भद्रक नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार 31 वर्षीय गुलमकी दलावजी हबीब ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समिता मिश्रा को 3,256 मतों से हराकर जीत हासिल की। समिता मिश्रा राज्य में सत्तारूड़ बीजू जनता दल (बीजद) की उम्मीदवार थीं। हाल ही में संपन्न हुए निकाय चुनाव ओडिशा के चुनावी इतिहास में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जिसमें मतदाताओं ने पहली बार किसी शहरी स्थानीय निकाय के अध्यक्ष के रूप में मुस्लिम समुदाय की एक महिला को सीधे तौर पर चुना है।
भद्रक नगर पालिका के अध्यक्ष के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार 31 वर्षीय गुलमकी दलावजी हबीब ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समिता मिश्रा को 3,256 मतों से हराकर जीत हासिल की। बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर डिग्री करने वाली हबीब राजनीति में सक्रिय नहीं थीं, हालांकि उनके पति और ससुराल वाले स्थानीय सियासी गलियारों में जाने जाते हैं। उनके पति शेख जाहिद हबीब भद्रक जिले BJDl के उपाध्यक्ष थे।
जानकारी के लिये बता दें कि भद्रक में अल्पसंख्यक समुदाय की काफी आबादी है। इसलिये इस सीट से अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवार को नगर निकाय अध्यक्ष के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारने की मांग की गई थी। चूंकि पद महिलाओं के लिए आरक्षित था, इसलिए गुलमकी हबीब के नाम पर सहमती बनी। हालांकि, उन्हें सत्तारूढ़ बीजद की नाराजगी का सामना करना पड़ा।
सांप्रदायिक तनाव
शुरू में यह माना जा रहा था कि गुलमकी हबीब के लिए यह चुनाव आसान नहीं होगा क्योंकि भद्रक में सांप्रदायिक तनाव का इतिहास रहा है। गुलमकी हबीन कहती हैं कि “मेरे प्रचार अभियान के दौरान, मेरे मन में मुस्लिम महिला उम्मीदवार के प्रति मतदाताओं के मन में कोई अन्य ख्याल नहीं आया था। लोगों ने मुझे अपनी बेटी की तरह माना, चाहे वे किसी भी समुदाय से हों।” हालांकि मुस्लिम महिलाओं ने पार्षदों या वार्ड सदस्यों के पद के लिए सीधे चुनाव जीता है, यह पहली बार है जब एक मुस्लिम महिला किसी शहर का नेतृत्व करने के लिए मतदाताओं की पहली पसंद बनी हैं।
1984 से 1990 तक छह साल तक केंद्रपाड़ा नगर पालिका के अध्यक्ष रहे मोहम्मद अकबर अली बताते हैं कि “ओडिशा के चुनावी इतिहास में, एक भी महिला विधायक के रूप में नहीं चुनी गई है। यहां तक कि मुस्लिम समुदाय भी महिला सदस्यों को चुनाव लड़ने के लिए भेजने से कतराते हैं। ओडिशा सरकार द्वारा त्रि-स्तरीय पंचायती राज संस्थानों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के बाद, मुस्लिम महिलाएं चुनाव लड़ने के लिए आगे आ रही हैं।”
जानकारी के लिये बता दें कि मुस्लिम समुदाय ओडिशा की आबादी का 3% से भी कम है। राज्य की राजनीति में अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व बहुत कम रहा है, हालांकि मुस्लिम समुदाय के सदस्य राज्य में कैबिनेट मंत्री बने थे। इसी तरह पत्रकार से नेता बनीं सुलोचना दास भुवनेश्वर की पहली महिला मेयर बनीं। भुवनेश्वर की पहली नागरिक के रूप में अपने चुनाव से पहले, वह विकलांग व्यक्तियों की आयुक्त थीं। सुलोचना दास के मुताबिक़ “मैं भुवनेश्वर में की गई विकास पहल को और बढ़ावा देना चाहती हूं। लोग निश्चित रूप से राजधानी के नागरिक होने पर गर्व महसूस करेंगे।”