देश के भविष्य को संकीर्ण मानसिकता से बचाने की जरूरत

उर्मिलेश

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अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान देना बहुत जरूरी है. अपने देश के हिन्दी भाषी क्षेत्रों, खासकर यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश आदि में अच्छे सरकारी स्कूलों की भारी कमी होती जा रही है. जो कथित पब्लिक स्कूल(नाम होता है पब्लिक स्कूल पर असलियत में वे निजी स्कूल होते हैं) हैं, वहां भी शिक्षा-दीक्षा की हालत कोई बहुत अच्छी नही है. महामारी के इस दौर ने पूरे देश में शैक्षिक स्थिति को और खराब किया है. हालात बद से बदतर हैं. पर हमारी सरकारें इस बड़े संकट पर बिल्कुल बेपरवाह हैं. शायद हमारे मौजूदा शासक चाहते भी नहीं कि ज्यादा से ज्यादा लोग अच्छी तरह शिक्षित हों, विवेकशील और तर्कशील बनें. इसलिए उन्होंने शिक्षा के स्तर में गुणवत्ता लाने पर पर कभी ध्यान नहीं दिया. वे तो चाहते हैं कि आम, खासकर गरीब और मेहनतकश लोग अपने बच्चों को शिक्षा के नाम पर खोले गये अंधविश्वास और संकीर्ण मानसिकता के प्रचारक निजी या सांगठनिक संस्थानों में  पढ़ने के लिए भेजें. बहुत सारे लोग भेज भी रहे हैं.

दूसरी तरफ संकीर्ण मानसिकता के प्रचारक ऐसे शैक्षिक संस्थानों के बड़े संचालकों के घरों के बच्चे देश-विदेश के समुन्नत शैक्षिक संस्थानों में पढ़ने भेजे जा रहे हैं. अगर आप केंद्र और राज्य सरकारों के बड़े पदाधिकारियों के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के बारे में जानेंगे तो चौंक जायेंगे कि ‘धर्म और संस्कृति’ की आक्रामक नारेबाजी करने वाले नेताओं और पदाधिकारियों के बच्चे देश और विदेश के उच्चस्तरीय अंग्रेजी माध्यम स्कूलों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं. लेकिन ऐसे ही लोग आपसे अपने बच्चों को किसी ऐसे स्कूल में भेजने की अपील करते हैं, जहां बच्चों के मिज़ाज को संकीर्ण और अवैज्ञानिक बनाने की शिक्षा दी जाती है.

इसलिए, आप जहां भी रहते हों, अपने बच्चों को शिक्षा के नाम पर चलाये जा रहे ‘संकीर्णता, विवेकहीनता और अवैज्ञानिकता के ऐसे कारखानों’ से बचाइये. अपने अन्य खर्च में कटौती करके भी बच्चों को अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा वाले संस्थानों में भेजें. उनकी अंग्रेजी अच्छी रहेगी तो वे बड़े होकर न सिर्फ रोजगार का बेहतर अवसर पायेंगे अपितु उनके पास ज्ञान और विज्ञान की दुनिया में दाख़िल होने की ज्यादा संभावनाएं भी होंगी. यह महज संयोग नहीं कि आज दक्षिण भारत के ज्यादातर राज्य उत्तर के हिन्दी भाषी राज्यों के मुकाबले प्रगति के हर क्षेत्र में बहुत आगे हैं. इसका एक कारण उनकी अंग्रेजी भाषा में दक्षता भी है.

आप ही सोचिये, दक्षिण के बच्चे किन अखबारों, किताबों और पत्रिकाओं को पढते हैं? हिन्दी में पढ़े बच्चे(जिनकी अंग्रेजी बहुत कमजोर है) कैसे अखबारों और अन्य पाठ्य सामग्री को पढ़कर अपना सोच-विचार बनाते हैं या किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं? एक तरफ The Hindu, Indian Express, The Telegraph, TOI, ET और BS जैसे अखबार और NDTV 24×7 या BBC जैसे चैनल हैं तो दूसरी तरफ हिन्दी के अखबारों/चैनलों का हाल देख लीजिए. हिन्दी के ज्यादातर अखबार और टेलीविजन चैनल सूचना और ज्ञान देने की जगह आज लोगों को गुमराह और अज्ञानी बना रहे हैं. मुख्यधारा मीडिया के जरिये आज हिन्दी को विवेक, सोच-समझ और ज्ञान की भाषा बनने से रोकने की चौतरफा कोशिश हो रही है. यह खतरनाक स्थिति है. हिन्दी की प्रगतिशील धारा को खत्म किया जा रहा है. आजादी के बाद तत्परता और प्रतिबद्धता के साथ अगर उत्तर भारत के हिन्दी भाषी राज्यों में समान और साझा शिक्षा व्यवस्था की धारणा पर काम करते हुए हिन्दी भाषा में आधुनिक और  स्तरीय शिक्षा का प्रबंध किया गया होता तो देश को आज बड़े राजनीतिक और सांस्कृतिक संकट से काफी हद तक बचाया जा सकता था. 

सवाल उठता है, आज के दौर में आम आदमी अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए क्या करे? उसके पास बहुत सीमित विकल्प हैं. शिक्षा और संस्कृति के स्तर पर आज उत्तर के हिन्दी भाषी राज्यों में बड़े आंदोलन भी नहीं हैं. कुछ हलकों में लोगों और कुछ जनपक्षी संस्थानों के प्रयास से अच्छे स्कूल आदि जरूर चलाये जा रहे हैं पर उनकी संख्या बहुत सीमित है. ऐसे में हम इतना ही कह सकते हैं कि आप अपने बच्चों को अंग्रेजी में शिक्षा देने का प्रबंध जरूर करें. अंधविश्वास, संकीर्णता और सामाजिक भेदभाव का प्रचार-प्रसार करने वाले संस्थानों में बच्चों को हरगिज़ न भेजें.

अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाने से सबकुछ अच्छा और शानदार होने की गारंटी नही होगी लेकिन अपेक्षाकृत बेहतर संभावनाएं जरूर रहेंगी. कुछ राज्यों में सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित विद्यालय भी अच्छी स्थिति में हैं. छत्तीसगढ़ में  स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की स्थापना राज्य सरकार की उल्लेखनीय पहल है. इन विद्यालयों का और विस्तार करने की जरूरत है. इस बीच राजस्थान सरकार ने भी महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के विस्तार का ऐलान किया है. केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालयों के विस्तार के लिए सरकार पर जन दबाव बढाने की जरूरत है. उत्तर के हिंदी भाषी राज्य शिक्षा के मामले में  केरल और तमिलनाडु से सीखने की कोशिश करें तो यहाँ के लोगों का कुछ कल्याण हो सकता है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)