पुष्परंजन
‘नो फ्लाई ज़ोन।‘ नाटो के कुछ देश यूक्रेन में रणनीति बनाने के हवाले से इसे लेकर आये। सहमति नहीं बनी, और फार्मूला फुस्स हो गया। इसका पहला विरोध लक्ज़मबर्ग के विदेशमंत्री ज्यां एसेलबार्न ने किया। शुक्रवार को नाटो विदेश मंत्रियों की बैठक में एसेलबार्न ने सवाल किया, ‘इसे लागू कौन करवायेगा? इसके परिणाम भयावह होंगे। घरती पर आ जाइये, और चुप लगा जाइये।‘
नो फ्लाई ज़ोन, नो फ्लाईट ज़ोन (एनएफज़ेड) या फिर एयर एक्सक्लूज़न ज़ोन (एईजे़ड) बनाने की अवधारणा 1990 की है, जब युद्ध वाले इलाक़े की हवाई सीमाएं सील कर दी जाती थीं। उस इलाक़े में जब कोई दूसरे समूह का विमान घुसता था, उसे घेर कर उतारा जाता, या फिर मार गिराया जाता।
1991 से 2003 के खाड़ी युद्ध में अमेरिका व उसके मित्र देश ऐसा कर चुके थे। फरवरी 2003 में बुतरस-बुतरस घाली, जो उन दिनों संयुक्त राष्ट्र के महासचिव थे, ने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था, कि अमेरिका ने अवैध तरीक़े से नो फ्लाई ज़ोन का फैसला लिया था, यूएन की इसपर कोई सहमति नहीं थी। 1999 में यूएन की ख़ुद की रिपोर्ट थी कि नो फ्लाई ज़ोन को लागू करने व बमबारी की वजह से उत्तरी-दक्षिणी इराक़ में 144 नागरिक मारे जा चुके थे। अब कोई पूछे कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति को जवाबदेह मानते हुए उन्हें यु़द्ध अपराघी बनाये जाने का प्रस्ताव हेग स्थित इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में गया था क्या?
9 अक्टूबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने बोस्निया एयरस्पेस को नो फ्लाई ज़ोन घोषित किये जाने का एक प्रस्ताव पास किया। उसपर अमल के लिए नाटो की सक्रियता बढ़ गई। इसका नाम रखा गया, ‘ऑपरेशन डिनाई फ्लाइट‘, जिसकी हदें बोस्निया-हर्ज़ेगोबिना और क्रोएशिया की हवाई सीमाएं थीं। 17 मार्च 2011 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक बार फिर, युद्धग्रस्त लीबिया में नो फ्लाई ज़ोन घोषित किये जाने का एक प्रस्ताव पास किया। नाटो यहां भी कूद पड़ा। अंततः सुरक्षा परिषद ने 27 अक्टूबर 2011 को एक प्रस्ताव पारित कर नो फ्लाई ज़ोन की घोषणा को रद्द कर दी।
अब सवाल यह है कि लीबिया नाटो का सदस्य देश नहीं था, तो उसे वहां के मामले में कूद पड़ने की आवश्यकता क्यो पड़ी? नियम जब लीबिया के मामले में शिथिल किये जा सकते हैं, तो यूक्रेन में क्यों नहीं? नो फ्लाई ज़ोन का टोटा सीरियाई सिविल वार में भी फंसा था। एक देसी कहावत है, ‘कमज़ोर की बीवी भर गांव की भौजाई‘, क्योंकि रूस, लीबिया नहीं है, इसलिए नाटो सदस्य देश बगलें झांक रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो की वजह से इस समय यूक्रेन की हवाई हदों में अनो फ्लाई ज़ोन का प्रस्ताव नहीं रख सकते।
यूक्रेन के हवाई मार्ग को अवरूद्ध करने का अर्थ होगा, रूस से यूरोपीय देशों का सीधा टकराव। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन इस मामले की गंभीरता को पूरी तरह समझ रहे हैं। वह सीघी भिडंत से इंकार कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ पुतिन ने घमकाया भी है कि यदि कोई तीसरा देश इसमें कूदा, तो अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर को देखने के वास्ते तैयार रहे। दिलचस्प यह है कि पुतिन के समर्थन में कोई तीसरा देश पलक-पांवड़े बिछा दे, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। बेलारूस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसने रूसी सेना के जमावड़े से लेकर उनके युद्धाभ्यास तक में भरपुर मदद की है। यूक्रेन की पूर्वी सीमा बेलारूस से लगी है, जिसकी लंबाई 1084 किलोमीटर है। बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जांडर लुकाशेंको, पुतिन के कठपुतली माने जाते हैं। 28 साल से कुर्सी पर जमे रहने के पीछे उनपर पुतिन की कृपा बताई जाती है। 20 जुलाई 1994 से लुकाशेंको राष्ट्रपति पद पर हैं, यूरोपीय आलोचक उन्हें ‘अंतिम मुग़ल‘ कहते हैं। पुतिन को अपने पड़ोस में लुकाशेंको जैसा घुटनाटेक शासन प्रमुख चाहिए।
