मनीष मिश्रा
अभी वह महज 17 साल की हैं। मगर इससे भी दो वर्ष पहले जिंदगी ने उन्हें ऐसा दर्दनाक तजुर्बा दिया है, जिसकी टीस तो खैर आखिरी सांस तक रहेगी, मगर अपने इस निर्मम अनुभव को उन्होंने नेपाली लड़कियों की खातिर एक ऐसे आंदोलन में बदल डाला कि उनकी सराहना किए बिना अमेरिकी सरकार भी न रह सकी। मुस्कान खातून को अमेरिकी सरकार ने विश्व की साहसी औरतों में शुमार करते हुए इस साल के ‘इंटरनेशनल वुमेन ऑफ करेज अवॉर्ड’ से नवाजा है।
भारतीय सीमा से लगा नेपाल का एक बड़ा शहर है बीरगंज। यहीं के परसा इलाके में 2004 में मुस्कान पैदा हुईं। पिता रसूल अंसारी और मां शहनाज ने बेटी की खूबसूरती और शोखियों को देखकर ही यह नाम रखा था। अपनी बेलौस खिलखिलाहट और चंचलता के कारण पूरे मोहल्ले की चहेती मुस्कान ने स्कूल के बेहतरीन नतीजों से मां-बाप का सिर हमेशा बुलंद रखा।
खानदान में लड़कियों के हाईस्कूल पास करने से पहले ही निकाह की रवायत थी, मगर मुस्कान की जहानत ने मां के भीतर की लड़की को जिंदा कर दिया था। वह चाहती थीं कि मुस्कान को अपने सपनों को जीने की पूरी छूट मिले और वह इस दकियानूस परंपरा को तोड़ दें। उन्होंने इसके लिए सबको राजी कर लिया था।
मगर उन्हें कहां पता था कि आगे एक ऐसी आजमाइश खड़ी है, जो न सिर्फ बेटी से उसकी मुस्कान छीन लेगी, बल्कि उन सबकी दुनिया बदल देगी? रिश्तेदारी के ही एक लड़के की नजर काफी समय से मुस्कान पर थी। हालांकि, वह उनसे बमुश्किल एक-डेढ़ साल बड़ा होगा, मगर वह अक्सर स्कूल के रास्ते में खड़ा मिलता। कभी फब्तियां कसता, तो कभी उन्हें देख फिल्मी गीत गाता। मुस्कान उसे नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाया करती थीं। मगर एक दिन उसने उन्हें रोककर अपने प्रेम का प्रस्ताव रख दिया।
मुस्कान का लक्ष्य कुछ और था। अभी वह सिर्फ नौवीं जमात में थीं। उन्हें तालीम के जरिये अपने माता-पिता के लिए गौरव के पल जुटाने थे। मां ने खानदान से जो मौका उनके लिए हासिल किया था, उस फैसले को दुरुस्त साबित करना था। इसलिए उन्होंने न सिर्फ वह प्रेम-प्रस्ताव ठुकराया, बल्कि उसकी इस हिमाकत के बारे में अपने पिता को भी जाकर बताया। जाहिर है, रसूल अंसारी ने उस लड़के को बुरी तरह लताड़ा और आईंदा बेटी से दूर रहने की हिदायत देकर रिश्तेदारी का पास रखा।
पर क्षुद्र प्रेम घृणित प्रतिशोध में बदल चुका था। बदले की आग ने उसके इस विवेक को भी राख कर दिया था कि मुस्कान उसकी रिश्तेदार हैं। अपने हमउम्र दोस्तों के साथ मिलकर उसने ऐसी साजिश रची कि शातिर अपराधी भी सिहर उठें। 6 सितंबर, 2019 को मुस्कान अपने त्रिभूवन माध्यमिक स्कूल के लिए निकली थीं। रास्ते में दो अन्य साथियों के साथ वह अचानक सामने आ खड़ा हुआ। उसके हाथ में तेजाब की बोतल थी। वह मुस्कान को पिलाना चाहता था, ताकि उनके बचने की गुंजाइश न रहे। मुस्कान उन तीनों से बचकर भाग पातीं, इसके पहले उसने उनके चेहरे पर तेजाब झोंक दिया था।
भयानक दर्द से कराहती मुस्कान को स्कूल के साथियों ने अस्पताल पहुंचाया। उनके चेहरे का एक हिस्सा, गरदन, छाती और हाथ बुरी तरह जल गए थे। दाहिने कान को सर्जरी के जरिये निकालना पड़ा था। एक खुशमिजाज, जहीन और संभावनाओं से भरी दुनिया पूरी तरह झुलस चुकी थी। आगे डॉक्टरों ने जो कुछ कहा, वह भी हौसला तोड़ने वाला था। इलाज महंगा था और लंबा चलने वाला भी। मामूली आर्थिक हैसियत वाले मां-बाप की जिम्मेदारियां अन्य संतानों के प्रति भी थी। पर वे बेटी को कैसे छोड़ देते? मां-बाप एक तरफ बेटी की असह्य शारीरिक पीड़ा व इलाज के भारी खर्चे से पस्त थे, तो दूसरी तरफ रिश्तेदारों-परिचितों के ताने उन्हें हताश कर देते थे। मुस्कान अपने माता-पिता की हालत देख और दुखी हो जातीं। उसी तकलीफ में उन्होंने खुद से वादा किया कि इस दरिंदगी के आगे वह घुटने नहीं टेकेंगी।
हालत संभलते ही उन्होंने तेजाबी हमले को संगीन जुर्म घोषित करने की मुहिम छेड़ दी। कुछ स्वार्थी तत्वों की धमकियां व सामाजिक दबाव भी मुस्कान को डिगा न सका। वह एक सशक्त कानून के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से भी मिलीं। उनकी कहानी सुन ओली बहुत द्रवित हुए। उन्होंने मुस्कान से वादा किया कि न सिर्फ कानून सख्त किया जाएगा, बल्कि तेजाब की बिक्री पर भी अंकुश लगाया जाएगा।
मुस्कान की मुहिम का समर्थन महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर नेपाली फिल्म जगत के सुपरस्टार राजेश हमाल ने भी किया। उनके प्रयासों का ही असर है कि नेपाल सरकार ने तेजाबी हमले से संबंधित एक विधेयक सदन में पेश किया है, जिसमें हमलावर के लिए 20 साल की कैद और संपत्ति कुर्क किए जाने की सख्त सजा प्रस्तावित की गई है। यही नहीं, यह विधेयक पीड़िता के इलाज, शिक्षा व नौकरी की भी गारंटी प्रस्तावित करता है। प्रतिष्ठित अमेरिकी सम्मान हासिल करके मुस्कान ने माता-पिता ही नहीं, नेपाल को भी गौरवान्वित किया है।
(प्रस्तुति: चंद्रकांत सिंह, सभार हिंदुस्तान)