मुजफ्फरपुरः चुनाव का नामांकन छोड़ पहले बिटिया का एग्ज़ाम दिलाने के लिये रवाना हुए एजाज़

मोहम्मद ख़ालिद हुसैन

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कामयाब भी वही लोग होते हैं जो सपने देखते हैं। लेकिन जब कोई ऐसा आदमी सपना देखे जिस के पास उस सपने को पूरा करने के संसाधन मौजूद नहीं हों, और फिर भी उसका हौसला किसी चट्टान से ज़्यादा मज़बूत हो तो ऐसे लोगों को देखकर बहुत ताज्जुब होता है। आज के इस दौर में जहां लोग बेटों को पढ़ाने पर भी अधिक ध्यान नहीं देते, वहीं अगर कोई आदमी बिहार से अपनी बेटी को लेकर अलीगढ़ में एंट्रन्स टेस्ट दिलवाने जाता है तो बहुत ताज्जुब होता है।

बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला के औराई ब्लॉक के मक़सूदपुर गाँव की रहने वाली राहिला और उनके परिजनों ने एक नई मिसाल क़ायम की है। बीते वर्ष इस संवाददाता को इन्होंने अलीगढ़ से फोन कर के बताया था कि वो अलीगढ़ अपनी बच्ची को लेकर अलीगढ़ में एडमिशन के लिए एंट्रन्स एक्जाम दिलवाने लाए हैं तो मुझे बेहद ख़ुशी हुई थी की मैं जिस ग्रामीण परिवेश से आता हूं वहां के लोग अपनी बेटी की शिक्षा को लेकर इतने अधिक जागरुक हैं।

ऐसे ही एक शख्स का नाम Muhammad Ejaz Qadri है। हमारे गाँव के कई युवकों की तरह ये भी शहर में नौकरी करते थे। पूर्व में इनके परिवार के साथ कुछ ऐसा घटित हुआ जिसके कारण इन्हें कई साल तक घर पर रहना पड़ा। जिस कारण शहर से इनका सम्पर्क टूट गया। फिर ये घर पर ही रहने लगे और स्थानीय राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे। फ़िलहाल ये मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला के औराई ब्लॉक में राष्ट्रीय जनता दल के प्रखंड अध्यक्ष हैं। सीमित आमदनी है और बड़ा परिवार है। लेकिन न तो इनके हौसलों में कोई कमी है न इनकी बेटी के हौसलों में कोई कमी है। पिछली बार इनकी बच्ची को अलीगढ़ में कामयाबी नहीं मिल सकी थी तो इस बार एजाज़ अपनी बच्ची को लेकर जामिया का एंट्रन्स टेस्ट दिलवाने दिल्ली आए हुए।

आपको शायद ये बात बहुत मामूली लग सकती है लेकिन इन जैसे लोग ही मिसाल क़ायम करते हैं और इन जैसे लोगों को देखकर ही दूसरे लोअर मिडल क्लास फ़ैमिली के लोगों को हौसला मिलता है और वो भी अपनी बेटियों को पढ़ाने की कोशिश करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि लोअर मिडल क्लास फ़ैमिली के लोग हवाई जहाज़ में सफ़र कर रहे हैं तो इस के पीछे की भी एक कहानी है। एजाज़ का 19 अक्तूबर को ट्रेन से दिल्ली जाने का टिकट बना हुआ था। इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे इनके इनके एक दोस्त को जब पता चला की एजाज़ 19 अक्तूबर को यहाँ नहीं रहेंगे और उसी दिन इनके दोस्त को नॉमिनेशन फ़ाइल करना था। इनके दोस्त की इच्छा थी की एजाज़ साहब उनके नॉमिनेशन के समय मौजूद रहें तो उन्होंने इनका 19 तारीख़ का ट्रेन से टिकट कैंसिल करवा कर इनको फ़्लाइट की टिकट बुक करवा कर दिया।

मुझे नहीं पता की इनकी बिटिया कहाँ तक पढ़ाई कर पाएगी, कितनी कामयाब हो पाएगी लेकिन एजाज़ साहब के हौसले और इनकी मेहनत को देखकर लगता है इनकी बच्ची को और इनको इनकी मेहनत का फल ज़रूर मिलेगा। वैसे इस बार काफ़ी बदलाव देखने को मिल रहा है। अब देखा-देखी कई लोग अपनी बच्चियों को पढ़ाने में अधिक रुचि ले रहे हैं। आज सुबह अम्माँ से बात हुई तो अम्माँ ने मेरे गाँव और रिश्तेदारों में कई बच्चों के बारे में बताया जो इस बार जामिया के एंट्रन्स का एक्जाम देने गए हैं। जिसमें एक हमारे दोस्त एजाजुल हक़ की भांजी भी है। बहुत ख़ुशी की बात है की हमारे गाँव की बेटियाँ भी अब आला तालीम हासिल कर सकेंगी। उम्मीद है कि हमारे क्षेत्र के और भी लोग बेटियों को पढ़ाने में इसी क़दर ध्यान देंगे। एजाज़ भले ही लोग आपकी इस कोशिश को याद नहीं रखेंगे लेकिन मैं ख़ुद इस बात का गवाह हूं की आप ने किस क़दर सीमित संसाधन के बावजूद एक पहाड़ को सर करने का हौसला किया है। उम्मीद है कि आप की ये कोशिश अपने क्षेत्र में बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने में एक मिसाल क़ायम होगी। एक ऐसे समाज में जहां बेटी पैदा होते ही माँ-बाप को उसके दहेज की फ़िकर सताने लग जाती हो, उस समाज का कोई व्यक्ति अगर अपनी बेटी की पढ़ाई को लेकर इस हद तक जागरुक है तो ये बात वाक़ई बहुत ही तारीफ़ के क़ाबिल है।