ब्रिटिश काल से ही रहे हैं भारत में नाजी प्रोपोगंडा के वाहक

परीक्षित मिश्रा

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हिटलर जब जर्मनी में अपने प्रोपगंडा मशीनरी को एक्टिव किया हुआ था उसी समय उसने भारत में भी अपनी प्रोपगंडा मशीनरी को सक्रिय कर दिया था। जब तक वो फ्रांस और ब्रिटेन पर बढत बनाये रखा तब तक भारत में रह रहे नाजी प्रोपेगंडिस्ट ने यहां अपना प्रोपोगंडा कार्यक्रम जारी रखा। भारत में 1933 से 1939 तक जर्मन क्लब इस प्रोपोगंडा को फैलाने का प्रमुख केंद्र हुआ करते थे। इत्तेफाक से इसका लिंक वर्तमान प्रोपेगेंड़ीस्ट दक्षिण पंथी सन्गठन के पूज्य नेता से भी रहा है।

‘नाजी प्रोपोगंडा इन इंडिया’ रिसर्च पेपर के अनुसार नाजी सन्गठन ने अपने प्रोपोगंडा का प्रचार प्रसार करने के लिए भारत के साम्प्रदायिक सन्गठनो को सबसे आसान माध्यम माना। यहाँ तक कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी कुछ ऐसे लोग थे जो महात्मा गांधी के अहिंसक प्रतिरोध की बजाय हिटलर और मोसोलिनी कि फासिस्टवादी हिंसा के समर्थक थे।

लेख के अनुसार नाजी पार्टि ने भारत में अपना प्रोपोगंडा फैलाने की शुरुआत भारतीय और यूरोपियन संस्थानों से शुरू की इंटरनेशनल रेलवे इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ऑफ मद्रास, बोम्बे प्रेस सर्विस, इंडियन जर्मन न्यूज एक्सचेंज सर्विस ऑफ दिल्ली, समेत हिन्दू महासभा की महाराष्ट्र में फैली कुछ शाखाओं में किया।

नाजी पार्टी ने भारत में अपना प्रोपोगंडा फैलाने के लिए स्थानीय समाचार पत्रों से साथ साथ रेडियो का भी इस्तेमाल किया। 5 अगस्त 1939 को ताजमहल में बाकायदा जर्मन रेडियो प्रोग्राम ब्रॉडकास्ट हुआ। इसमे जर्मन संस्क्रति के अलावा हिंदी में जर्मन और नाजी के बारे में बताया गया।

सोशल साइंटिस्ट जर्नल के मई जून 2000 के संस्करण में प्रकाशित अंग्रेजी लेख के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण पहलू ये रहा कि नाजी प्रोपोगंडा मशीन ने भारत में मुस्लिम लीग के माध्यम से मुस्लिम को तो हिंदू महासभा के माध्यम से हिंदुओं में नाजी नीति के सही होने का प्रोपोगंडा फैलाया। मुस्लिम्स में उन्होंने फिलिस्तीन मुद्दे के माध्यम से हिटलर और नाजी को सही ठहराया।

फिलिस्तीन के बहाने अरब मुस्लिम समुदाय से संवेदना रखते हुए भारतीय मुस्लिम्स में यहूदी विरोधी भावना को भुनाया। उधर हिन्दू महासभा के माध्यम से उन्होंने कट्टरपंथी हिंदुओं को अपने ही देश में मुस्लिमों का बंधक होने की भावना भरते हुए कहा कि वो भारत में मुस्लिम राज में वैसे ही थे जैसे यहूदियों की मौजूदगी में जर्मन।

नाजियों ने भारत में अपना प्रोपोगंडा फैलाने के लिए स्थानीय समाचार पत्रों का भरपूर इस्तेमाल किया। लेख के अनुसार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर की जर्मन वाइफ द्वारा प्रकाशित स्पिरिट ऑफ द टाइम्स, सैफ आज़म द्वारा प्रकाशित सालार ए हिन्द, गोपाल पिल्लई का प्रिंसली स्टेट, गदग से प्रकाशित द कर्नाटक बन्धु, त्रिकाल का इस्तेमाल किया।

माधव काशीनाथ दामले मोसोलिनी से काफी प्रभावित था, पुलिस जांच में ये भी सामने आया था कि वो बॉम्बे के जर्मन काउंसलेट के माध्यम से चीफ जर्मन प्रोपोगंडीस्ट के सम्पर्क में था और अपने समाचार पत्र लोखंडी मोर्चा के इस्तेमाल भरपूर तरीके से भारत में नाजी प्रोपोगंडा फैलाने में किया।

बॉम्बे, कानपुर, दिल्ली, कलकत्ता जैसे स्थानों में जर्मन एजेंट इस दौरान रेडियो सेटों से लैस हुए। इन्होंने जर्मनी से जर्मन भाषा में आने वाले संदेशों को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करके स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापनों की एवज में प्रकाशित करके नस्लीय हिंसा को सही ठहराने की दिशा में काम किया।

The nazi propoganda in india के अनुसार लोखंडी मोर्चा और त्रिकाल जैसे महाराष्ट्र के कोंकण और पूना क्षेत्र से प्रकाशित अखबारों ने नाज़ी प्रोपोगंडा के साथ हिन्दू साम्प्रदायिक प्रोपोगंडा सेट करने में कुछ हद तक सफलता हासिल की।

लेकिन, भारत के विशाल क्षेत्र और विविधता के कारण उस समय भी आज की तरह नाज़ी प्रोपोगंडा सेट नहीं हो पूरे भारत में विस्तृत नहीं हो पाया। मिलिटेंट हिन्दू विचार वाले लोगों ने हिलटर द्वारा स्वस्तिक के इस्तेमाल को हिटलर की नस्लीय श्रेष्ठता के सिध्दांत को स्वयं से जोड़कर देखा।

स्पेशल होम डिपार्टमेंट के फ़ाइल नम्बर 60 डी एच के पृष्ठ संख्या 141 का हवाला देते हुए लेख में बताया गया कि 14 मई 1939 को त्रिकाल के सम्पादक एसएल करंदीकर के सम्मान समारोह में एम आर तुलसी बगवारे ने नाजी सन्गठन को सराहा और उसकी तुलना हिन्दू सन्गठन से की।

लेख के अनुसार वो यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे तत्कालीन हिन्दू नेता की तुलना हिटलर से, एसएल करंदीकर को जोसेफ गोएबल्स तथा हिन्दू युवाओं को नाजी सन्गठन के समकक्ष बताया। लेख का समापन इस टिप्पणी के साथ किया गया कि आज भी भारत का एक दक्षिणपंथी सन्गठन हिटलर और गोएबल्स की उसी नाजी प्रोपोगंडा थ्योरी को अपना रहा है।