अग्निपथ योजना से एक भी शख्स नाराज़ नहीं तो फिर ये उग्र आंदोलन क्यों ? ये सवाल तो दिमाग़ में आएगा ही। दरअसल विरोध की वजह अग्निपथ नहीं है। जैसे हमेशा से समय-समय पर सेना और तमाम सरकारी विभागों की सरकारी नौकरियों की भर्ती होती थीं, उस तरह से अब नौकरियां क्यों नहीं निकलतीं। क्या अब नई नौकरियों का अग्निपथ जैसा ही स्वरूप होगा ?
ऐसे भ्रम ही सरकारी नौकरियों का इंतजार करने वाले युवाओं को कुंठित कर रहे है़। और ऐसा कंफ्यूजन सरकार ने ही पैदा किया है। फौज में जाने की तैयारी कर रहे युवाओं के पास चार वर्ष के लिए अग्निवीर बनने का मौका भी है। या फिर ये मौका ही है ? अब फौज की नौकरी का ऐसा ही स्वरूप होगा ? सिर्फ चार साल की पेंशन विहीन नौकरी !
या फिर जैसे पहले सेना की नौकरियां निकलती थीं वैसी ही पुराने स्वरूप में नौकरियां निकलेंगी। अग्निपथ योजना के तहत चार साल अग्निवीर बनने का भी एक विकल्प या मौक़ा और दे दिया गया है। ये सवाल सबके दिमाग में हैं और ऐसे सवालों की जिज्ञासा शांत करने जैसा जवाब सरकार ने अभी तक नहीं दिया है।
आंदोलन, हिंसा या क्रोध भी शायद इस बात का है कि आंदोलनकारियों ने ये मान लिया होगा कि सेना में नौकरी के मौकों को बौना कर दिया गया है ! अब सेना में वैसी नौकरी शायद कभी नहीं निकले जैसी नौकरी का स्वरूप पहले होता था ! युवाओं के मन में शायद ये भी चल रहा हो कि अब कोई भी सरकारी नौकरी आए ही ना, आए भी तो चार साल के बौने स्वरूप में, दो-चार साल के ठेके वाली..।
यदि ऐसा कुछ नहीं है। लोग गलतफहमी में हैं। सेना और अन्य सरकारी विभागों में सरकारी नौकरियों का जो स्वरूप था वैसा ही रहेगा। जैसे पहले नौकरियां निकलती थीं वैसे ही निकलती रहेंगी। फौज की नई नौकरियों में पेंशन भी मिलेगी। सरकार ये सब स्पष्ट कर दें तो अग्निपथ योजना पर किसी एक शख्स को भी एतराज़ नहीं होगा। क्योंकि अग्निपथ तो अतिरिक्त अवसर माना जायगा, जो क़ाबिले तारीफ होगा। जिसको पसंद आए या सूट करे वो अग्निवीर बने और जिसको ये पसंद नहीं वो पुराने फार्मेट वाली सेना की अगली भर्ती का इंतेज़ार करें। ऐसे में विरोध का कोई सवाल ही नहीं। बस कंफ्यूजन दूर हो जाए।