नई दिल्ली: जब पूरी दुनियां प्लास्टिक वेस्ट (कूड़े) से जंग हार चुकी थी, ऐसे वक्त में एक दसवीं पास महिला ने पर्यावरण संरक्षण का एक अनोखा तरीका ईजाद किया। नारी को यूं ही शक्ति नहीं माना जाता। नासिरा अख्तर ने असंभव को सम्भव कर दिखाया है। दक्षिण कश्मीर में कनीपोरा कुलगाम की रहने वाली नासिरा अख्तर ने पूरी दुनिया के विज्ञानी और पर्यावरणविद को पीछे छोड़ते हुए प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट का एक जैविक और अनोखा तरीका निकाला है। इंडिया बुक आफ रिकार्डस, अनसंग इनोवेटर्स आफ कश्मीर और कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल में उसकी कहानी प्रकाशित हो चुकी हैं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नासिरा अख़्तर को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने आईएएनएस नामी एक समाचार एंजेंसी से बातचीत में कहा अब ये पेटेंट उन्होंने एक निजी कंपनी को दुनिया की भलाई के लिए बेच दिया है और अब फिर से एक नई खोज में जुट गईं हैं।
पहली बार देखी दिल्ली
नासिरा अख्तर को हाल ही में नारी शक्तिमान सम्मान से नवाज़ा गया है। नासिरा कहती हैं कि मैं पहली बार दिल्ली आई हूँ। राष्ट्रपति के हाथों सम्मान मिला। राष्ट्रपति भवन और मंत्रालय की और से ये जश्न मनाया गया। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर देश की कुछ र्चुंनदा महिलाओं को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गर्व का अनुभव हो रहा है। मेरी तरह नवाचार करने वाली महिलाओं समेत, समाज सेवा, शिक्षा, विज्ञान अपनी प्रतिभा को साबित करने वाली अनेक महिलाओं को ये अवसर मिला।
मैं कोई वैज्ञानिक नहीं हूं
नासिरा का कहना है कि मैं कोई वैज्ञानिक नहीं हूँ, न विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त की है। मैं जम्मू कश्मीर के कुलगाम जो महिलाओं की साक्षरता के मामले में पिछड़ा जिला है जहां से मैं आती हूँ। मैं ज्यादा पढ़-लिख भी नहीं पाई, 10वीं पास हूँ। 21-22 साल पहले दिमाग चलाना शुरू किया। 14 साल पहले मैं कामयाब हो गई। करीब 20 साल की ये मेहनत है मेरी। अलग-अलग किस्म की चीजों को प्लास्टिक पर डाल जलाती थी। फिर एक दिन प्लास्टिक को जलाया तो देखा कि उसकी राख बन गई है।
नासिरा ने बताया कि मैं कश्मीर विश्विद्यालय गई वहां मैंने अपने फामूर्ले से प्लास्टिक जलाया। पूरा डेमोस्ट्रेशन दिया ऐसा एक बार नहीं हर बार लोग डैमो की मांग करते फिर उसकी जांच कराई जाती। लेकिन ये सही साबित हुआ। फिर आखिर में मैंने इसे एक निजी कम्पनी को अपना पेटेंट बेचने का निर्णय लिया ताकि पूरी दुनिया इसका फायदा उठा सके। मैंने कम्पनी के साथ नॉनडिस्क्लोजर का एक एग्रीमेंट साइन किया है। कम्पनी इस पर काम कर रही हैं कम्पनी को जब स्टार्टअप मिलेगा तो वो इस पर काम करेगी।
सब ख़ुदा की देन है
नासिर की दो बेटियों हैं। उनके पति का निधन हुए तीन वर्ष हो चुके हैं। वो भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। अपने ही गांव में एक दुकान चलाते थे। नासिर कहती हैं कि मुझे बहुत से सम्मान मिले हैं, कई किताबों में मेरा नाम आया है, लेकिन यह खुदा की देन है। प्लास्टिक का कचरा जब मैं अपने आंगन और गांव में देखती थी तो दिल दुखी होता था। राष्ट्रपति से सम्मान मिलने वाला यह पुरस्कार मेरा नहीं है, उन सभी महिलाओं का है,जो मुश्किल हालात में रहते हुए कुछ नया करना चाहती हैं।
आती रहीं मुश्किलें
नासिरा स्वीकार करती हैं कि उन्हें हर किसी से सहयोग नहीं मिला, राह में कई मुश्किलें भी आई हैं। कश्मीर के हालात को सब जानते हैं, इसलिए इस बारे में ज्यादा न बोलना बेहतर है। नासिरा अख्तर कहती हैं कि जब मैंने सुना कि प्लास्टिक नष्ट नहीं हो सकता, तो मैंने उस पर काम किया। लेकिन जब कामयाबी मिली तो उस समय इंटरनेट का भी जमाना नहीं था कि मैं अपनी कामयाबी को साझा कर सकूं। अब एक नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहीं हूँ। कामयाबी मिलने पर उसे भी साझा करुंगी।
धारा 370 के सवाल पर क्या बोलीं
नासिरा कहती हैं कि कश्मीर में लोग बहुत मुश्किल हालात में लोग जीते आये हैं। आज का कश्मीर काफी बेहतर है, आजाद है। अब कश्मीर की तरक्की के रास्ते खुल रहे हैं, कारखाने लगा सकते हैं, लोगों को रोजगार मिल सकता है। हमें नई पहचान मिल सकती है। अब कुछ सालों से मैं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भी काम कर रही हूँ।