल्ली पुलिस एक बार फिर हिन्दी फ़िल्मों वाली पुलिस वाला किरदार निभाती नज़र आई। दो साल में दूसरी बार दिल्ली दंगों का शिकार होती दिखी और यहां बैठे देश के बड़े सूरमाओं को इसकी भनक तक नहीं लगी कि आखि़र हिंसा भड़की कैसे। सरकार से ये सवाल पूछा जा सकता है कि जब दिल्ली पुलिस आपके अधीन है, तब उससे बार-बार एक जैसी चूक कैसे हो जाती है। हालात बिगड़ जाते हैं और पुलिस को पता ही नहीं चलता कि इसके पीछे ज़िम्मेदार कौन है।

कोई सोता रहे तो उसे उठाया जा सकता है, मगर सोने का नाटक करने वाले को उठाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। इसलिए दिल्ली पुलिस या केंद्र सरकार से हालात संभालने की ईमानदार कोशिशों वाली उम्मीद रखना बेकार है। ऐसा लग रहा है कि सब के सब मोहन भागवत के बताए हुए महान लक्ष्य को पूरा करने में दिन-रात एक किए हुए हैं। श्री भागवत ने कितने प्यार से धमकी दी थी कि हम अहिंसा में यकीन रखते हैं, लेकिन हाथ में लाठी भी लेते हैं। अब वही धमकी चरितार्थ होते दिख रही है। रमज़ान के मौके पर मुसलमानों के घरों-दुकानों पर बुलडोज़र चलाकर उन्हें ये संदेश दिया जा रहा है कि भारत में अब संविधान, लोकतंत्र सब हाशिए पर जा चुके हैं, और हिंदू राष्ट्र बनाने की पूरी तैयारी हो चुकी है।

जहांगीरपुरी हिंसा में अभी ज़ख़्म हरे ही थे कि वहां बुलडोजर पहुंचाकर भाजपा ने उन्हें और कुरेद दिया। कहने को तो जहांगीरपुरी में अवैध निर्माण तोड़ने की कार्रवाई एमसीडी की थी, लेकिन इसके पीछे सोच किसकी रही होगी, ये समझना कठिन नहीं है। कुछ विपक्षी नेताओं की आपत्ति और सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाने के बाद अदालत ने इस कार्रवाई को रोकने और यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए, मगर बावजूद इसके बुलडोज़र कुछ जगहों पर चल ही गया। माकपा नेता वृंदा करात ने मौके पर पहुंचकर हस्तक्षेप किया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी अवैध निर्माण के खिलाफ चल रही एमसीडी की कार्रवाई पर आपत्ति जताई।

टूटे-फूटे ढांचे, रोते-बिलखते-चीखते-चिल्लाते मजबूर लोग, सड़क पर औंधा पड़ा महात्मा गांधी की तस्वीर वाला पोस्टर – जिस पर लिखा है मेरा भारत महान, टीआरपी बढ़ाने की गरज से तमाशेबाज एंकरों का जमावड़ा, ये सारी तस्वीरें दिन भर सोशल मीडिया पर छाई रहीं। लेकिन श्रीमती करात की तरह विपक्ष का कोई नेता इस प्रशासनिक दबंगई के ख़िलाफ़ सड़क पर नहीं उतरा। ऐसा जज़्बा वे अक्सर चुनावों के दौरान ही दिखलाते हैं। कहना न होगा कि विपक्ष यूं ही कमज़ोर नहीं हुआ है, इसके लिए उसकी अपनी अकर्मण्यता ज़िम्मेदार है।

बुलडोज़र संस्कृति से नागरिक समाज विचलित है। ऐसा लग रहा है कि संसद और न्यायपालिका को भी बुलडोज़र का डर दिखाया जा चुका है। दुनिया के कई देशों में इस वक़्त तबाही का मंज़र है। भारत अपने अनूठे संविधान, संस्कृति और गंगा-जमुनी तहजीब के कारण ही बचा हुआ था, पर यहां ‘एक धक्का और’ का नारा अब बुलंद होता जा रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एंव देशबन्धु अख़बार के संपादक हैं)