नवेद शिकोह
जंग शुरू होने से पहले सियासत अपने तरकश के तीर ज़ाहिर नही होने देती, पर यूपी में चुनावी शंखनाद कयासों से भरा है। उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावी महाभारत से पहले सब अपने-अपने हथियार भी और जख्म भी छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन कयासों और सूत्रों की बहती हवाओं में पतझड़ के पत्तों की तरह मीडिया और सोशल मीडिया की जमीन पर तरह-तरह की ख़बरें बिखरी पड़ी हैं। सत्तारूढ़ भाजपा सूत्रों वाली खबरों और चर्चाओं से आहत ही थी कि अब विपक्षी खेमों के सूत्र सक्रिय हो गए हैं।
बताया जा रहा है कि यूपी की चुनावी महाभारत में बसपा सुप्रीमों मायावती एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन कर सपा के अखिलेश यादव के रथ का मजबूत पहिया कमजोर करने की कोशिश कर सकती हैं। और अखिलेश यादव भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर रावण को सपा गठबंधन में शामिल कर मायावती के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने पर विचार कर सकते हैं। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण ने इस बात के संकेत दिए हैं। उन्होंने बसपा और कांग्रेस पर अविश्वास जताते हुए कहा है कि भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए किसी एक मजबूत दल को गठबंधन बनाना चाहिए है। और ऐसे गठबंधन में शामिल होना वो पसंद करेंगे।
तमाम सियासी बयानों को सुनकर और दलों के रुख को देखकर ये कहा जा सकता है कि कोई दो बड़े दल प्रत्यक्ष रूप से गठबंधन नहीं करेंगे। भाजपा और सपा का सीधा मुकाबला होगा जबकि बसपा सीधे सपा से लड़ेगी। अनुमान है कि सपा के मुस्लिम वोट बैंक को किसी भी प्रकार से नुकसान पंहुचाने में बसपा कोई कसर नहीं छोड़ेगी। इधर अखिलेश यादव बसपा विधायकों को सपा में शामिल करने की बात खुल कर स्वीकार कर चुके हैं। समस्त पिछडे वर्गों, अति पिछड़े वर्गों और दलितों का विश्वास जीतने के लिए सपा अधिक से अधिक छोटे-छोटे दलों को अपने गठबंधन में शामिल करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। अखिलेश यादव ने साफ कहा है कि वो चाहते हैं कि अपनी पार्टी की कार्यशैली से नाराज भाजपा के विधायकों को भी सपा में शामिल करें। खासकर उनकी उन भाजपा विधायकों पर निगाहें हैं जिनका भाजपा से निकट कट सकता है।
इन तमाम कयासों के बीच बसपा की चुनावी रणनीति की सुरागकशी करने के लिए खबरियों की रस्साकशी तेज़ हो गई है। पिछले तीन दशक से उत्तर प्रदेश की राजनीति की धुरी बनी बहुजन समाज पार्टी का हाथी किस करवट बैठेगा ये एक यक्ष प्रश्न बना है। यूपी विधानसभा चुनाव जितना नजदीक आ रहा है बसपा उतनी ही बिखरती जा रही है। कभी यूपी में बड़े सियासी वर्चस्व वाली बसपा विधायकों की संख्या के लिहाज से सबसे छोटी पार्टी बन गई है।
इस पार्टी के सेकेंड लाइन के नेता और अधिकांश विधायक सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के संपर्क मे हैं। जाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में हाथी को कोई साथी तलाशना होगा। फिलहाल राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा भाजपा के साथ अंदरुनी दोस्ती निभाएगी। जिसके तहत वो खूब मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर या ओवैसी के साथ गठबंधन कर सपा को नुकसान पंहुचाने की हर संभव कोशिश करेगी। इधर कांग्रेस ने साफ तौर पर कहा है कि वो किसी भी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी। संभावना है कि कांग्रेस की सपा से फ्रेंडली फाइट होगी और सपा दस से बीस सीटों पर कांग्रेस को जिताने के लिए डमी कैंडिडेट खड़ा करेगी।
कुल मिलाकर यूपी का विधानसभा चुनाव बेहद रोचक होगा। भाजपा विरोधी पश्चिम बंगाल की तर्ज पर उस दल के समर्थन में केंद्रित होकर एकजुट होंगे जो दल भाजपा को टक्कर देने की स्थिति मे हो। इस महाभारत में अंदरूनी तौर पर बसपा भाजपा का सहयोग कर सकती है जबकि कांग्रेस सपा को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहेगी। रालोद सपा के साथ है ही, इसके अलावा आप और कई छोटे दल सपा की छतरी के नीचे आकर भाजपा को चुनौती दे सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एंव राजनीतिक विश्लेषक हैं, ये उनके निजी विचार हैं)