इन दो नेताओं से बहुत बहुत छोटा है ओवैसी का कद, लेकिन चर्चा में हैं नंबर वन, जानिए क्या है इसकी वजह?

Owaisi Ajmal ET

केरल में IUML लंबे समय से सक्रिय राजनीति मे है। इस पार्टी की कमान पूर्व सांसद प्रोफेसर K. M. Kader के हाथ में हैं। और केरल की पोन्नई लोकसभा सीट से सांसद E.T Basheer राष्ट्रीय संगठन सचिव हैं। इनके अलावा केरल की मल्लापुरम सीट से लोकसभा सांसद P. K. Kunhalikutty पार्टी के महासचिव हैं। E.T. Basheer ने तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीता है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके दसियो बार सरकार में हिस्सेदार बनी है। 2004-2014 तक IUML के कोटे से ई. अहमद यूपीए सरकार में मंत्री रहे। वर्तमान में IUML के चार सांसद हैं, जिसमें एक राज्यसभा में हैं तीन लोकसभा में हैं। पार्टी के पास 20 विधायक हैं इनमें 19 केरल मे और एक तमिनाडू मे, तमिलनाडू से एक लोकसभा सांसद भी हैं।

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असम में AIUDF है, 2014 में इस पार्टी के तीन लोकसभा सांसद और 18 विधायक थे। 2016 के विधानसभा चुनाव में AIUDF को किंगमेकर माना जा रहा था लेकिन असम में चली मोदी लहर ने तमाम गणित बिगाड़ दिए, इसके बावजूद AIUDF 13 सीटें जीतने में सफल रही। वर्तमान में पार्टी के 14 विधायक और एक लोकसभा सांसद है।

मीडिया का खेल

यहां से मीडिया और भाजपा का ध्रुवीकरण कराने का खेल समझिए, ऊपर जिन दो राजनीतिक पार्टियों का उल्लेख किया गया है ये दल ओवैसी की AIMIM से कहीं ज्यादा पाॅवरफुल हैं, लेकिन मीडिया द्वारा सिर्फ ओवैसी का ही चेहरा बतौर ‘मुस्लिम फेस’ दिखाया जाता है। हर मुद्दे पर ओवैसी से राय मांगी जाती है जबकि उनसे अधिक शक्तिशाली दलों के बड़े से बड़े राजनीतिक प्रोग्राम की कवरेज भी मीडिया से नदारद रहतीहै। आखिर ऐसा क्यों है? सिर्फ इसलिए कि उग्र हिंदुत्व के विपक्ष में उग्र मुस्लिम नेता को स्थापित किया जाए, इसमें ओवैसी फिट बैठते हैं। उनके छोटे भाई द्वारा दिए गए ’15 मिनट’ वाले भाषण ने ओवैसी को हिंदू विरोधी के तौर पर स्थापित किया है। जबकि AIUDF और IUML के किसी नेता की तरफ से कभी सांप्रदायिक बयान नही आया, इसलिए AIMIM से अधिक शक्तिशाली होने के बावजूद भी ये दल भाजपा और उसके बगलबच्चा संगठन मीडिया के लिए ‘लाभ’ का सौदा नही हैं।

कुल मिलाकर मीडिया ने ओवैसी को मुस्लिम राजनेता के तौर पर स्थापित किया है। चूंकि भाजपा मीडिया बहुसंख्यक वर्ग में यह संदेश देने में पूरी तरह सफल है कि ओवैसी हिंदू विरोधी है, ओवैसी भाजपा विरोधी है, ओवैसी ही विपक्ष है और ओवैसी ही 25 करोड़ मुसलमानों का नेता है। जबकि सच्चाई यह है कि AIMIM के लोकसभा सदस्यो की संख्या पहली बार दो हुई है। और पहली बार ही ओवैसी की पार्टी के तीन राज्यों के विधायकों की संख्या दहाई का आंकड़ा छू पाई है। चूंकि नफरत की सियासत इंसान से अक्ल छीन लेती है इसलिए मुसलमानों/ओवैसी को ‘सबक़ सिखाने’ के लिए भाजपा को हर नाकामी के बावजूद वोट किया जाता है।

इसे और आसान भाषा में समझने के लिए बिहार की किशनगंज विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव के नतीजे पर आई प्रतिक्रिया से समझिए, किशनगंज में जैसे ही AIMIM के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की उस पर राजनीतिक दलों की ओर से सबसे पहली प्रतिक्रिया भाजपा के फातरब्रांड नेता गिरिराज सिंह की तरफ से आई, उन्होंने कहा कि “बिहार के उपचुनाव में सबसे ख़तरनाक परिणाम किशनगंज से उभर के आया है।

ओवैसी की पार्टी AIMIM जिन्ना की सोच वाले है, यें वंदे मातरम से नफरत करते है, इनसे बिहार की सामाजिक समरसता को खतरा हैं। बिहार वासियों को अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।” गिरिराज के चरित्र के बारे में बताने को जरूरत नही है। इस प्रतिक्रिया को आप ऐसे देखिए कि बिहार में अगले साल चुनाव होने हैं अब भाजपा मीडिया द्वारा ओवैसी फोबिया बिहार के बहुसंख्यक वर्ग में फैलाया जाएगा, ताकि अपनी नाकामियो को ‘ओवैसी फोबिया’ से छिपाया जा सके और ध्रुवीकरण कराया जा सके।

(लेखक द हिंद न्यूज़ डिजिटिल टीम के हेड हैं, ये उनके निजी विचार हैं)