5 फरवरी को दौसा मे महासभा और फिर दिल्ली कूच! एक इतिहासकार के लिये इससे खूबसूरत क्या बात हो सकती है कि उसने इतिहास के जिस प्रखंड पर 2000 पन्ने की गाथा लिखी हो, वह उसकी ज़िंदगी मे, 21स्वीं सदी मे, दोबारा घटित हो रहा है? राजस्थान मे भी 1857 बड़े स्तर पर हुआ था। जहां एक तरफ आवा के ठाकुर खुशाल सिंह ने मारवाड़-जोधपुर इलाके का अंग्रेज़ विरोधी मोर्चा संभाला था, वहीं दौसा के मीणा, गूजर, मुस्लिम मेवाती और अन्य जातियों ने महापंचायत कर, युद्ध का बिगुल फूंका था! एक फरवरी, 2021 को इतिहास ने अपने को दोहराया, जब दौसा के उसी मेहंदीपुर, बालाजी स्थित मीन भगवान मंदिर में, काले कृषि कानूनो के खिलाफ, किसान महापंचायत आयोजित हुई। संख्या 20 हज़ार से अधिक थी।
किसान महापंचायत में वक्ताओं ने केन्द्र सरकार पर निशाना साधते हुए किसान बिलों को वापिस लेने की मांग की। जय जवान, जय किसान, किसान एकता जिंदाबाद, भारत माता की जय……के नारों से महापंचायत स्थल गुंजायमान रहा। महिलाओं ने भी किसान महापंचायत मे बढ़-चढ़कर भाग लिया। राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व प्रदेश महासचिव नरेश मीना ने किसान महापंचायत को समर्थन देते हुए किसानों से दिल्ली कूच में अधिक से अधिक संख्या में शामिल होने का आह्नान किया। बनवारीलाल सांथा ने दौसा सासंद जसकौर मीना द्वारा खालिस्तानी, आतंकवादी बोलने पर कड़े शब्दों में निंदा की। महिला प्रवक्ता राजेश्वरी मीना, विमला मीना ने भी कृषि बिलों को वापिस लेने की मांग की। ठीकरिया सरपंच कमलेश मीना, मीना सीमला सरपंच शिवचरण योगी, पाड़ली सरपंच अर्चना मीना ने किसान महापंचायत पर होने वाले खर्चों का भार उठाया एवं क्षेत्र के सरपंचों ने 5 फरवरी दौसा महासभा और फिर दिल्ली कूच मे होने वाले खर्चों को वहन करने की जिम्मेदारी ली।
किसान संयुक्त मोर्चा के रवन सीमला ने केन्द्र सरकार द्वारा कृषि बिल वापिस नहीं लिए जाने पर पांच दिन बाद दिल्ली कूच करने की चेतावनी दी। किसान नेता हिम्मतसिंह पाड़ली,सुरेन्द्र गुर्जर, कैलाश प्रोफेसर सीकर, रिटायर्ड आईएएस रमेश मीना, रिटायर्ड डीएसपी हरसहाय मीना, हरकेश गढख़ेड़ा, कलमीराम मीना, मनीराम खेड़ी, मुकेश झूथाहेड़ा, बनवारीलाल मीना चांदेरा आदि ने किसान महापंचायत में विचार व्यक्त किए।
शराब मुक्त अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सी.एल. ठीकरिया ने कहा कि केन्द्र सरकार किसानों का गला घोंटकर पूंजीपतियों की झोली भर रही है। सरकार को किसानो के आन्दोलन को ध्यान में रखते हुए अपनी हटधर्मिता छोड़कर कृषि बिलों को वापस लेना चाहिए।
(लेखक इतिहासकार एंव किसान क्रांति दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)