अली ज़ाकिर
उस्ताद जब 16 साल के थे जब उनके पिता की मौत हो गयी थी, उन्होंने अपने पिता के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में आयोजित क़व्वाली प्रोग्राम में पहली बार लोगो के सामने आकर क़व्वाली गाई. उन्होंने अपने चाचा सलामत अली खान और मुबारक अली खान के साथ छोटे पैमाने पर क़व्वाली गाना शुरू कर दिया. अपने चाचा मुबारक अली खान की मौत के बाद नुसरत अपने परिवार के मुख्य कव्वाल बन गए थे.
उनकी पार्टी का नाम तब “नुसरत फ़तेह अली खान, मुजाहिद मुबारक अली खान कव्वाल एंड पार्टी” था. नुसरत फ़तेह अली खान का नाम तब परवेज़ फ़तेह अली खान था जब वे गुलाम-गौस-समदानी के पास गए वहां नुसरत की कला के बारे में जान कर गुलाम-गौस-समदानी ने उन्हें नुसरत नाम दिया था. नुसरत नाम का अर्थ होता है विजय, जीत. उन्होंने कहा था की नुसरत एक दिन बहुत ही बड़ा कव्वाल बनेगा और परिवार का नाम दुनिया में रोशन करेगा.
“हक़ अली अली मौला अली अली” नामक क़व्वाली ने नुसरत का नाम पाकिस्तान सहित दुनिया के सामने ला कर रखा. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उस समय उनके नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे ज्यादा 125+ क़व्वालियों के गाने का रिकॉर्ड था. उनके साथ उनके भाई फर्रुख फतेह अली खान और कई चचेरे भाई भी गाते या बजाते थे. उनके साथ दिलदार हुसैन नाम के तबला वादक तबला बजाते थे. नुसरत को दुनिया के सामने लाने और उन्हें मशहूर बनाने में सबसे बड़ा हाथ पीटर गेब्रियल का है, पीटर गेब्रियल ने कैनेडियन गिटारिस्ट माइकल ब्रूक से कहा की आप नुसरत के साथ कुछ प्रोग्राम में अपने गिटार की आवाज़ दे दीजिये.
नुसरत फ़तेह अली खान को सन 1987 में उनके प्रदर्शन से प्राइड ऑफ़ पकिस्तान का अवार्ड मिला था. उसके बाद नुसरत ने सन 1989 में पहली बार विदेश में कार्यक्रम करना शुरू कर दिए. नुसरत का नाम संगीत जगत के बड़े गीतकारो में आने लग गया था. उन्हें शहंशाह-ए-क़व्वाली नाम से भी जाना जाने लगा. लगभग पूरी दुनिया में उन्होंने अपने सुरों की जादू से हजारों अवार्ड जीते। ऐसे थे उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान.