पलश सुरजान
आख़िरकार जिस बात का डर था, वह सच हो ही गई। युद्धग्रस्त यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में हुए एक हमले के दौरान 21 बरस के एक भारतीय छात्र की मौत हो गई है। दिवंगत छात्र नवीन शेखरप्पा कर्नाटक के हावेड़ी से चिकित्सक बनने के सपने लिए यूक्रेन गया था। यह उसकी पढ़ाई का अंतिम वर्ष था। इसके बाद वह भारत आता, यहां की शैक्षणिक औपचारिकताएं पूरी करता और फिर मुमकिन है किसी अस्पताल में काम करता या अपना ही कोई छोटा-मोटा क्लीनिक खोलता। लेकिन उसके साथ-साथ उससे जुड़े सारे सपने भी हमेशा के लिए ख़ाक हो गए हैं। मां-बाप के पास अब आंसुओं, अफ़सोस और लाचारगी के अलावा कुछ और नहीं बचा है। मुमकिन है, उनमें इन भावनाओं के साथ कुछ नाराज़गी भी पैदा हुई हो, लेकिन यहां भी वे मजबूर हैं, क्योंकि वे अपना गुस्सा उन लोगों पर उतार भी नहीं सकते, जो नवीन की असामयिक मौत के लिए ज़िम्मेदार हैं। जिनके सिर पर नवीन की हत्या का दोष मढ़ा जाना चाहिए।
कहने को तो नवीन की हत्या रूसी सैनिकों के हाथों हुई, क्योंकि उनके हमले का शिकार वह हुआ है। ख़बरों में आया है कि जब नवीन खाने का सामान लेने के लिए एक दुकान के बाहर लाइन में लगा था, तब उसे गोली लगी। लेकिन असल में नवीन भारत सरकार की गैरजिम्मेदार और क्रूरता की हद तक संवेदनहीन व्यवस्था का शिकार हुआ है। यूक्रेन में किन शहरों में कितने भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं, इसकी पूरी जानकारी वहां दूतावास को होगी। संकट बढ़ने पर इन छात्रों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, इसका अनुमान भी सरकार को होगा। लेकिन उसके बावजूद वहां से छात्रों को निकालने में सरकार ने ढीला-ढाला रवैया दिखलाया। और कुछ छात्रों को वापस लाकर उसका प्रचार इस तरह किया मानो कोई बड़ा तीर मार लिया हो।
मोदी सरकार को इतिहास की बातें हमेशा ही खटकती हैं, खासकर तब जबकि उस इतिहास में पिछली सरकारों की सफलता की कहानियां छिपी हों। लेकिन फिर भी सरकार को 90 के दशक के वो पन्ने पलट ही लेना चाहिए, जब खाड़ी युद्ध के दौरान बिना किसी आर्थिक बोझ के एक लाख अधिक भारतीयों की सुरक्षित वतन वापसी करवाई गई थी। उसके बाद देश में कई चुनाव हुए, लेकिन कभी इस बात पर वोट नहीं मांगे गए, न चुनाव प्रचार में इस बात के लिए अपनी पीठ थपथपाई गई। मोदीजी ने इस बात को भी मुमकिन कर दिखाया है। उप्र के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री इस बात को भुनाने से बाज नहीं आ रहे कि वे यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए अभियान चला रहे हैं।
पहली बात तो इस तरह की कोई भी पहल करने में सरकार ने बहुत देरी कर दी है और दूसरी बात ये कि अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी करवाना हर सरकार का दायित्व है, यह कोई एहसान नहीं है, न ही कोई उपलब्धि है, जिसका बखान किया जाए।प्रधानमंत्री को इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाने की प्रबल महत्वाकांक्षा है और इतिहास में ये बात भी ज़रूर दर्ज होगी कि जब यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्र रोजाना वीडियो या तस्वीरें भेज कर मदद की गुहार लगा रहे थे। जब उनके मां-बाप यहां असहाय होकर सरकार से मदद मांग रहे थे, तब देश के प्रधानमंत्री मोदी उत्तरप्रदेश में फिर से सत्ता हासिल करने की चाह लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे। और इतिहास में ये भी दर्ज होगा कि इस दौर के मीडिया ने अपनी रीढ़ पूरी तरह खोते हुए सरकार के समर्थन में दंडवत होकर उसका प्रचार किया।