सात देशों से घिरे, चार करोड़ 34 लाख की आबादी वाले यूक्रेन के पश्चिम में हैं पोलैंड, स्लोवाकिया और हंगरी। उत्तर में बेलारूस, दक्षिण-पश्चिम में माल्दोवा व रोमानिया, और पूर्वी सीमा पर है रूस। अब उसमें तीन और कठपुतली सरकारों को जोड़ लीजिए ‘ऑटोनॉमस रिपब्लिक ऑफ क्रीमिया‘ दोनबास वाले क्षेत्र के ‘दोनेत्स्क पीपुल्स रिपब्लिक‘ और ‘लुहान्स्क पीपुल्स रिपब्लिक।‘ युद्धग्रस्त यूक्रेन के अभी और कितने टुकड़े होंगे, कहना कठिन है। मगर, यह तय मानिये कि यूक्रेन का अस्तित्व बच भी जाता है, क्रेमलिन की इच्छा से ही किसी कठपुतली को शासन प्रमुख होने का अवसर मिलेगा। रूसी सेना आसानी से लौट जाएगी? यह भी एक बड़ा सवाल है। यूक्रेन, अफग़ानिस्तान नहीं है, जिसकी भू-सामरिक स्थिति भिन्न रही है।
विक्टर ओरबन 2010 से हंगरी के प्रधानमंत्री हैं। कुछ लोगों ने देखा था कि 1 फरवरी 2022 को वो कैसे क्रेमलिन में पुतिन से बगलगीर हो रहे थे। उनके देश में रूस ने नाभिकीय पावर प्लांट लगा रखे हैं। रूस की वजह से हंगरी में गैस सप्लाई की कोई दिक्कत नहीं होती। विक्टर ओरबन की मुट्ठी में हंगरी की न्यायपालिका और मीडिया दोनों है। क्रेमलिन की कृपा से सबकुछ चंगा चल रहा है। मगर, हंगरी का विपक्ष पुतिन से यारी को लेकर विक्टर ओरबन के विरूद्ध हमलावर है। 3 अप्रैल 2022 को वहां संसदीय चुनाव है।
यूक्रेन के उत्तर में माल्दोवा है, जो नाटो का सदस्य देश नहीं है। माया संदू को 2019 में माल्दोवा की सत्ता में आने का अवसर इसलिए मिला, क्योंकि उन्होंने पुतिन के आगे सिज़दा कर लिया था। 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में माया संदू प्रो-यूरोपियन चेहरा थीं। मगर, तीन वर्षों में उन्होंने अपने तेवर बदल लिये। यूक्रेन में यही तो चाहते थे, प्रेसिडेंट पुतिन। नाटो सदस्य चेक गणराज्य के राष्ट्रपति मिलोस ज़ेमा, पुतिन के हम प्याला-हम निवाला बताये जाते हैं। चेक गणराज्य अजब-गज़ब है। पुतिन से दोस्ती और नाटो बीएमडी की तैनाती भी।
पोलैंड को ‘रूसीफाई‘ करने में कभी स्तालिन की बड़ी भूमिका रही थी। आज की तारीख़ में बाल्टिक देशों को ज़मीनी पाइप लाइन के ज़रिये रूसी गैस भेजने से अरबों डॉलर की कमाई होती है, आर्थिक वजहों से वहां चुप्पी छा जाती थी। पोलैंड में स्थिरता बनाये रखने के वास्ते राष्ट्रपति आंड्रे डूडा दुविधा की स्थिति में रहते हैं। उन्होंने यूक्रेन संकट से उबरने के वास्ते चीनी राष्ट्रपति शी का सहारा लेना उचित समझा है, ताकि पेइचिंग पुतिन को समझाए। हंगरी, पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया ये चारो यूक्रेन के पड़ोसी देश हैं, और नाटो के सदस्य हैं।
रोमानिया की उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर यूक्रेन के 10 हज़ार से अधिक नागरिक शरणार्थी हैं। रोमानिया के प्रतिरक्षा मंत्री दिंसू बयान दे चुके हैं कि हम पांच लाख यूक्रेनी शरणार्थियों को पनाह देने के वास्ते सक्षम हैं। मगर, नाटो सदस्य रोमानिया यह सब करके पुतिन से भयभीत है। उसने नाटो को आगाह किया है कि रूस कभी भी हमला कर सकता है। हमारी रक्षा करो। पूर्वी यूरोपीय देश एस्तोनिया नाटो का सदस्य है, वहां की प्रधानमंत्री कया कलास ने भी गुहार लगाई है कि पुतिन के प्रकोप से हमें बचाओ। पीएम कया कलास एस्तोनिया में ऊर्जा संकट के बाद, 26 जनवरी 2021 को सत्ता में आईं। मगर, उन्हें डर है कि यूक्रेन के दोनबास वाले क्षेत्र के ‘दोनेत्स्क पीपुल्स रिपब्लिक‘ और ‘लुहान्स्क पीपुल्स रिपब्लिक‘ की तरह एस्तोनिया में भी पुतिन का अलगाववादी अभियान आरंभ न हो जाए।
