हिजाब के बहाने: तब टीपू ने दिलाया था दलित महिलाओं को दिलाया था सम्मान, सीना खोलकर चलने की प्रथा पर…

अफरोज़ आलम साहिल

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हिजाब के बहाने आजकल महिलाओं के रहन-सहन पर ख़ूब चर्चा हो रही है. आज सुबह ही अपने एक बड़े भाई का वीडियो देख रहा था, जिसमें केरल के चेरथला की एक महिला श्रीमती ‘नंगेली’ का ज़िक्र था. उन्होंने ‘ब्रेस्ट टैक्स’ का विरोध किया था. और यक़ीनन इस ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था. ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी. जिसका विरोध करने का साहस नंगेली और उनके पति ने किया, और अपने समाज को जगाने के ख़ातिर अपनी जान तक दे दी, हमारे इतिहासकारों ने हमेशा नंगेली के इस साहसी संघर्ष को नज़रअंदाज़ किया है. लेकिन अब जब उनकी चर्चा हो रही है तो यक़ीनन उन पर अधिक से अधिक चर्चा की ज़रूरत है. मेरी भी कोशिश होगी कि मैं भी इनके बारे में इतिहास के पन्नों व उस ज़माने के अर्काइवल मैटेरियल से कुछ निकाल कर आप सबके सामने रख सकूं.

इतिहास के पन्ने बताते हैं कि एक ज़माने में हमारे मुल्क में ब्राहमणों या उच्च जाति के हिन्दुओं ने दलितों पर इतना अत्याचार किया कि ये सबकुछ आदत सी बन गई. ख़ास तौर पर औरतें बग़ैर कपड़ों के रहने लगीं या उन्होंने ये समझ लिया कि ईश्वर ने उन्हें सिर्फ़ इस काम के लिए पैदा किया है कि वो मर्दों के बनाए क़ानून के हिसाब से चलें. आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस टीपू सुलतान को हिन्दुत्व के ठेकेदार पानी पी-पीकर कोसते हैं, उसी टीपू सुलतान ने महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले इन अत्याचारों का विरोध किया.

उस दौर में औरतें अपना सीना हमेशा खुला रखती थी, लेकिन इसी टीपू सुलतान ने महिलाओं के सीना खोलकर चलने की प्रथा पर पूरी तरह से रोक लगा दी और उन्हें अपने सर और सीना ढकने की तमीज़ सिखाई. बल्कि खुद औरतों को इसके लिए कपड़ा तोहफ़े में देना शुरू करा. इस बात को और बेहतर तरीक़े से समझने के लिए आप मीर हुसैन अली खान किरमानी की किताब ‘History of Tipu Sultan’ देख सकते हैं. ये किताब सन् 1864 में प्रकाशित हुई थी. इससे पहले मीर हुसैन अली खान किरमानी ने फ़ारसी ज़बान में ‘निशान-ए-हैदरी’ लिखी थी. दरअसल, इसी किताब का डब्ल्यू माइल्स ने अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है. 

देवी को खुश करने के लिये भेंट चढ़ती थीं औरतें

उस ज़माने में कर्नाटक के कई मंदिरों में ख़ास तौर पर मैसूर के काली मंदिर में देवी को ख़ुश करने के लिए औरतों को भेंट चढ़ाया जाता था, टीपू सुलतान ने अपने दौर में इस पर सख्ती से पाबंदी लगा दी. उस वक़्त के बड़े शहरों में हिन्दू औरतों को बेचने के लिए मंडियां लगती थी, गुलाम ख़रीदे व बेचे जाने का दौर था. शाही फ़रमान जारी कर #TipuSultan ने इसे भी बंद करा दिया. फ़ारसी में जारी इस फ़रमान को आप 1940 में एम. अब्दुल्लाह की संपादित किताब ‘टीपू सुलतान’ में देख सकते हैं. इसके अलावा 1951 में प्रकाशित मोहिब्बुल हसन खान की किताब ‘History of Tipu Sultan’ में इन बातों का अच्छा-ख़ासा ज़िक्र है.

उस ज़माने में यह भी कल्चर था कि घर का एक पुरूष शादी करता था, लेकिन उसकी बीवी सबकी बीवी हुआ करती थी, #TipuSultan ने इस पर रोक लगाने का काम किया. सच तो ये है कि इस देश में हिन्दू महिलाओं को इज़्ज़त के साथ जीने का सलीक़ा #TipuSultan ने ही सिखाया. इसीलिए हिन्दुत्व के ठेकेदारों को टीपू सुलतान कभी पसंद नहीं आया और हमेशा से उसका विरोध किया. और कर्नाटक में ये ठेकेदार आज भी चाहते हैं कि तरक़्क़ी के नाम पर महिलाएं अपना सीना खोलकर चलें. इस अंदेशे में भी कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि फिर से इस देश में ‘ब्रेस्ट टैक्स’ लगा दिया जाए.  

ये हमारे लिए बड़े शर्म की बात है कि आज भी हमारे देश के कुछ हिस्सों में दलितों को घोड़ी चढ़ने की इजाज़त नहीं है. हालांकि अच्छी बात है कि उन्होंने अब इसका विरोध करना शुरू कर दिया है. इससे संबंधित दर्जनों ख़बरें पिछले दो हफ़्ते से पढ़ रहा हूं. आज भी भारत के किसी दलित आबादी वाले गांव में चले जाइए, आप पाएंगे कि महिलाओं के पास इतने साधन नहीं हैं कि अपना ब्रेस्ट भी ढक पाएं. मैंने ख़ुद ऐसी महिलाएं असम में देखी हैं. और सरकारें भी यहीं चाहती हैं कि ये इसी हालत में हमेशा रहें. ऐसे में जब कोई महिला ख़ुद को पूरी तरह से ढक कर चलती है तो इनकी आंखों में खटकना लाज़िम है।

(लेखक पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है, ये उनके निजी विचार हैं)