पाठक जानते हैं कि सरकार ने यूक्रेन से भारतीयों की वापसी के लिए ऑपरेशन गंगा चलाया है। इस बचाव अभियान का नाम गंगा रखने के पीछे यही कारण समझ आता है कि इसका फायदा उप्र चुनाव में उठाया जा सके। बहरहाल, ये आपरेशन अभी पूरी तरह सफल घोषित नहीं हुआ है, लेकिन उससे पहले ही इसकी सफलता के गुणगान कुछ मीडिया घराने करने लगे हैं। आंकड़े देकर बताया जा रहा है कि हम कितने देशों से अपने नागरिकों को वापस लाने के मामने में आगे हैं। अगर आंकड़ों का ही खेल खेलना है, तो फिर इन तथाकथित पत्रकारों को ये भी देख लेना चाहिए कि भारत सरकार कितने देशों से बहुत पीछे भी रह चुकी है। दरअसल यह पूरा खेल असल समस्या से लोगों का ध्यान भटकाने का है। लेकिन इस खेल से हकीकत नहीं बदलेगी और न ही छात्रों को सुरक्षा दी जा सकेगी।
युद्ध शुरु हुए एक हफ़्ता बीतने जा रहा है और इस सोमवार को एक उच्चस्तरीय बैठक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई, जिसमें केंद्र सरकार ने यूक्रेन में फंसे छात्रों समेत भारतीयों को बाहर निकालने की प्रक्रिया में समन्वय के लिए चार मंत्रियों को युद्धग्रस्त देश के पड़ोसी देशों में भेजने का फ़ैसला किया है। हैरानी की बात है कि यूक्रेन समेत सभी पड़ोसी देशों में भारत के दूतावास पहले से हैं, वहां राजदूतों समेत कई अधिकारी हैं, राजनयिक संबंधों को निभाने की खातिर करोड़ों रुपए इन दूतावासों पर खर्च किए जाते हैं, फिर भी क्या ये इतने सक्षम नहीं हैं कि भारतीयों की मदद खुद कर सकें। यहां से चार मंत्रियों को भेजकर आखिर मोदीजी क्या संदेश देना चाह रहे हैं। वैसे नरेंद्र मोदी की ओर से वायुसेना को भी ऑपरेशन गंगा में शामिल होने का आदेश दिया गया है। इंडियन एयर फोर्स के सी-17 ग्लोबमास्टर विमान यूक्रेन में फंसे भारतीयों की निकासी के काम में लगेंगे। अगर ऐसे फ़ैसले पहले ले लिए जाते तो नवीन की जान शायद बच सकती थी।
नवीन की मौत पर विदेश मंत्रालय ने दुख जताया है और कहा है कि मंत्रालय पीड़ित परिवार के संपर्क में है। विदेश सचिव की ओर से रूस और यूक्रेन के राजदूतों को समन जारी किया गया है। दोनों देशों से मांग की गई है कि भारतीय छात्रों की सुरक्षित निकासी की व्यवस्था की जाए। वहीं नवीन शेखरप्पा के परिजनों से नरेंद्र मोदी ने बात की है। प्रधानमंत्री मोदी ने परिजनों से बातचीत में सहानुभूति जताते हुए कहा कि इस दुख की घड़ी में पूरा देश उनके साथ खड़ा है। बेशक मोदीजी ने ये शब्द हृदय की गहराइयों से कहे होंगे, लेकिन इस तरह की सहानुभूति जले पर नमक छिड़कने की तरह लगती है। क्योंकि हकीकत यही है कि सबको अपने दुख खुद ही सहन करने पड़ते हैं। देश तो पता नहीं किस तरह नवीन के परिजनों के साथ खड़ा होगा, लेकिन अगर सरकार पहले ही इन छात्रों के साथ खड़ी होती तो आज नवीन भी सुरक्षित लौट सकता था। मगर अब अफ़सोस करने के अलावा और कुछ नहीं बचा है।
(लेखक देशबन्धु के संपादक हैं)