मुजफ्फरनगर दंगा: सिर्फ सात लोगों को हुई सज़ा, 1,117 लोग सबूतों के अभाव में बरी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में 2013 के सांप्रदायिक दंगों को आठ साल हो चुके हैं। इन दंगों में साठ से ज्यादा लोगों की जान गई थी, जबकि हज़ारों लोग पलायन करके दूसरे गांवों में जाकर बस गए थे। आठ साल पहले हुए इन दंगों में न्यायिक व्यवस्था सवालों के घेरे में है। दंगों के दौरान हत्या, बलात्कार, डकैती और आगजनी से संबंधित 97 मामलों में 1,117 लोग सबूतों के अभाव में बरी हो गए। बीते आठ वर्षों में इन दंगों के मामले में सिर्फ सात लोग दोषी पाए गए हैं, और वे भी वे उस मामले में दोषी पाए गए हैं, जिसकी वजह से मुजफ्फरनगर के ग्रामीण क्षेत्रो में दंगे भड़के हैं।

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अदालत द्वारा दोषी पाए गए सातों लोगों को मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में सचिन और गौरव नामक दो युवकों की हत्या करने का आरोप था। उल्लेखनीय है कि कि लिये बता दें कि गौरव और सचिन ने 27 अगस्त, 2013 को शाहनवाज़ क़ुरैशी नामी शख्स की उसके गांव में ही हत्या कर दी थी, जिसके बाद ग्रामीणों ने गौरव और सचिन को भी मौक़े पर ही मार दिया था। गौरव और सचिन की हत्या के बाद मुजफ्फरनगर में कई स्थानों पर पंचायतें हुईं, जिसके बाद सात सितंबर को मुजफ्फरनगर के ग्रामीण क्षेत्र में दंगे हो गए थे।

क्या कहती है एसआईटी

दंगों से जुड़े मामलों की जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था। एसआईटी के अधिकारियों के मुताबिक, पुलिस ने 1,480 लोगों के खिलाफ 510 मामले दर्ज किए और 175 मामलों में आरोप पत्र दायर किया। जनसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक़ एसआईटी के एक अधिकारी ने बताया कि 97 मामलों में अदालत ने फैसला किया और 1,117 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी किया। उन्होंने कहा कि अभियोजन ने अभी इन मामलों में अपील दायर नहीं की है। कवाल गांव में दो युवकों की हत्या के मामले में सात लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।

सरकार ने नहीं दी मुकदमा चलाने की इज़ाजत

एसआईटी 20 मामलों में आरोप पत्र दायर कर नहीं सकी, क्योंकि राज्य सरकार की ओर से उसे मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिली। इस बीच, उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगों से जुड़े 77 मामलों को वापस लेने का फैसला किया है, लेकिन अदालत ने यूपी सरकार के गन्ना मंत्री सुरेश राणा, सरधना से भाजपा विधायक संगीत सोम समेत 12 भाजपा विधायकों के खिलाफ सिर्फ एक मामला वापस लेने की अनुमति दी है। एसआईटी के अधिकारियों के अनुसार, 264 आरोपी अभी अदालती कार्यवाही का सामना कर रहे हैं। दंगों में 60 से अधिक लोग मारे गए थे और 40 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए थे।

20 दिन तक रहा कर्फ्यू

मुजफ्फरनगर के मलिकपुरा के ममेरे भाइयों सचिन और गौरव की 27 अगस्त 2013 को जानसठ कोतवाली क्षेत्र के गांव कवाल में हत्या के बाद ही वहां दंगे भड़क उठे थे। यह गांव जाट और मुस्लिम बहुल है। दंगे के दौरान यहां कर्फ्यू लगा दिया। बाद में सेना बुला ली गई। करीब 20 दिनों तक कर्फ्यू रहा। 17 सितम्बर को दंगा प्रभावित स्थानों से कर्फ्यू हटा लिया गया और सेना वापस बुला ली गयी।

क्यों हुए दंगे

मुजफ्फरनगर दंगे के पीछे छेड़खानी की वजह बताई गई थी। आरोप था कि कवाल गांव में कथित तौर पर जाट समुदाय की लड़की के साथ शाहनवाजड ने छेड़खानी कर दी थी। उसके बाद लड़की के दो ममेरे भाइयों गौरव और सचिन ने शाहनवाज़ की चाकू मारकर हत्या कर दी थी, दिन-दहाड़े इस हत्याकांड के बाद शाहनवाज़ के गांव के लोगों ने मौक़े पर ही दोनों युवकों की जान ले ली।

गौरव और सचिन की हत्या के बाद इस मामले में राजनीति शुरू हो गई, भाजपा समेत हिंदुवादी संगठनों के लोगों ने पंचायतें करना शुरू कर दिया, इसके बाद मुस्लिम समाज की ओर से भी मुजफ्फरनगर शहर में पंचायत हुई। सात सितंबर 2013 को मुजफ्फरनगर के ग्राम नंगला मंदौड़ में महापंचायत हुई। इस महापंचायत में भाजपा के स्थानीय नेता और हिंदुवादी संगठनों के लोग भी शामिल हुए। इसी पंचायत में भाजपा नेताओं पर आरोप लगा कि उन्होंने जाट समुदाय को बदला लेने के लिए उकसाया था। जबकि भाजपाई इससे इंकार करते हैं।

सात सितंबर को महापंचायत से लौट रहे लोगों का विवादित नारों के कारण जौली नहर के पास हिंसक संघर्ष हुआ। जिसके बाद देखते-देखते इन दंगों मुजफ्फरनगर के ग्रामीण क्षेत्र को झुलसा दिया। कई गांवों से पलायन हुआ। मुज्फरनगर के कुटबा, कुटबी, फुगाना, लाख, बाहवड़ी गांव में रह रहे अल्पसंख्यकों को इन दंगों में निशाना बनाया गया। जिसके बाद, शाहपुर, लोई, गढ़ी दौलत, कैराना जैसे अल्पसंख्यक बहुल गांवों में दंगा पीड़ितों ने शरण ली।