कृष्णकांत
उत्तर प्रदेश सरकार को माननीय कोर्ट से कानून बतियाने की हठधर्मिता छोड़ कर कानून का सम्मान करना सीखना चाहिए। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन करने वालों की होर्डिंग्स लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और कहा कि सरकार की कार्रवाई बेहद अन्यायपूर्ण है। एक तो इस मामले में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने स्वत: संज्ञान लिया। दूसरे, छुट्टी होने के बावजूद रविवार को चीफ जस्टिस की बेंच ने सुनवाई की। बेंच ने कहा- कथित सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने की यह संबंधित लोगों की आजादी का हनन है।
अदालत ने सरकार से कहा कि ऐसा कोई कार्य नहीं किया जाना चाहिए, जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे। पोस्टर लगाना सरकार के लिए भी अपमान की बात है और नागरिक के लिए भी। चीफ जस्टिस ने लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर से पूछा कि किस कानून के तहत लखनऊ की सड़कों पर इस तरह के पोस्टर सड़कों पर लगाए गए? उन्होंने कहा कि सार्वजनिक स्थान पर संबंधित व्यक्ति की इजाजत के बिना उसका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है। यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
एक तो राज्य सरकार के लिए यह शर्मनाक है कि उसकी किसी हरकत पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और उसे लताड़ लगाई, लेकिन सरकार की हठधर्मिता देखिए कि कहा जा रहा है कि जो किया वह लीगल है। एनडीटीवी लिख रहा है कि “मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े सूत्रों की मानें तो इन होर्डिंग्स को सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद वहां लगाया गया है. मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों की ओर से जानकारी दी गई कि जनहित को ध्यान में रखते हुए सभी नियमों के तहत यह होर्डिंग्स वहां लगाए गए हैं. होर्डिंग्स लगाए जाने को लेकर किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है.”
अब क्या सरकार हाइकोर्ट को बताएगी कि कानून क्या होता है? सरकार खुद कानून का पालन करवाने वाली संस्था है, सरकार कानून का दुरुपयोग और उल्लंघन करे, यह गंभीर मामला है। सरकार को कोर्ट का सम्मान करते हुए अपने किये पर जनता से माफी मांगनी चाहिए।