अब भारत की कृषि पर मल्टीनेशनल कंपनियों को सौंपकर लिखी जा रही है नई ग़ुलामी की इबारत!

गिरीश मालवीय

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कृषि से जुड़े तीन अध्यादेशों को सदन में पास कराने की कोशिशों के विरोध में बीजेपी के सबसे पुरानी सहयोगी अकाली दल की एकमात्र मंत्री हरसिमरत कौर ने इस्तीफा दे दिया। चलिए अब शायद अच्छी तरह से इस मुद्दे पर चर्चा हो पाए कि आखिरकार इन अध्यादेशों में गलत क्या है।

इन अध्यादेशों से असली फायदा किसको होने जा रहा है इसे हमे आपको समझना होगा लोग कहते हैं कृषि घाटे का धंधा है अगर यह घाटे का ही धंधा होती तो सरकार यह कभी नही करती। दरअसल यह मुनाफे का धंधा है लेकिन यह किसानों के लिए मुनाफे का धंधा नहीं है यह अब मल्टीनेशनल कारपोरेट के लिये मुनाफे का धंधा है।

अब यह अध्यादेश कानून बनेंगे ओर अगले कुछ सालो में आप देखेंगे कि भारत कृषक प्रधान देश से कारपोरेट कृषि प्रधान देश मे बदल गया है अन्नदाता किसानों की हैसियत उन बंधुआ मजदूरों या गुलामों की होगी, जो अपनी भूख मिटाने के लिये कार्पोरेट्स के आदेश पर काम करेंगे।

मैं बार बार एक ही बात लिखता हूँ कि कोरोना काल मे आप यह मत देखिए कि कितने बीमार हुए कितने लोग मृत्यु को प्राप्त हुए। इस डाटा को देखने  के बजाए आप ये देखे विश्व में विभिन्न सरकारों द्वारा बनाई गई नीतियो की दिशा क्या इशारा कर रही है। यह कोई कांस्पिरेसी थ्योरी नही है यह सीधा सीधा सच है, क्या इन कृषि अध्यादेश जैसे कानून को कोरोना काल के बजाए किसी सामान्य समय लागू किया जाता तो एक बहुत बड़ा आंदोलन नही खड़ा हो जाता ? लेकिन आज आप ही बताइये क्या आप किसी व्यापक  आंदोलन की संभावना को देख रहे हैं?

सब संभावनाओं को खत्म कर दिया गया है। अब भारत की कृषि पर कब्जा किन मल्टीनेशनल कंपनियों का होने जा रहा है उनके नाम नोट कर लीजिए ये है। रॉथशिल्ड, रिलायंस,  कारगिल, ग्लोबल ग्रीन, रलीज, आइटीसी, गोदरेज, मेरीको, मेट्रो, अडानी, हिंदुस्तान यूनिलीवर, कारगिल, पेप्सिको, मैककेन, टाटा, महिंद्रा, डीसीएम श्रीराम, पतंजलि, मार्स रिगले कन्फेक्शनरी। यह कंपनियां मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में बहुत एक्सपर्ट है पहला है तकनीक का प्रयोग ओर दूसरा है बीज पर नियंत्रण। इस तरह की कंपनियां अपने पेटेंट बीज के लिए सुरक्षित बाजार चाहती हैं। ओर यह मौका मोदी सरकार उपलब्ध करा रही है।

दो साल पहले  टिमोथी वाइज की एक किताब आयी है “ईटिंग टूमॉरो: एग्री बिजनेज, फैमिली फार्मर्स एंड द बैटल फॉर द फ्यूचर ऑफ फूड” इसमे वाइज ने बताया है कि दुनिया भर में सरकारें संगठित कृषि का उपाय सुझा रही हैं जिसकी तकनीक और बीज पर कॉरपोरेट का नियंत्रण होगा। इसे कृषि संकट के उपाय के तौर पर पेश कर किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। यह किताब दक्षिण अफ्रीका, मैक्सिको, भारत और यूएस मिडवेस्ट में गहन फील्डवर्क के बाद तैयार की गई है। इस किताब में उन्होंने छोटे खेतों को मिलाने के उपाय को खारिज कर दिया है और इसे व्यापार और छोटे किसानों के बीच ताकतवर खेल के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल इन अध्यादेश के जरिए गुलामी की एक नई इबारत लिखी जा रही है लेकिन जनता जब तक इसे समझेगी बहुत देर हो जाएगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)