जो नाटो, एस्तोनिया और रोमानिया जैसे सदस्य देशों की चाक-चौबंद सुरक्षा की स्थिति में नहीं है, वह यूक्रेन की सुरक्षा क्या ख़ाक करेगा? बाहर नाटो चार्टर के हवाले से भ्रम बना हुआ है कि यदि उसके किसी सदस्य पर आफत आती है, सब मिलकर मुक़ाबला करेंगे। यह सब दिखावा है। नाटो दरअसल, यूरोप के चंद संपन्न देशों और अमेरिकी हितों को साधने वाला उत्तर अटलांटिक क्लब है। इससे अधिक उससे उम्मीद करना बेमानी है। नाटो अपनी घौंस केवल कमज़ोर देशों पर चला पाता है। रूस से सीधा नहीं भिड़ने की मुख्य वजह नाटो की सैन्य तैयारी का नहीं होना है।
2002 से नाटो के समक्ष बैलेस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) मुंह बाये खड़ा है। उस साल प्राग समिट में परमाणु सुरक्षा की संभावना पर एक रिपोर्ट तैयार किये जाने का निर्णय हुआ। अप्रैल 2007 में इसपर सहमति बनी कि अमेरिकी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को इस वास्ते अमल में लाया जाए। 20 अगस्त 2008 को अमेरिका और पोलैंड ने परमाणु छतरी विकसित करने के वास्ते सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये। 2009 में बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद, पोलैंड के रेडज़िकोवो में 10 न्यूक्लियर सिलो‘ और एमआईएम-104 प्रेट्रियट एयर डिफेंस सिस्टम लगाये गये। इसे यूरोपियन इंटरसेप्टर साइट्स (ईआईएस) कहा जाता है। फिर 2010 में उत्तर अटलांटिक सहयोग संगठन (नाटो) के सदस्य देशों ने लिस्बन शिखर बैठक में तय किया कि परमाणु हमले की स्थिति में हम चाक-चौबंद सुरक्षा करेंगे। मई 2012 के शिकागो समिट में अंतरिम बीएमडी को ऑपरेशनल करने पर नाटो देश सहमत हुए। 2016 में सदस्य देश तैयार हुए कि दक्षिण-पूर्वी यूरोप में परमाणु सुरक्षा छतरी की तैनाती हो।
पोलैंड के रेडज़ीकोवो सैन्य अड्डे पर 2009 में एयर डिफेंस के बाद, 2018 में से ‘एज़ीज बैलैस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम‘ एक्टिव किया गया। प्राग से 60 किलोमीटर दूर ब्रडी में भी ईआईएस विकसित किया गया, और वहां एज़ीज बैलैस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम लगाये गये। तुर्की के क्यूरेसिक में यूएस बीएमडी रडार लगाये गये हैं। रोमानिया के देवसेलू एयरबेस पर एज़ीज ऑफशोर साइट्स बनाये गये, जो 12 मई 2016 से ऑपरेशनल है। जर्मनी के रामस्टीन एयर बेस नाटो-बीएमडी का कंट्रोल कमांड सेंटर है। स्पेन के रोटा नौसैनिक अड्डे पर चार मल्टी मिशन बीएमडी कैपेबल एज़ीज शिप्स हैं। 2011 में नीदरलैंड ने चार एयर डिफेंस बेडे को लंबी दूरी वाले मिसाइलों और त्वरित सूचनाओं वाले रडार से अपग्रेड किया है।
अगस्त 2014 में डेनमार्क ने ‘नाटो-बीएमडी रडार सिस्टम‘ को उन्नत किया है। नवंबर 2015 में ब्रिटेन ने जानकारी दी कि उसने ग्राउंड बेस्ड बीएमडी रडार वाली क्षमता से ख़ुद को लैस कर लिया है। इतना कुछ होने के बावज़ूद नाटो देश रूसी परमाणु हमले का सामना करने को तैयार नहीं दिख रहे। अब लक्ष्य रखा गया कि 2024 तक सभी नाटो देशों को 360 डिग्री परमाणु सुरक्षा दे देनी है। इस सच से पूरी दुनिया को वाकिफ होना चाहिए कि नाटो कहां खड़ा है, और क्यों रूस को तुर्की ब तुर्की जवाब नहीं दे रहा?